Gujarat Samachar ED Raid : गुजरात (Gujarat) की मीडिया इंडस्ट्री में एक बड़ा धमाका तब हुआ जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने दो दिनों तक तलाशी अभियान चलाने के बाद चर्चित अखबार ‘गुजरात समाचार’ (Gujarat Samachar) के मालिक बाहुबली शाह (Bahubali Shah) को हिरासत में ले लिया। इस घटना ने न केवल राज्य में हलचल मचा दी बल्कि दिल्ली तक राजनीतिक प्रतिक्रियाओं की लहर दौड़ गई। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने इस कार्रवाई को लोकतंत्र की आवाज़ को दबाने का षड्यंत्र बताया है।
सूत्रों के मुताबिक, बाहुबली शाह के बड़े भाई और ‘गुजरात समाचार’ के मैनेजिंग एडिटर श्रेयांश शाह (Shreyansh Shah) ने बताया कि इनकम टैक्स विभाग ने दो दिनों तक उनके कई ठिकानों पर छापेमारी की। उसके बाद गुरुवार (Thursday) को ईडी के अधिकारी बाहुबली शाह की गिरफ्तारी का वारंट लेकर आए और उन्हें साथ ले गए। यह गिरफ्तारी एक ऐसे समय पर हुई है जब मीडिया की आज़ादी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर देशभर में बहस तेज है।
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने सोशल मीडिया पर अपना बयान जारी करते हुए कहा कि, “‘गुजरात समाचार’ को खामोश करने की कोशिश केवल एक अखबार को दबाने की नहीं है, बल्कि ये लोकतंत्र की आवाज़ को खत्म करने की एक सोची-समझी साजिश है।” उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार आजकल डर की राजनीति कर रही है, और यही उसकी पहचान बन गई है। राहुल ने आगे लिखा, “देश न डंडे से चलेगा, न डर से, भारत चलेगा सच और संविधान से।”
इसी मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने भी तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि, “पिछले 48 घंटों में ‘गुजरात समाचार’ और ‘GSTV (Gujarat Samachar TV)’ पर इनकम टैक्स और ईडी की कार्रवाई और उसके बाद उनके मालिक बाहुबलीभाई शाह की गिरफ्तारी, ये सब महज इत्तेफाक नहीं है।” उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) अब उन सभी आवाजों को दबाने की कोशिश कर रही है जो सच बोलती हैं और सवाल पूछती हैं। केजरीवाल ने दावा किया कि “देश और गुजरात की जनता इस तानाशाही का जवाब बहुत जल्द देगी।”
यह मामला अब न केवल एक अखबार की स्वतंत्रता का है, बल्कि यह पूरे भारतीय लोकतंत्र के स्वरूप और सरकार की आलोचना करने वाले मीडिया संस्थानों की सुरक्षा से भी जुड़ चुका है। इस घटनाक्रम ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अब लोकतांत्रिक संस्थाएं और स्वतंत्र मीडिया सरकार की आंखों की किरकिरी बनती जा रही हैं?






