एक जुलाई से तो नया कानून लागू, फिर सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के….

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नई दिल्ली, 10 जुलाई (The News Air): सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि एक मुस्लिम महिला दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा-125 के तहत अपने शौहर से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही कहा कि सीआरपीसी का यह धर्मनिरपेक्ष और धर्म तटस्थ प्रावधान सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होता है, फिर चाहे वे किसी भी धर्म से ताल्लुक रखती हों। जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने स्पष्ट किया कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को धर्मनिरपेक्ष कानून पर तरजीह नहीं मिलेगी।

पीठ ने जोर देकर कहा कि भरण-पोषण दान नहीं, बल्कि हर शादीशुदा महिला का अधिकार है और सभी शादीशुदा महिलाएं इसकी हकदार हैं, फिर चाहे वे किसी भी धर्म की हों। साथ ही कहा मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 को सीआरपीसी की धारा-125 के धर्मनिरपेक्ष और धर्म तटस्थ प्रावधान पर तरजीह नहीं दी जाएगी। इस फैसले के बीच कुछ लोगों के मन में यह भी सवाल आ रहा होगा कि जब एक जुलाई से तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं फिर कोर्ट ने CrPC की धारा-125 का जिक्र क्यों किया।

एक जुलाई से पूरे देश में तीन नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं। ब्रिटिश काल के भारतीय दंड संहिता(IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)और इंडियन एविडेंस एक्ट (IEC) की जगह भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)और भारतीय साक्ष्य संहिता (BSS)लागू हो गए हैं। हालांकि नए कानून उन्हीं मुकदमों पर लागू होंगे जो कानून लागू होने के बाद दर्ज किए गए। चूंकि मुस्लिम महिला मेंटनेंस केस 1 जुलाई से पहले ही दर्ज है। इस कारण प्रावधान के मुताबिक उसकी सुनवाई से लेकर सजा तक पुराने कानूनों के तहत ही होंगे।

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