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रेगिस्तान का वो पेड़, जिसे बचाने के लिए 365 बिश्वोईयों ने दे दी थी अपनी जान… 300 साल पुरानी है कहानी

The News Air by The News Air
गुरूवार, 24 अक्टूबर 2024
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रेगिस्तान का वो पेड़, जिसे बचाने के लिए 365 बिश्वोईयों ने दे दी थी अपनी जान… 300 साल पुरानी है कहानी
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नई दिल्ली, 24 अक्टूबर (The News Air): “सर संताय रूंख रहे तो भी सस्ती जान (कटा हुआ सिर कटे हुए पेड़ से सस्ता है)”…. आज के वक्त में हम में से ज्यादातर लोग अपने फायदे के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे है, लेकिन आज से ठीक 294 साल पहले 363 लोगों ने एक पेड़ को बचाने के लिए अपनी जान गंवा दी थी. 11 सितंबर 1730 ये वो तारीख है जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होने के साथ साथ हर बिश्नोई समुदाय के शख्स और पर्यावरण की रक्षा करने वाले लोगों के जेहन की गहराई में समाई है.

इस तारीख को राजस्थान के जोधपुर के खेझरली या खेजड़ली गांव में लॉरेंस बिश्नोई के पूर्वज यानी अमृता देवी और उनकी तीन बेटियों समेत 363 लोगों ने खेजड़ी के एक पेड़ के साथ कट कर अपनी जान गंवा दी. ऐसे में लॉरेंस बिश्नोई के पूर्वजों की वजह से ही भारत में हर साल भारत में 11 सितंबर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है.

प्रकृति के लिए दे दी थी अपनी जान

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बिश्नोई समुदाय के प्रकृति के प्रति अटूट प्रेम सार्वजनिक चर्चा में तब आया जब गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई गिरोह ने दावा किया कि उसने अभिनेता सलमान खान से रिश्ते होने के कारण बाबा सिद्दीकी की हत्या कर दी. सलमान पर राजस्थान में 1998 में फिल्म ‘हम साथ-साथ हैं’ की शूटिंग के दौरान दो काले हिरणों के शिकार का आरोप लगा था, जिसका बदला लॉरेंस बिश्नोई गिरोह अब तक ले रहा है. इस काले हिरण की हत्या के कारण सलमान खान बिश्नोई गैंग के निशाने पर हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि 300 साल पहले आखिर उस दिन क्या हुआ जब लॉरेंस बिश्नोई के पूर्वजों ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपनी जान दे दी थी और क्यों लॉरेंस बिश्नोई के लिए आज भी उसकी विरासत जारी है?

क्या थी वजह ?

किंवदंती के अनुसार 1730 राजस्थान के जोधपुर में उन दिनों मारवाड़ राजा अभय सिंह का शासन हुआ करता था. अभय सिंह अपने लिए एक महल बानो की योजना बना रहा है. महल बनाने के लड़कियां चाहिए थीं. हालांकि राजस्थान के थार रेगिस्तान वाले एरिया में ज्यादातर भूमि बंजर है, जिस वजह से पेड़ कम हैं. ऐसे में राजा ने रियासत के हाकिम गिरधारी दास भंडारी के नेतृत्व में अपने कर्मचारियों को खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरिया) काट कर लाने के लिए कहा. खेजड़ली गांव ढेरों खेजड़ी के पेड़ थे. ये सदाबहार पेड़ होते हैं, जिन्हें रेगिस्तान की जीवन रेखा माना जाता है. खेजड़ली गांव बिश्नोई समुदाय का गांव था

खेजड़ी पेड़ की जड़ें पर्यावरण में नाइट्रोजन को स्थिर करती हैं, जिससे मिट्टी उपजाऊ बनती है. ऐसे में जब अमृता देवी बिश्नोई को यह बात पता चली तो वह अपनी तीन बेटियों के साथ पेड़ से लिपट गईं. बिश्नोई धर्म में हरे और उपजाऊ पेड़ों को काटना मना है. ऐसे में राजा के सैनिकों के खिलाफ अमृता देवी ने जमकर प्रदर्शन किया, क्यों कि सैनिकों की हरकत न केवल उनके गांव के पवित्र वृक्ष को नष्ट कर रही थी बल्कि उनके धर्म को भी ठेस पहुंचा रही थी. अमृता देवी के विरोध की बात जब खेजड़ली गांव वालों को पता चली तो वो भी वहां पहुंच गए. साथ ही आस-पास के गांवों से भी बिश्नोई समाज के लोग झुंड बनाकर आए और एक-एक कर पेड़ों से लिपटने लगे. ऐसे में उस दिन बिश्नोई समाज के 83 गांव के 363 लोग पेड़ों को बचाने गए थे.

