नई दिल्ली। उत्तर भारत में लगातार जीत की पताका लहराने वाली भाजपा की निगाहें इस बार के लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत पर केंद्रित है। पार्टी के रणनीतिकार को इसमें कोई संदेह नहीं लगता है कि चुनाव परिणाम के बाद NDA खेमा 400 के पार पहुंच जाए। कर्नाटक के बाद अब भाजपा 39 सीटों वाले तमिलनाडु में कड़ी मेहनत कर रही है।
तमिलनाडु में भाजपा की राह कठिन, लेकिन असंभव नहीं
तमिलनाडु की द्रविड़ राजनीति में पैर जमाना भाजपा के लिए कठिन हो सकता है, लेकिन असंभव जैसा भी नहीं है। भाजपा अब जातीय समीकरणों का ‘राम-सेतु’ बांधकर इस चुनौती का सामना कर रही है और तमिलनाडु में भी ‘यूपी फॉर्मूला’ अपनाते हुए छोटे-छोटे स्थानीय दलों के साथ गठबंधन किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इन छोटे दलों को ‘नवरत्न’ नाम दिया है।
ऐसी है तमिलनाडु की राजनीति
तमिलनाडु की आबादी करीब 7.2 करोड़ है, जिसमें कई जातियों का प्रभुत्व है, जो स्थानीय राजनीति की दशा और दिशा को तय करती है। तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) का वर्चस्व काफी समय है। इन दोनों को दलों का अलग-अलग जातियों पर प्रभाव है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में DMK, कांग्रेस, CPI और CPI(M) ने 5 अन्य दलों के साथ सेक्युलर प्रोग्रेसिव अलायंस बनाया था और तमिलनाडु की सभी 39 सीटों पर जीत हासिल की थी।
अब भाजपा ने बिछाई नई बिसात
बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एनडीए में AIADMK के नेतृत्व वाले 7 दलों के गठबंधन किया था, लेकिन चुनाव परिणाम निराशाजनक थे। इस बार भाजपा ने एआईएडीएमके से नाता तोड़ दिया। इस बार चुनावी मैदान में DMK के नेतृत्व वाले I.N.D.I.A में 8 दल, AIADMK की अगुवाई वाले गठबंधन में 4 दल तो भाजपा ने अगुआ की भूमिका निभाते हुए 7 दल और एक निर्दलीय के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम का हाथ थामते हुए DMK और AIADMK के वर्चस्व को चुनौती दी है। इस तरह तीसरे मोर्चे के रूप में उभरे NDA के खेमे में 9 साथी हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवरत्न की संज्ञा दी है।