एसकेएम, केंद्रीय मंत्रियों द्वारा अनुबंध खेती के किसान विरोधी प्रस्ताव को अस्वीकार करने पर – एसकेएम (अराजनीतिक) व केएमएम का स्वागत करता है
21 फरवरी 2024 को भाजपा-एनडीए सांसदों के निर्वाचन क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन का समर्थन करने के लिए सभी किसान मंचों से आग्रह किया
एमएसपी का मतलब ‘राजकोषीय आपदा’ है यह एक कॉर्पोरेट तर्क है- एमएसपी नहीं होने का मतलब मानव आपदा है, जो राष्ट्रीय संप्रभुता को कमजोर करना
किसानों के लिए एमएसपी का मतलब खाद्य सुरक्षा, फसल विविधीकरण, रोजगार सृजन और सरकार के लिए अधिक आय लाएगा
चंडीगढ़, 20 फरवरी (The News Air) एसकेएम ने केंद्रीय मंत्रियों द्वारा ए2+एफएल+50% के एमएसपी पर 5 फसलों के लिए पांच साल की अनुबंध खेती और फसल विविधीकरण के प्रस्ताव को खारिज करने और सभी मुख्य मांगों के हासिल होने तक संघर्ष जारी रखने के एसकेएम (एनपी) और केएमएम के फैसले का स्वागत किया। यह निर्णय भारत भर के किसानों की व्यापक एकता की दिशा में सही कदम है।
एसकेएम यह मानता है के इस समय को कृषि संकट के कारण भारी मानवीय आपदा है – हर दिन 27 किसान आत्महत्या कर रहे हैं और युवा किसान शहरी केंद्रों में मामूली वेतन पर काम करने के लिए प्रवासी मजदूर की श्रेणी में शामिल होने के लिए मजबूर हैं, जब की मोदी राज में 80 करोड़ लोग इस पर मुफ्त राशन पर निर्भर हैं। इस लिए कॉर्पोरेट ताकतों के खिलाफ किसान आंदोलन की सबसे बड़ी एकजुटता समय की मांग है। एसकेएम ने भारत भर के सभी किसान संगठनों से 21 फरवरी 2024 को भाजपा-एनडीए सांसदों के निर्वाचन क्षेत्रों में किसानों के विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करने का आग्रह किया है। जिसमे 9 दिसंबर 2021 को एसकेएम के साथ मोदी सरकार द्वारा हस्ताक्षरित समझौते को लागू करने और किसानों पर क्रूर राज्य दमन को रोकने की मांग की जाएगी।
एसकेएम यह मानता है कि यह प्रधानमंत्री और कार्यपालिका की जिम्मेदारी है कि वे 9 दिसंबर 2021 को एसकेएम के साथ हस्ताक्षरित समझौते को लागू करें और सभी फसलों के लिए कानूनी गारंटी सहित सी2+50% के हिसाब से एमएसपी लागू कर, 2014 के आम चुनाव के भाजपा घोषणापत्र में किए गए वादे के साथ न्याय करें।
कॉर्पोरेट हित की सेवा करने वाले “विशेषज्ञ” और मीडिया संपादकीय गलत व्याख्या करने पर लगे हुए हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सभी फसलों की खरीद के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी ‘राजकोषीय आपदा’ का कारण बन सकती है। यह कॉरपोरेट ताकतों का तर्क है। एसकेएम और सभी जन-समर्थक विशेषज्ञों एवं वैज्ञानिकों का तर्क है कि एमएसपी ना मिलने का मतलब मानवीय आपदा है – जैसा कि देश आज ग्रामीण इलाकों में देख रहा है – तीव्र गरीबी, ऋणग्रस्तता, बेरोजगारी और महगाई। एसकेएम, उत्पादन की लागत को कम करने के लिए सब्सिडी बढ़ाकर, धान और गेहूं जैसे मुख्य खाद्य उत्पादन पर लाभकारी आय सुनिश्चित करके किसानी कृषि को बचने के महत्व पर ध्यान केंद्रित कराना चाहता है। कुछ लोगों का मानना है, फसल विविधीकरण जल स्तर में गिरावट की समस्या को संबोधित करने में मदद करता है। किसान आंदोलन फसल विविधीकरण के खिलाफ नहीं है, लेकिन मुख्य खाद्य उत्पादन, खाद्य सुरक्षा और देश की संप्रभुता को कमजोर करके नहीं है।
यह तर्क कि केंद्र सरकार को सभी 23 फसलों के लिए किसानों को एमएसपी प्रदान करने के लिए 11 लाख करोड़ रुपये जुटाने पड़ेगे, निराधार है क्योंकि कानूनी रूप से गारंटीकृत खरीद का मतलब यह नहीं है कि सरकार को खुद खरीद करनी होगी और भुगतान करना होगा। बल्कि यह सुनिश्चित करना होगा कि कॉर्पोरेट ताकतें अपने मुनाफ़े का एक हिस्सा लाभकारी मूल्य के रूप में किसानों साझा करें। साथ ही केंद्र व राज्य सरकारें एवं सार्वजनिक क्षेत्र, उत्पादक सहकारी समितियों और गैर-कॉर्पोरेट निजी क्षेत्र को कटाई के बाद के कार्यों जैसे खरीद, प्राथमिक व दृतीय चरण का प्रसंस्करण, भंडारण एवं बुनियादी ढांचे के निर्माण तथा ब्रांडेड विपणन के लिए प्रोत्साहित करे। इस नीतिगत बदलाव से रोजगार सृजन होगा, मजदूरों और किसानों को बेहतर कीमत व मजदूरी मिलेगी तथा राज्य एवं केंद्र सरकारों को अधिक कर आय मिलेगी।