Donald Trump Greenland Plan : अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और एक बार फिर सत्ता संभालने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप अपनी ‘विस्तारवादी’ सोच को लेकर दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गए हैं। इस बार उनकी नजर डेनमार्क के अधिकार क्षेत्र में आने वाले विशाल आर्कटिक द्वीप ‘ग्रीनलैंड’ (Greenland) पर है। ट्रंप ने साफ कर दिया है कि वे अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर ग्रीनलैंड को हर हाल में हासिल करना चाहते हैं। उनकी इस जिद ने डेनमार्क के साथ एक नया कूटनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है।
विशेष दूत की नियुक्ति और ट्रंप का प्लान
डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड को हथियाने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए लुईसियाना के रिपब्लिकन गवर्नर Jeff Landry को ग्रीनलैंड के लिए अमेरिका का ‘विशेष दूत’ (Special Envoy) नियुक्त कर दिया है। ट्रंप का मानना है कि ग्रीनलैंड में अमेरिका की मौजूदगी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य है। एक सवाल के जवाब में ट्रंप ने कहा, “अगर आप ग्रीनलैंड के तटों पर नजर डालें, तो आपको वहां हर जगह रूसी और चीनी जहाज मिलेंगे। इसलिए हमें इसकी जरूरत है और हम इसे प्राप्त करके रहेंगे।”
डेनमार्क और ग्रीनलैंड का करारा जवाब
ट्रंप के इस बयान और विशेष दूत की नियुक्ति पर डेनमार्क और ग्रीनलैंड ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। ग्रीनलैंड के एक प्रमुख नेता जेम्स फ्रेडरिक नील्सन ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि “ग्रीनलैंड यहां के लोगों का है और कोई भी दूसरा देश अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर इस पर कब्जा नहीं कर सकता।” 2009 में ग्रीनलैंड को काफी हद तक स्वायत्तता मिल चुकी है, हालांकि यह अभी भी डेनमार्क किंगडम का हिस्सा है। डेनमार्क ने भी ट्रंप की आलोचना करते हुए इसे संप्रभुता का उल्लंघन बताया है।
खनिज और रणनीतिक महत्व
आखिर ट्रंप ग्रीनलैंड के पीछे क्यों पड़े हैं? इसके दो मुख्य कारण हैं। पहला, ग्रीनलैंड प्राकृतिक और खनिज संसाधनों (Mineral Resources) का भंडार है। अमेरिका इन संसाधनों पर कब्जा करके चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है। दूसरा और सबसे अहम कारण इसकी ‘रणनीतिक लोकेशन’ है। ग्रीनलैंड यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बीच स्थित है। यहां बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम तैनात करके अमेरिका अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी रूस को सीधी चुनौती दे सकता है और उसे घेर सकता है।
रूस और चीन के बढ़ते प्रभाव का डर
ट्रंप ने अपनी मंशा जाहिर करते हुए तर्क दिया है कि आर्कटिक क्षेत्र में रूस और चीन की गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं। ग्रीनलैंड के आसपास चीनी और रूसी जहाजों की मौजूदगी अमेरिका के लिए खतरे की घंटी है। इसी खतरे को कम करने के लिए वे ग्रीनलैंड को अमेरिकी प्रशासन का हिस्सा बनाना चाहते हैं। हालांकि, जानकारों का मानना है कि यह कदम अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संप्रभुता के सिद्धांतों के खिलाफ है।
विश्लेषण: 21वीं सदी में उपनिवेशवाद की वापसी?
डोनाल्ड ट्रंप का यह कदम 21वीं सदी में एक नए तरह के ‘उपनिवेशवाद’ (Neo-colonialism) की आहट जैसा है। किसी संप्रभु क्षेत्र को खरीदने या उस पर कब्जा करने की बात करना आधुनिक कूटनीति में एक असामान्य और आक्रामक व्यवहार है। यह ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति का चरम रूप है, जहां दूसरे देशों की संप्रभुता को दरकिनार कर अपने हितों को साधा जा रहा है। अगर अमेरिका इस दिशा में आगे बढ़ता है, तो नाटो (NATO) के सहयोगी देश डेनमार्क के साथ उसके रिश्ते खराब होना तय है और आर्कटिक क्षेत्र में एक नई ‘कोल्ड वॉर’ शुरू हो सकती है।
जानें पूरा मामला
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और खनिज संसाधनों की जरूरतों का हवाला देते हुए ग्रीनलैंड को खरीदने या उस पर कब्जा करने की इच्छा जताई है। इसके लिए उन्होंने लुईसियाना के गवर्नर जेफ लैंड्री को विशेष दूत भी नियुक्त कर दिया है। ग्रीनलैंड, जो डेनमार्क का एक स्वायत्त क्षेत्र है, ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है।
मुख्य बातें (Key Points)
-
डोनाल्ड ट्रंप ने ग्रीनलैंड के लिए लुईसियाना के गवर्नर को विशेष दूत नियुक्त किया।
-
ट्रंप का तर्क: ग्रीनलैंड के आसपास रूस और चीन का प्रभाव बढ़ रहा है।
-
ग्रीनलैंड में खनिजों का भंडार है और इसकी लोकेशन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
-
ग्रीनलैंड और डेनमार्क ने ट्रंप के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।
-
अमेरिका यहां मिसाइल डिफेंस सिस्टम लगाकर रूस को घेरना चाहता है।






