नई दिल्ली, 18 अक्टूबर (The News Air): केंद्र सरकार ने वैवाहिक बलात्कार पर अपना नजरिया साफ कर दिया है। उसने कहा कि इससे समाज पर दुष्परिणाम पड़ेगा, लेकिन वैवाहिक बलात्कार को हकीकत मानते हुए इसे रोकने का कानून बनाने की मांग करने वाले तरह-तरह की दलीलें दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर गुरुवार को भी सुनवाई हुई। सर्वोच्च न्यायालय ने वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए सवाल उठाया कि क्या वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से शादी जैसे पवित्र बंधन को कमजोर नहीं किया जाएगा?
सुप्रीम कोर्ट का गंभीर सवाल
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ताओं से यह भी पूछा कि क्या पतियों पर बलात्कार का आरोप लगाने से रोकने वाले कानूनी अपवाद को हटाने से एक अलग तरह का अपराध ही नहीं बन जाएगा? इस पर कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ वकील करुणा नंदी ने कहा कि अपवाद को हटाने से कोई अलग अपराध नहीं बनेगा।
याचिकाकर्ता की वकील की दलील जानिए
उन्होंने कहा, ‘कोई नया अपराध नहीं बनेगा। शादी एक संस्था नहीं बल्कि एक निजी मामला है… (मौजूदा) कानून पतियों को दर्जा आधारित छूट देता है।’ नंदी ने कहा कि यह पुरुष बनाम महिला का मामला नहीं है बल्कि यह सर्वजन बनाम पितृसत्ता का मामला है। उन्होंने आगे कहा कि एक विवाहित महिला को शादी में अधीनता के लिए मजबूर करना और उसकी स्वायत्तता को कमजोर करना, उसे एक मूरत मानकर शादी में समान अधिकारों से वंचित करने के समान है।
पति के खिलाफ रेप केस कराने की हो छूट
नंदी ने कहा कि पति-पत्नी के बीच समानता होनी चाहिए और पत्नी को अधीनता के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने गुरुवार को मामले में दलीलें शुरू कीं और सुप्रीम कोर्ट से उस अपवाद को ‘असंवैधानिक’ बताते हुए हटाने का आग्रह किया जो एक पत्नी को अपने पति पर बलात्कार का मुकदमा चलाने से रोकता है। पीठ की ओर से न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने नंदी से पूछा, ‘तो आप कह रही हैं कि जब एक पत्नी सेक्स करने से इनकार करती है तो पति के पास तलाक मांगने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है?’
पत्नी सेक्स से इनकार करे तो…
इसके जवाब में नंदी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘अगले दिन का इंतजार करें या ज्यादा आकर्षक बनें या फिर उससे (पत्नी से) बात करें।’ उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे समाज में लोग बदल रहे हैं, संविधान को भी बदलना चाहिए। याचिकाकर्ताओं के एक अन्य वकील ने सुप्रीम कोर्ट से मामले को संविधान पीठ को भेजने पर विचार करने का आग्रह किया। इस महीने की शुरुआत में केंद्र ने एक हलफनामा दायर कर वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने वाली याचिकाओं का विरोध किया था।
…तो विवाह नाम की संस्था पर होगा खतरा: केंद्र
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा था कि अगर एक पुरुष अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाता है और पत्नी उसे ‘बलात्कार’ बताकर मुकदमा करती है तो पुरुष को कानून के तहत दंड मिलेगा। अगर ऐसा हुआ तो वैवाहिक संबंध गंभीर रूप से प्रभावित होंगे और यह विवाह की संस्था में गंभीर गड़बड़ी पैदा कर सकता है। केंद्र ने यह रुख अपनाया है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करना सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा
मंत्रालय ने तर्क दिया कि यह मुद्दा कानूनी से ज्यादा सामाजिक है, जिसका समाज पर सीधा असर पड़ता है। हलफनामे में कहा गया है कि इस मुद्दे पर ‘सभी हितधारकों से उचित परामर्श या सभी राज्यों के विचारों को ध्यान में रखे बिना फैसला नहीं किया जा सकता है’। मंत्रालय ने कहा, ‘शादी से एक महिला की सहमति लेने की जरूरत खत्म नहीं हो जाती है और इसका उल्लंघन करने पर परिणामस्वरूप दंडात्मक परिणाम भुगतने पड़ते हैं। हालांकि, शादी के भीतर इस तरह के उल्लंघन के परिणाम उससे अलग होते हैं जो शादी के बाहर महिला से जबरन किए जाने के होते हैं।’