जब शेख हसीना ने दिल्ली के लाजपत नगर में ली थी पनाह, जानें कैसे काटे 6 साल

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हिंसक प्रदर्शनों के बीच सोमवार को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अचानक पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ दिया है. वो अपनी बहन शेख रिहाना के साथ हिंडन के सेफ हाउस में हैं. करीब 50 साल पहले 1975 में बांग्लादेश में सैन्य तख्ता पलट होने के बाद भी ये दोनों बहनें भारत आईं थी. तब शेख हसीना ने दिल्ली में 6 साल तक पनाह ली थी. आइए जानते हैं वो किस्सा.

भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में हिंसक प्रदर्शनों के बीच सोमवार को प्रधानमंत्री शेख हसीना को अचानक पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ा. वहां के सेना प्रमुख वकर-उज-जमान ने घोषणा की है कि देश में नई अंतरिम सरकार बनाई जाएगी. दूसरी तरफ शेख हसीना अपनी बहन शेख रिहाना के साथ फिलहाल हिंडन के सेफ हाउस में हैं. यह संयोग ही है कि करीब 50 साल पहले भी बांग्लादेश में सैन्य तख्ता पलट होने के बाद ये दोनों बहनें भारत आईं थी. तब शेख हसीना ने दिल्ली के लाजपत नगर में ली 6 साल तक गुपचुप तरीके से पनाह ली थी. आइए जानते हैं वो किस्सा.

बांग्लादेश की लौह महिला कही जाने वाली शेख हसीना इस मुल्क के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं. लगातार चार बार प्रधानमंत्री रहीं हसीना का यह पांचवां कार्यकाल था. लेकिन देश की राजनीति के अर्श पर पहुंचने से पहले उन्होंने कई मुश्किलों का सामना किया.

एक दिन में खो दिए परिवार के कई लोग

पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान में पाकिस्तान) के रवैये से बढ़ते असंतोष के बीच पूर्वी पाकिस्तान के नेता शेख मुजीबुर रहमान ने आवामी लीग नाम से पार्टी बनाई थी. 1970 के चुनाव में उनकी पार्टी भारी मतों से जीती लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान ने उल्टा शेख मुजीब को जेल में डाल दिया. उसी साल 26 मार्च को मुजीबुर रहमान ने बांग्लादेश को आजाद घोषित कर दिया. इसी के साथ शुरू हुआ बांग्लादेश का स्वतंत्रता संघर्ष. आखिरकार 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी ने भारत के सैनिक सहयोग से पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम पूरा हुआ.

Mujibur Rahman Family

शेख मुजीबुर रहमान का परिवार.

बंग बंधु (बंगाल का दोस्त) मुजीबुर रहमान नए मुल्क के पहले राष्ट्रपति चुने गए. लेकिन उनका पहला कार्यकाल पूरा भी नहीं हुआ था कि देश की सेना ने बगावत कर दी. 15 अगस्त 1975 की सुबह को कुछ हथियारबंद लड़ाके शेख हसीना के घर में घुसे और उनके माता-पिता और भाईयों समेत परिवार के 17 सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया. हालांकि, इस हमले में शेख हसीना और उनकी बहन बच गईं.

1975 में दिल्ली ही क्यों आई शेख हसीना?

बांग्लादेश में जब राष्ट्रपति आवास पर यह सब हो रहा था, तब शेख हसीना अपने पति वाजिद मियां और बहन शेख रिहाना के साथ यूरोप में थीं. जब शेख हसीन को हत्याकांड का पता चला तो पहले तो उन्हें इस पर यकीन ही नहीं हुआ क्योंकि उनके पिता को बांग्लादेश में काफी सम्मान हासिल था. लेकिन फिर बाद में उन्होंने भारत में शरण लेने का फैसला किया.

2022 में दिए इंटरव्यू में बांग्लादेश की शेख हसीना ने उन दिनों को याद करते हुए बताया, ‘इंदिरा गांधी ने तुरंत हमें सूचना भेजी कि वह हमें सुरक्षा और आश्रय देना चाहती हैं… हमने यहां (दिल्ली) आने का फैसला किया क्योंकि हमारे मन में था कि अगर हम दिल्ली जाएंगे, तो दिल्ली से हम वापस हमारे देश जा पाएंगे. और तब हम जान पाएंगे कि परिवार के कितने सदस्य अभी भी जीवित हैं.’ उन्होंने कहा कि वो अपनी बहन और पति के साथ जर्मनी से दिल्ली आए और यहां के गुप्त निवासी की तरह रहे.

Sheikh Hasina Delhi 1975

शेख हसीना लुटियंस दिल्ली में रहीं. (फोटो- Getty Images)

यहां रहा शेख हसीना का परिवार

शेख हसीना के परिवार के लिए इंदिरा गांधी की सरकार ने सभी इंतजाम किए हुए थे. उनके पति के लिए नौकरी और परिवार के लिए घर की व्यवस्था थी. हसीना के पति साइंटिस्ट थे. उन्हें नई दिल्ली में स्थित परमाणु ऊर्जा आयोग में नौकरी मिल गई. वहां उन्होंने सात वर्ष काम किया.

दिल्ली में, हसीना पहले 56 रिंग रोड, लाजपत नगर-3 में रहीं. फिर लुटियंस दिल्ली के पंडारा रोड में एक घर में शिफ्ट हो गईं. परिवार की असली पहचान छिपाने के लिए उन्हें मिस्टर और मिसेज मजूमदार की नई पहचान दी गई. पंडारा रोड का उनका घर तीन कमरों था. घर के आसपास सुरक्षा कर्मियों का पहरा रहता था.

शेख हसीना को किसी को अपनी असली पहचान बताने की मनाही थी. साथ ही दिल्ली में किसी से संपर्क रखने को भी मना किया गया था. भारत में उनके रहने से न केवल उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हुई बल्कि उन्हें राजनीतिक संबंध बनाने का मौका भी मिला जो बाद में उनके पॉलिटिकल करियर में महत्वपूर्ण साबित हुआ.

शेख हसीना की घर वापसी, स्वागत में भीड़ इकट्ठा हुई

भारत में 6 साल रहने के बाद 17 मई, 1981 को शेख हसीना अपने वतन बांग्लादेश लौट गई. उनके समर्थन में लाखों लोग एयरपोर्ट पहुंचे थे. लेकिन उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. भ्रष्टाचार के आरोपों में कारावास सहित कई चुनौतियों का सामना करने के बाद शेख हसीना आखिरकार 1996 में सत्ता में आईं और पहली बार बांग्लादेश की प्रधान मंत्री बनीं. हालांकि, इसके बाद 2001 का चुनाव वो हार गईं. लेकिन 2009 में जब वो बांग्लादेश की पीएम बनीं तो तब से अब तक लगातार उनकी ही सरकार देश में रही.

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