फिर हार के डर से Rahul Gandhi ने यूपी में बदल ली सीट,

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नई दिल्ली, 3 मई (The News Air): कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और केरल के वायनाड से सांसद राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट से नामांकन किया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमलावर हो गए। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि राहुल गांधी ने वायनाड में अपनी हार भांप ली है, इसलिए उन्हें रायबरेली का रुख करना पड़ा है। पीएम मोदी ने राहुल पर हमला बोलते हुए कहा, ‘अमेठी सीट से हारने के बाद वायनाड जाने वाले कांग्रेस के ‘शहजादे’ अब रायबरेली से चुनाव लड़ रहे हैं। उन्हें पता है कि इस बार वह वायनाड भी हारेंगे।’ राहुल ने अपनी मौजूदा संसदीय सीट वायनाड से भी नामांकन भरा था। इस सीट पर मतदान दूसरे चरण में ही संपन्न हो चुका है। सवाल उठता है कि क्या प्रधानमंत्री का यह दावा ठोस तर्कों पर आधारित है? क्या इस बार वायनाड से राहुल गांधी हार जाएंगे और क्या रायबरेली में वो अपनी मां सोनिया गांधी की विरासत को संभालने में कामयाब रहेंगे? सवाल है कि अगर राहुल वायनाड और रायबरेली, दोनों जीत गए या फिर दोनों जगह से हार गए तो क्या होगा?

रायबरेली में बीते दो बार की चुनावी कहानी जान लीजिए

रायबरेली में राहुल गांधी की हार का दावा करते हुए पीएम ने संसद में अपने भाषण की याद दिलाई। उन्होंने सोनिया गांधी पर तंज कसते हुए कहा, ‘ओपिनियन पोल’ या फिर ‘एक्जिट पोल’ की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि मैंने संसद में बहुत पहले उनकी (कांग्रेस) हार की बात कह दी थी। जब उनके वरिष्ठ नेता अपनी लोकसभा सीट छोड़कर राजस्थान से राज्यसभा जा रहे हैं तो यह इस बात का सबूत है कि उन्होंने हार भांप ली है।’ यह सच है कि रायबरेली में सोनिया गांधी की जीत का अंतर घटता जा रहा था। 2014 में सोनिया गांधी ने अपनी पारिवारिक सीट पर 3,52,713 (42.7) वोटों के अंतर से बीजेपी कैंडिडेट अजय अगरवाल को हराया था। तब सोनिया गांधी को 5,26,434 (63.8%) वोट मिले थे जबकि अगरवाल को 1,73,721 (21.1%) वोटों से ही संतोष करना पड़ा था। लेकिन 2019 के चुनाव में सोनिया गांधी की जीत का अंतर सिमटकर 1,67,178 (17.44%) वोटों तक रह गया। तब सोनिया को 5,34,918 (55.78%) वोट मिले जबकि बीजेपी कैंडिडेट दिनेश प्रताप सिंह ने 3,67,740 (38.4%) वोट हासिल करने में सफलता पाई। यानी एक चुनाव के अंतर में बीजेपी ने रायबरेली में 17 प्रतिशत से ज्यादा वोट बढ़ा लिया जबकि कांग्रेस पार्टी 8% वोट घट गया। क्या इस बार बीजेपी इस 17% वोट का अंतर पाट लेगी? आइए इस सवाल का जवाब उत्तर प्रदेश में ही गांधी परिवार के एक और गढ़ अमेठी में ढूंढने की कोशिश करते हैं।

अमेठी स्मृति इरानी ने पलट दी बाजी

सोनिया संसद में रायबरेली से तो राहुल अमेठी का प्रतिनिधित्व किया करते थे। लेकिन 2019 में बीजेपी नेता स्मृति इरानी ने राहुल गांधी को हराकर गांधी परिवार से अमेठी की विरासत झटक ली। स्मृति ने अमेठी से ही 2014 के चुनाव में भी राहुल गांधी के खिलाफ ताल ठोकी थी, लेकिन तब उन्हें सफलता नहीं मिली थी। 2014 के चुनाव में राहुल गांधी ने 4,08,651 (46.7%) वोट पाकर स्मृति इरानी को 107,903 वोटों के अंतर से हरा दिया। स्मृति को तब 3,00,748 (34.4%) वोट मिले थे। प्रतिशत में देखें तो राहुल के मुकाबले स्मृति के हिस्से 12.3% वोट कम आए थे। अगली बार 2019 का चुनाव हुआ तो स्थिति पलट गई। स्मृति इरानी ने 4,68,514 (49.7%) वोट लाकर राहुल गांधी को मात देने का करिश्मा कर दिया। राहुल गांधी 4,13,394 (43.9%) वोट ही हासिल कर सके और स्मृति से 55,120 (5.8%) वोटों के अंतर से मात खा गए। इसका मतलब है कि स्मृति की अगुवाई में भाजपा ने अमेठी में सिर्फ पांच साल में अपना वोट प्रतिशत 12.3+5.8 यानी कुल 18.10 प्रतिशत वोट बढ़ा लिए। यह आंकड़ा रायबरेली में कांग्रेस-बीजेपी के बीच 2019 चुनाव के अंतर से ज्यादा है।

