Surya Arghya Vidhi को लेकर अक्सर लोगों के मन में कई सवाल और भ्रांतियां होती हैं, जिन्हें दूर करते हुए पंडित जी ने शास्त्रों के अनुसार सही तरीका बताया है।
अगर आप सूर्य को अर्घ्य देते समय जल में मीठा मिलाते हैं, तो आपको तांबे के लोटे का इस्तेमाल भूलकर भी नहीं करना चाहिए। वहीं, अगर जल में शहद, गुड़ या चीनी नहीं डाल रहे हैं, तो तांबे का लोटा सबसे उत्तम है। एक वरिष्ठ और अनुभवी डिजिटल न्यूज़ संपादक के तौर पर, हम आपको इस वीडियो में दी गई विस्तृत जानकारी को सरल और प्रवाहमयी भाषा में बता रहे हैं, ताकि आप सही विधि से पूजा कर सकें।
तांबे का लोटा कब इस्तेमाल करें?
सूर्य को जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे को सबसे पवित्र माना जाता है, लेकिन इसके साथ एक जरूरी शर्त है। पंडित जी स्पष्ट करते हैं कि अगर आप जल में कोई मीठी चीज जैसे शहद, गुड़ या चीनी नहीं डाल रहे हैं, तो ही तांबे का लोटा इस्तेमाल करें। अगर मीठा डालना है, तो किसी अन्य धातु के पात्र का उपयोग करना चाहिए।
जल में क्या-क्या मिलाएं?
तांबे के लोटे में स्वच्छ जल भरें। उसमें थोड़े से चावल (अक्षत) और रोली डालें। अगर लाल फूल और दूर्वा (दूब घास) मिल जाए, तो उसे भी जल में शामिल कर लें। यह सामग्री सूर्य देव को अति प्रिय है।
अर्घ्य देने की सही दिशा और मंत्र
सूर्य देव जिधर से उदय होते हैं (पूर्व दिशा), उस ओर मुख करके खड़े हो जाएं। यह जरूरी नहीं है कि सूर्य देव आपको दिखाई ही दें। अपने माथे की सीध में लोटा रखें और “ॐ ब्रह्म स्वरूपिणे सूर्य नारायणाय नमः” मंत्र का उच्चारण करें।
तीन बार में दें जल
मंत्र बोलते हुए लोटे से थोड़ा सा (एक तिहाई) जल गिराएं। फिर लोटा सीधा करें और दोबारा उसी मंत्र का जाप करते हुए दूसरा हिस्सा जल गिराएं। तीसरी बार में मंत्र बोलते हुए पूरा जल समर्पित कर दें। यही सूर्य को अर्घ्य देने की सही शास्त्रोक्त विधि है।
जल कहां गिरे, इसकी चिंता न करें
कई लोगों को यह वहम होता है कि जल पैरों पर नहीं गिरना चाहिए या किसी अशुद्ध जगह पर नहीं जाना चाहिए। पंडित जी इस भ्रम को दूर करते हुए कहते हैं कि आप अर्घ्य पृथ्वी को नहीं, सूर्य को दे रहे हैं। लोटे से जल निकलते ही वह सूर्य देव को प्राप्त हो जाता है। उसके बाद जल कहां गिरता है या पैरों पर छींटे पड़ते हैं, इसका कोई दोष नहीं लगता।
देरी होने पर प्रायश्चित अर्घ्य
अगर आप सूर्योदय के 2 घंटे बाद जल चढ़ा रहे हैं, तो आपको एक अतिरिक्त ‘प्रायश्चित अर्घ्य’ देना होगा। इसके लिए सबसे पहले बिना मंत्र पढ़े एक बार जल गिराएं। उसके बाद तीन बार मंत्र के साथ विधिपूर्वक जल दें। यह विधान शास्त्रों में बताया गया है।
किस देवता के लिए कौन सी माला?
वीडियो में पंडित जी ने विभिन्न देवी-देवताओं के मंत्र जाप के लिए उपयुक्त मालाओं की भी जानकारी दी है:
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रुद्राक्ष की माला: इस पर किसी भी देवी-देवता का मंत्र जाप किया जा सकता है और सभी फलदायी होते हैं।
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हल्दी की माला: भगवान विष्णु, मां बगलामुखी (पीतांबरा) और बृहस्पति ग्रह के मंत्रों के लिए।
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स्फटिक की माला: शुक्र ग्रह और मां लक्ष्मी के मंत्रों के लिए।
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मूंगे की माला: हनुमान जी और मंगल ग्रह के मंत्रों के लिए।
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तुलसी की माला: भगवान राम, श्री कृष्ण, राधा रानी, सीता माता और भगवान विष्णु के मंत्रों के लिए।
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कमल गट्टे की माला: महालक्ष्मी और मां दुर्गा के मंत्रों के लिए।
विश्लेषण: आस्था और विधि का संगम
सूर्य को अर्घ्य देना भारतीय संस्कृति में केवल एक कर्मकांड नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है। सूर्य ऊर्जा और जीवन का स्रोत हैं। सही विधि से अर्घ्य देना न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि यह अनुशासन और दिन की सकारात्मक शुरुआत का भी प्रतीक है। तांबे के लोटे का विज्ञान भी है, क्योंकि तांबे के संपर्क में आने से जल शुद्ध होता है। हालांकि, मीठा मिलाने पर रासायनिक प्रतिक्रिया का डर रहता है, इसलिए मनाही की जाती है। पंडित जी का यह संदेश कि ‘सत्कर्म और सद्विचार ग्रहों की अशांति को भी शांति में बदल सकते हैं’, सबसे महत्वपूर्ण है।
जानें पूरा मामला
यह जानकारी एक धार्मिक वीडियो से ली गई है, जिसमें एक विद्वान पंडित सूर्य को अर्घ्य देने की सही विधि और विभिन्न मालाओं के महत्व पर विस्तार से चर्चा कर रहे हैं। वे आम लोगों के मन में उठने वाले सवालों, जैसे तांबे के लोटे का इस्तेमाल, जल गिरने का स्थान, और देरी से अर्घ्य देने के नियमों को स्पष्ट कर रहे हैं।
मुख्य बातें (Key Points)
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मीठा जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग न करें।
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“ॐ ब्रह्म स्वरूपिणे सूर्य नारायणाय नमः” मंत्र के साथ तीन बार में जल दें।
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सूर्योदय के 2 घंटे बाद अर्घ्य देने पर पहले एक बार बिना मंत्र के ‘प्रायश्चित अर्घ्य’ दें।
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रुद्राक्ष की माला पर सभी प्रकार के मंत्रों का जाप किया जा सकता है।






