Paush Putrada Ekadashi : साल का अंत नजदीक है और ऐसे में सनातन धर्म को मानने वालों के लिए साल की आखिरी एकादशी का महत्व कई गुना बढ़ गया है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित यह पावन तिथि श्रद्धालुओं के लिए सुख-समृद्धि का द्वार खोलती है, लेकिन इस बार तारीख को लेकर भक्तों में भारी असमंजस है कि व्रत 30 दिसंबर को रखा जाए या 31 को।
तारीख पर असमंजस और सही समाधान
सनातन धर्म में तिथियों का गणित सूर्योदय और मुहूर्त पर निर्भर करता है, जिससे अक्सर कन्फ्यूजन पैदा होता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 30 दिसंबर को सुबह 7 बजकर 50 मिनट पर हो रही है। यह तिथि अगले दिन यानी 31 दिसंबर को सुबह 5 बजे ही समाप्त हो जाएगी।
चूंकि एकादशी तिथि का उदय और दिन का मुख्य भाग 30 तारीख को है, इसलिए पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत 30 दिसंबर को ही रखा जाएगा। जो भक्त व्रत का पालन करना चाहते हैं, उन्हें इसी तारीख को उपवास का संकल्प लेना होगा।
व्रत खोलने (पारण) का सटीक समय
एकादशी के व्रत में सबसे महत्वपूर्ण नियम उसका ‘पारण’ यानी व्रत खोलना होता है, जो हमेशा अगले दिन द्वादशी तिथि में किया जाता है। इस बार व्रत का पारण 31 दिसंबर को होगा। इसके लिए बहुत ही सीमित और विशेष समय है।
भक्तों को 31 दिसंबर की दोपहर 1 बजकर 29 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 33 मिनट के बीच ही अपना व्रत खोलना चाहिए। यह समय शास्त्रों के अनुसार सबसे शुभ माना गया है।
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त की सूची
पूजा-पाठ का फल तभी पूरा मिलता है जब वह सही मुहूर्त में किया जाए। 30 दिसंबर को सूर्योदय सुबह 7:13 बजे होगा और सूर्यास्त शाम 5:34 बजे होगा। यदि आप दिन में पूजा कर रहे हैं, तो ‘अभिजीत मुहूर्त’ दोपहर 12:03 से 12:44 तक रहेगा, जो किसी भी शुभ कार्य के लिए श्रेष्ठ है।
इसके अलावा, विजय मुहूर्त दोपहर 2:07 से 2:49 तक और शाम की पूजा के लिए गोधूलि मुहूर्त 5:31 से 5:59 तक रहेगा। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वालों के लिए समय सुबह 5:24 से 6:19 तक है।
संतान सुख और समृद्धि का महाव्रत
इस व्रत का नाम ‘पुत्रदा’ एकादशी इसलिए है क्योंकि हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत संतान की कामना करने वाले दंपतियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। ऐसी मान्यता है कि जो साधक सच्चे मन से इस दिन श्री हरि की उपासना करता है, उसके जीवन से सारे कष्ट मिट जाते हैं और घर में सौभाग्य बना रहता है।
विधि-विधान की बात करें तो सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनकर व्रत का संकल्प लें। पूजा में भगवान विष्णु को हल्दी, चंदन या केसर का तिलक लगाएं और पीले फल-फूल अर्पित करें। इस दिन विष्णु कथा का पाठ करना और सुनना अत्यंत फलदायी माना गया है।
दान से बदलेगी किस्मत
एक वरिष्ठ विश्लेषक के तौर पर, इस पर्व का सबसे अहम पहलू ‘दान’ है। सनातन परंपरा में एकादशी के दिन किए गए दान का फल कई गुना होकर वापस मिलता है। इस दिन पीले रंग की वस्तुओं का दान, जैसे- फल, अन्न, वस्त्र या धन, विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
धार्मिक दृष्टिकोण से, यह दान न केवल आपके धन संबंधी संकटों को दूर करता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि आपके जीवन में कभी किसी चीज का अभाव न रहे। साल के अंत में किया गया यह सत्कर्म आने वाले साल के लिए सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
जानें पूरा मामला
पौष पुत्रदा एकादशी को साल की अंतिम एकादशी माना जा रहा है, जो पौष माह के शुक्ल पक्ष में आती है। यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की संयुक्त कृपा पाने का अवसर है। अक्सर अंग्रेजी कैलेंडर की तारीखों और हिंदी पंचांग की तिथियों के समय में अंतर होने के कारण व्रत की सही तारीख को लेकर मतभेद हो जाता है। पंचांग के अनुसार तिथि का क्षय या वृद्धि होना सामान्य है, और इसी गणना के आधार पर 30 दिसंबर को व्रत और 31 को पारण का विधान तय किया गया है।
मुख्य बातें (Key Points)
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पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत 30 दिसंबर को रखा जाएगा।
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व्रत का पारण 31 दिसंबर को दोपहर 1:29 से 3:33 के बीच होगा।
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यह व्रत संतान प्राप्ति और सुख-समृद्धि के लिए अत्यंत फलदायी है।
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एकादशी तिथि 30 दिसंबर को सुबह 7:50 से शुरू होकर 31 को सुबह 5:00 बजे तक रहेगी।