रायबरेली में इस बार पिछली बार की अमेठी जैसा हाल

अगर रायबरेली में भी अमेठी जैसा करिश्मा हो जाए तो कांग्रेस इस बार वहां भी हार सकती है। मजे की बात है कि रायबरेली में इस बार वही राहुल गांधी हैं जिनके अमेठी में रहते बीजेपी ने अपना गैप भर लिया था। दूसरी तरफ जिस तरह अमेठी में बीजेपी ने राहुल के सामने स्मृति इरानी को ही दुहरा दिया था, उसी तरह रायबरेली में भी अपने कैंडिडेट दिनेश प्रताप सिंह को भी फिर से टिकट दे दिया है। अमेठी में स्मृति ने दूसरा मौका मिलने पर 18% वोट बढ़ा लिए तो क्या दिनेश प्रताप भी फिर से मिले मौके को हाथ से जाने नहीं देंगे और स्मृति के बराबर चुनौती को पार पा लेंगे? रायबरेली में इस बार बीजेपी ने 18% वोट बढ़ा लिया तो अमेठी का इतिहास बताता है कि स्थिति बदल सकती है। इस तरह इस बार रायबरेली में जहां राहुल गांधी के सामने मां की विरासत बचाने की चुनौती है तो दिनेश प्रताप सिंह के सामने अमेठी जैसा इतिहास रचने का मौका। अगर राहुल हारे तो बीजेपी और पीएम मोदी को यह कहने का मौका मिल जाएगा कि राहुल गांधी सीट सिलेक्शन में भी मां की आंचल में जा छिपे, फिर भी उन्हें मुंह की ही खानी पड़ी। लेकिन अगर वो रायबरेली से जीत गए तो? अगर राहुल रायबरेली और वायनाड दोनों जगह से जीत गए तो?

क्या होगा अगर वायनाड और रायबरेली में आए एक जैसा रिजल्ट?

पहले तो इस सवाल को ही परखें कि आखिर राहुल गांधी के वायनाड से जीतने पर संदेह क्यों जताई जा रही है? इसके पीछे बड़ी वजह है वायनाड में पिछली बार के मुकाबले इस बार राहुल के सामने खड़ी कैंडिडेट। राहुल गांधी ने पिछली बार मुस्लिम और ईसाई मतदाताओं के दबदबे वाले वायनाड लोकसभा सीट को सुरक्षित समझा था। अमेठी में हार की आशंका के बीच राहुल का यह फैसला सही साबित हुआ था और वो वायनाड में भाकपा प्रत्याशी को हराकर संसद पहुंच गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को वायनाड में 7,06,367 (64.7%) जबकि प्रतिद्वंद्वी सीपीआई प्रत्याशी 2,4,597 (25.1%) वोट ही मिले थे। इस बार हालात अलग हैं। प्रदेश के सत्ताधारी वाम गठबंधन ने इस बार अपना प्रत्याशी बदल दिया है। इस बार राहुल का भाकपा महासचिव डी राजा की पत्नी एनी राजा से मुकाबला है। हालांकि, पिछली बार की तरह ही इस बार भी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) का समर्थन राहुल गांधी को प्राप्त है। वायनाड के मुस्लिम मतदाताओं पर आईयूएमल का बहुत प्रभाव है, लेकिन एनी राजा का अपने सपोर्ट बेस है। इसलिए वहां राहुल के लिए जीत आसान नहीं बताई जा रही है। लेकिन अगर राहुल वायनाड से भी जीत गए तो कहा जा रहा है कि वो रायबरेली का ही रुख करेंगे क्योंकि उन्हें देश के सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों (80 सीटों) वाले राज्य में गांधी परिवार का प्रतिधिनित्व खत्म हो जाए, यह कांग्रेस पार्टी के लिए भारी रणनीतिक गलती होगी।

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