Trump Immigration Policy on Indians and White Africans : डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के दोबारा अमेरिका (America) की सत्ता में आने के बाद इमिग्रेशन नीति (Immigration Policy) को लेकर बड़ा बदलाव देखने को मिला है। भारतीयों (Indians) समेत कई देशों के नागरिकों को ट्रंप प्रशासन ने अमेरिका से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इन लोगों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग थे, जो बिना वैध वीजा के या फिर एजेंट्स के जाल में फंसकर अमेरिका पहुंचे थे। ब्राजील (Brazil), मेक्सिको (Mexico), पाकिस्तान (Pakistan), श्रीलंका (Sri Lanka), बांग्लादेश (Bangladesh) और भारत (India) के लोगों को ट्रंप ने बिना रहम दिखाए वापस भेज दिया।
इसके उलट, ट्रंप प्रशासन ने दक्षिण अफ्रीका (South Africa) से आए वाइट अफ्रीकन (White Africans) लोगों का अमेरिका में गर्मजोशी से स्वागत किया। सोमवार को वॉशिंगटन (Washington) एयरपोर्ट पर 49 वाइट अफ्रीकन लोगों का जहाज उतरा, जिन्हें अमेरिका सरकार की तरफ से भेजे गए विमान द्वारा लाया गया। ट्रंप ने सत्ता में आते ही शरणार्थियों के प्रवेश पर रोक लगा दी थी, लेकिन वाइट अफ्रीकन को इससे बाहर रखा गया।
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि दक्षिण अफ्रीका में वाइट अफ्रीकन अल्पसंख्यक हैं और उन्हें वहां नस्लीय भेदभाव, हिंसा और नौकरियों से वंचित करने जैसे मामलों का सामना करना पड़ता है। इस आधार पर उन्हें अमेरिका में बसने की अनुमति दी गई। फिलहाल 8000 और वाइट अफ्रीकन ने अमेरिका में बसने की इच्छा जताई है।
डोनाल्ड ट्रंप ने इस पर बयान देते हुए कहा कि “हम इन्हें नागरिकता देंगे क्योंकि ये अपने देश में नरसंहार का शिकार हुए हैं।” उन्होंने दावा किया कि “दक्षिण अफ्रीका में श्वेत किसानों को मारा जा रहा है और उनकी जमीनें छीनी जा रही हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका में श्वेत और अश्वेत में कोई भेद नहीं किया जाता।
हालांकि, न्यूयॉर्क टाइम्स (New York Times) की एक रिपोर्ट ने ट्रंप के दावे पर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2020 से मार्च 2024 के बीच दक्षिण अफ्रीका के खेतों में कुल 225 हत्याएं हुईं, जिनमें से 101 मजदूर थे — अधिकतर अश्वेत। वहीं, 53 हत्याएं श्वेत लोगों की थीं।
अमेरिका के एक वर्ग ने ट्रंप की इस नीति को भेदभावपूर्ण बताया है। उनका मानना है कि ट्रंप प्रशासन जानबूझकर वाइट अफ्रीकन को प्राथमिकता दे रहा है और अन्य देशों के नागरिकों को नजरअंदाज कर रहा है। यह नीति अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार और समानता के सिद्धांतों पर भी सवाल खड़े करती है।