इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की सेल्स बढ़ने के साथ EV के प्राइसेज में होगी कमी, IEA का अनुमान

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व्हीकल्स

इस वर्ष बिकने वाली कारों में से लगभग 20 प्रतिशत इलेक्ट्रिक होने की संभावना है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) का अनुमान है कि नॉर्थ अमेरिका और यूरोप में पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारों का मुकाबला करने के लिए स्मॉल इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EV) के प्राइसेज घट सकते हैं।

IEA के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर, Fatih Birol ने बताया कि EV की सेल्स बढ़ने के पीछे अमेरिका के इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट का बड़ा योगदान हो सकता है। इस एक्ट में एनवायरमेंट फ्रेंडली इंडस्ट्री का समर्थन किया गया है और EV खरीदने वाले कस्टमर्स को सब्सिडी देने का प्रावधान है। EV की सेल्स में चीन पहले स्थान पर है। दुनिया भर में सड़कों पर मौजूद EV में से लगभग आधे चीन में हैं। इनमें बैटरी वाली इलेक्ट्रिक कारें और प्लग-इन हाइब्रिड व्हीकल्स शामिल हैं। पिछले वर्ष EV के ग्लोबल मार्केट में चीन की हिस्सेदारी लगभग 60 प्रतिशत की थी। चीन में स्मॉल EV मॉडल्स के प्राइसेज में भी कमी आई है।

इस बारे में IEA की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस वर्ष इलेक्ट्रिक कारों की सेल्स लगभग 35 प्रतिशत बढ़कर लगभग 1.4 करोड़ यूनिट्स पर पहुंचने की संभावना है। यह कुल पैसेंजर कार मार्केट का लगभग 18 प्रतिशत होगा। IEA के एनर्जी टेक्नोलॉजी हेड, Timar Guell ने बताया, “हमारा अनुमान है कि नॉर्थ अमेरिका और यूरोप में स्मॉल और मीडियम साइज इलेक्ट्रिक कारों के प्राइसेज में कमी हो सकती है।” Birol ने कहा कि कुछ देशों में सरकारें एनवायरमेंट को लेकर आशंकाओं के कारण EV से जुड़ी इंडस्ट्री में इनवेस्टमेंट कर रही हैं। इससे पेट्रोलियम पर निर्भरता कम होगी।

भारत में इस वर्ष के इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार, देश में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स का मार्केट 2030 तक बढ़कर एक करोड़ यूनिट्स सालाना का हो सकता है। इससे लगभग पांच करोड़ डायरेक्ट और इनडायरेक्ट जॉब्स मिलने का अनुमान है। इकोनॉमिक सर्वे में बताया गया था कि  दिसंबर में सेल्स के लिहाज से जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया में भारत तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल मार्केट बन गया था। इकोनॉमिक सर्वे के अनुसार, “ग्रीन एनर्जी की ओर बढ़ने में ऑटोमोटिव इंडस्ट्री एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। देश का EV मार्केट 2022 से 2030 के बीच लगभग 49 प्रतिशत के कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) से बढ़ने का अनुमान है। यह 2030 तक एक करोड़ यूनिट्स तक पहुंच सकता है। पिछले वर्ष यह लगभग 10 लाख यूनिट्स का था।

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