FIR Caste Mention Controversy को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक (UP DGP) से बड़ा सवाल किया है। कोर्ट ने पूछा है कि आखिर एफआईआर (FIR) में संदिग्धों की जाति लिखने की जरूरत क्यों पड़ती है? न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर (Justice Vinod Diwakar) की अध्यक्षता वाली बेंच ने डीजीपी (DGP) को आदेश दिया है कि वे इस पर व्यक्तिगत हलफनामा (Personal Affidavit) दाखिल कर जवाब दें।
“जाति का उल्लेख क्यों? क्या यह भेदभाव को बढ़ावा देता है?” – हाई कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि “संविधान सभी नागरिकों को समानता और गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है। यदि जाति का उल्लेख संस्थागत भेदभाव (Institutional Bias) को बढ़ावा देता है, तो यह न्याय की मूल भावना के खिलाफ है।”
न्यायमूर्ति दिवाकर ने आगे कहा कि “सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पहले ही याचिकाओं में जाति और धर्म के उल्लेख पर रोक लगाई थी, क्योंकि इससे केवल भेदभाव बढ़ता है और कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होता।”
12 मार्च को होगी अगली सुनवाई, DGP को हलफनामा दाखिल करने का आदेश
हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि “डीजीपी 12 मार्च को अगली सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट करें कि FIR में जाति का उल्लेख करने की क्या कानूनी जरूरत है?” कोर्ट ने कहा कि एक ऐसे समाज में जहां जाति एक संवेदनशील मुद्दा है, वहां इस तरह का विवरण सामाजिक विभाजन को और गहरा कर सकता है।
2013 के शराब तस्करी केस में उठा सवाल
यह मामला 2013 में दर्ज एक शराब तस्करी (Liquor Smuggling Case) से जुड़ा है। इटावा पुलिस (Etawah Police) ने एक आरोपी को गिरफ्तार किया था, जिसकी कार से हरियाणा (Haryana) में बिक्री के लिए अधिकृत 106 व्हिस्की की बोतलें बरामद हुई थीं। जांच के बाद एक अन्य कार से 237 और बोतलें बरामद हुईं। पुलिस ने दावा किया कि आरोपी एक गैंग लीडर (Gang Leader) है, जो हरियाणा से अवैध शराब लाकर बिहार (Bihar) में ऊंचे दामों पर बेचता है, जहां शराब पर प्रतिबंध (Liquor Ban) है।
इस मामले की एफआईआर में सभी आरोपियों की जाति का उल्लेख किया गया था, जिसे अदालत ने आपत्तिजनक (Objectionable) मानते हुए डीजीपी से स्पष्टीकरण मांगा है।
“लोकतंत्र में निष्पक्ष न्याय जरूरी” – कोर्ट का सख्त रुख
हाई कोर्ट ने कहा कि “न्याय की परिभाषा निष्पक्षता पर आधारित होनी चाहिए। यदि FIR में जाति लिखी जाती है, तो इससे यह सवाल उठता है कि क्या यह पूर्वाग्रह (Bias) पैदा कर सकता है?”
अब आगे क्या?
उत्तर प्रदेश पुलिस को अब इस मुद्दे पर जवाब देना होगा कि क्या FIR में जाति का उल्लेख कानूनी रूप से आवश्यक (Legally Required) है या यह केवल एक प्रथा बन चुकी है। कोर्ट के इस फैसले से अन्य राज्यों में भी FIR दर्ज करने की प्रक्रिया (FIR Filing Process) में बदलाव आ सकता है।