Pakistan IMF Loan : वॉशिंगटन (Washington) में आज अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund – IMF) की अहम मीटिंग होने जा रही है, जिसमें पाकिस्तान (Pakistan) को लोन देने पर बड़ा फैसला लिया जाएगा। पाकिस्तान इस समय आर्थिक दिवालियापन के कगार पर है और जंग की स्थिति के बीच उसका संकट और गहरा गया है। भारत (India) ने IMF को पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान को लोन देना आतंकवाद को समर्थन देने के समान होगा।
पाकिस्तान की हालत इतनी गंभीर हो चुकी है कि उसकी इकनॉमिक विंग को सोशल मीडिया पर आईएमएफ (IMF), वर्ल्ड बैंक (World Bank) और मित्र देशों से खुलेआम कर्ज मांगना पड़ा। ट्वीट में कहा गया कि भारत से जंग के चलते देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है और कर्ज के बिना पाकिस्तान इस स्थिति से नहीं निकल पाएगा।
भारत का कड़ा विरोध
भारत ने इस मीटिंग से पहले ही IMF को साफ शब्दों में कहा कि पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज देना उचित नहीं होगा क्योंकि वह एक ऐसा देश है जो लगातार आतंकवाद (Terrorism) को बढ़ावा देता रहा है। भारत का मानना है कि पाकिस्तान को आर्थिक सहायता देना आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई को कमजोर करना होगा।
130 अरब डॉलर के कर्ज में डूबा पाकिस्तान
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले ही गहरे कर्ज में डूबी हुई है। 2024 में उसका कुल विदेशी कर्ज 130 अरब डॉलर के पार पहुंच चुका है, जिसमें अकेले चीन (China) का 20% हिस्सा है। अमेरिका (USA) और सऊदी अरब (Saudi Arabia) जैसे देशों के कर्ज के साथ-साथ वर्ल्ड बैंक (World Bank) और आईएमएफ (IMF) से लिए गए पुराने लोन भी उसके सिर पर भारी बोझ बन चुके हैं।
उसके पास इस समय मात्र 15 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बचा है, जो सिर्फ तीन महीने तक के आयात को कवर करने में सक्षम है।
पहले राहत, अब आफत
सितंबर 2024 में IMF ने पाकिस्तान को 7 अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज दिया था, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था थोड़ी स्थिर हुई थी। लेकिन भारत से युद्ध छेड़ने के बाद से हालात फिर से बेकाबू हो गए हैं। अप्रैल में IMF की रिपोर्ट में कहा गया था कि पाकिस्तान अब प्राकृतिक आपदाओं, बाहरी दबावों और महंगाई से निपटने की स्थिति में आ गया है, लेकिन जंग की वजह से उसकी माली हालत फिर डगमगाने लगी है।
आज वॉशिंगटन में होने वाली इस मीटिंग पर सिर्फ पाकिस्तान नहीं, बल्कि भारत सहित पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं, क्योंकि यह फैसला केवल एक देश की मदद नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक नीति को भी प्रभावित करेगा।






