नई दिल्ली, 23 मार्च (The News Air) भारत के पहले आम चुनाव में 1 लाख 32 हजार 560 पोलिंग स्टेशन और 1 लाख 96 हजार 84 पोलिंग बूथ बनाए गए थे। इनके लिए सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षाकर्मियों की भारी कमी थी। पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुकुमार सेन की अगुआई में चुनाव आयोग ने इस चुनौती से निपटने के कई उपाय किए थे। कई राज्यों में सीनियर अफसरों की इतनी कमी थी कि रिटर्निंग ऑफिसर किन्हें बनाया जाए, इसकी समस्या खड़ी हो गई। दूसरे राज्यों से अफसर लाते तो वहां दिक्कत होती। प्रिजाइडिंग ऑफिसर और पोलिंग ऑफिसर के मामले में भी मैनपावर की तंगी थी। ऐसे में चुनाव आयोग ने उपलब्ध लोगों से ही बेहतर तरीके से काम लेने का फैसला किया।
हर राज्य के मॉक इलेक्शन में पहुंचे चुनाव आयुक्त : हालांकि आयोग ने राज्यों को सुझाव दिया था कि प्रिजाइडिंग ऑफिसर बनाने के लिए ऐसे सरकारी कर्मचारियों के नाम भेजें, जिनकी मंथली सैलरी 60 रुपये या इससे अधिक हो। पोलिंग ऑफिसर ऐसे लोगों को बनाने का सुझाव दिया, जो साक्षर जरूर हों और अगर सरकारी कर्मचारी हों, तो और भी अच्छा। आयोग का कहना था कि जरूरत पड़ने पर प्राइवेट टीचरों की मदद भी ली जा सकती है। चुनाव के तौर-तरीकों का प्रैक्टिकल नॉलेज देने के लिए कर्मचारियों को जमकर ट्रेनिंग दी गई। सभी राज्यों में जगह-जगह मॉक इलेक्शन कराए गए। पहला रिहर्सल राजस्थान के उदयपुर में 5 अगस्त 1951 को हुआ। इसमें राजस्थान के सभी जिला चुनाव अधिकारी और अजमेर स्टेट के चुनाव अधिकारी शामिल हुए। सुकुमार सेन हर राज्य में कम से कम एक मॉक इलेक्शन में खुद गए ताकि किसी भी चूक को दुरुस्त किया जा सके।
चार पुलिसवालों ने संभाला पोलिंग बूथ: पोलिंग स्टेशनों पर पुलिसकर्मियों की तैनाती स्थानीय जरूरतों के हिसाब से हुई, लेकिन सामान्य तौर पर एक पोलिंग स्टेशन का जिम्मा एक ASI यानी असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर और तीन सिपाहियों की टीम ने संभाला। कुछ जगहों पर ASI के बजाय हेड कांस्टेबल ने ही जिम्मेदारी संभाली। पुलिस के पास बैलट पेपर और बैलट बॉक्स लाने-ले जाने की जिम्मेदारी भी थी। कुलमिलाकर 3 लाख 38 हजार 854 पुलिसकर्मियों की मदद से पहला आम चुनाव सफलतापूवर्क संपन्न हुआ।