हालांकि सैनिकों के पास राजा का आदेश था. ऐसे में वे बिश्नोई समुदाय के व्यवहार से प्रभावित नहीं हुए. उन्होंने ग्रामीणों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए पेड़ों को काटने से पहले बिश्नोई ग्रामीणों का सिर भी काट दिया. कुल मिलाकर, बिश्नोई समुदाय के 363 सदस्य उस दिन खेजड़ली के जंगल में शहीद हो गए, जिसमें महिलाएं भी थीं, पुरुष भी थे, बच्चे भी थे.

ऐसे में राजा अभय सिंह को गांव में हुए इस नरसंहार की जानकारी मिली तो उन्हें बहुत दुख हुआ और वह पश्चाताप में डूब गए. राजा ने तुरंत गांव में जाकर सैनिकों को पेड़ काटने से रोका और वहां पेड़ों और जानवरों को नुकसान पहुंचाने पर रोक लगा दी. यह कानून आज भी इस क्षेत्र में लागू है. इसके अलावा उन 363 बिश्नोई शहीदों की याद में, क्षेत्र में कई बबूल के पेड़ लगाए गए थे. कहा जाता है कि वे पेड़ अब भी वहीं हैं. उनका बलिदान भी गांव के एक स्मारक में संरक्षित है. साथ ही वहां उन 363 लोगों के नाम खुदे हुए हैं और स्मारक के शीर्ष पर अमृता देवी की एक मूर्ति है.

बिश्नोई पौधों और जानवरों की रक्षा क्यों करते हैं?

पश्चिमी राजस्थान के मारवाड़ के रेगिस्तानी क्षेत्र में 1485 ई. में इस बिश्नोई समुदाय की स्थापना गुरु महाराज जांबाजी ने की थी. उस क्षेत्र में अक्सर सूखा पड़ता था. क्षेत्र के निवासी अपने जानवरों को खिलाने के लिए लगातार पेड़ों को काट रहे थे. ऐसे में जब जंबाजी ने देखा, सूखे का स्तर बढ़ रहा है और अधिक मौतें हो रही हैं तब उन्होंने अपने भक्तों को समझाया कि यदि हम जानवरों और पर्यावरण को को बचाना चाहते हैं और तो हमें पेड़ों को भी बचाना होगा.

जंबाजी ने इसके 29 उपदेश या नियम पेश किये, जिनमें से लगभग सभी प्रकृति संरक्षण से संबंधित हैं. ऐसे में आज भी बिश्नोई समुदाय के अधिकतर लोग अपने पूर्वजों के बताये रास्ते पर चलते हैं. सभी बिश्नोईयों को बचपन से ही प्रकृति से प्रेम करना सिखाया जाता है। जानवर उनके लिए बच्चों की तरह हैं. बिश्नोई हिंदू धर्म को मानते हैं, लेकिन अपने मृतकों का दाह संस्कार नहीं करते है क्योंकि आग जलाने के लिए पेड़ को काटना पड़ता है.

सलमान खान पर काले हिरण के शिकार का आरोप 1998 में लगा था, तब लॉरेंस बिश्नोई बच्चे थे. हालांकि बिश्नोई बचपन से ही जानवरों और पौधों का संरक्षण करना सीखते हैं. ऐसे में लॉरेंस के मन में उसी समय से सलमान खान के प्रति नकारात्मक रवैया विकसित हो गया. गैंगस्टर बनने के बाद सलमान उनकी जिंदगी का मुख्य टारगेट बन गए हैं. एक इंटरव्यू में लॉरेंस बिश्नोई ने कहा था, ”हमें पैसा नहीं चाहिए. हम बस यही चाहते हैं कि वह (सलमान खान) हमारे समुदाय के मंदिर में जाएं और हमसे माफी मांगें.’ उन्होंने काले हिरण का शिकार करके हमारे पूरे समुदाय का अपमान किया. हालांकि सलमान उस वक्त माफी मांगने में अनिच्छुक थे. इस मामले में सलमान को शुरुआत में पांच साल जेल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया.

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