Sheikh Hasina Death Penalty : बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल ने 2024 के छात्र आंदोलन में मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई है। यह फैसला दुनिया के उन ताकतवर नेताओं की याद दिलाता है, जिन्होंने सत्ता के नशे में जनता का खून बहाया और अंततः उन्हें खुद भी फांसी के फंदे या गोलियों का सामना करना पड़ा।
बांग्लादेश में 2024 के छात्र आंदोलन को कुचलने और सैकड़ों युवाओं पर गोली चलवाने के आरोप में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल ने मौत की सजा सुना दी है। इतिहास गवाह है कि जब-जब किसी शासक ने अपनी ही जनता के खिलाफ क्रूरता की हदें पार कीं, उसका अंजाम बेहद दर्दनाक हुआ। यह खबर सिर्फ एक फैसला नहीं, बल्कि सत्ता के अहंकार और उसके पतन की एक और कहानी है।
सद्दाम हुसैन: 24 साल का शासन और फांसी का फंदा
इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन, जिन्होंने 1979 से 2003 तक सत्ता संभाली, का नाम इस सूची में सबसे ऊपर आता है। सद्दाम ने 1982 में दुजैल नरसंहार को अंजाम दिया था और कुर्दों पर रासायनिक हथियारों से हमला किया था। 2006 में उन्हें इन अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई गई और 30 दिसंबर को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।
मुअम्मर गद्दाफी: सड़क पर मिला मौत का इंसाफ
लीबिया के नेता मुअम्मर गद्दाफी का अंत भी शेख हसीना की मौजूदा स्थिति से काफी मिलता-जुलता है। 1969 से 2011 तक राज करने वाले गद्दाफी को ‘अरब स्प्रिंग’ के दौरान युवाओं के विद्रोह का सामना करना पड़ा था। विद्रोहियों ने उन्हें बिना किसी ट्रायल के पकड़ लिया और सिर्ते शहर में बीच सड़क पर पीट-पीटकर मार डाला। उनका खून से सना चेहरा आज भी दुनिया को याद है।
निकोलस सेउसेस्कु: क्रिसमस के दिन मिली मौत
रोमानिया के कम्युनिस्ट नेता निकोलस सेउसेस्कु ने 1965 से 1989 तक अपने देश को लोहे की मुट्ठी में जकड़ रखा था। भ्रष्टाचार और अत्याचारों से तंग आकर जनता ने विद्रोह कर दिया। 25 दिसंबर 1989 को एक बेहद संक्षिप्त ट्रायल के बाद फायरिंग स्क्वाड ने उन्हें गोली मार दी। क्रिसमस के दिन हुई उनकी मौत ने यह साबित कर दिया कि जनता का गुस्सा किसी भी तानाशाह को नहीं बख्शता।
चार्ल्स टेलर और परवेज मुशर्रफ: कैद और निर्वासन
लाइबेरिया के पूर्व राष्ट्रपति चार्ल्स टेलर (1997-2003) पर गृह युद्ध भड़काने और ‘ब्लड डायमंड्स’ के जरिए हथियार खरीदने का आरोप लगा। स्कॉटलैंड की एक विशेष अदालत ने 2012 में उन्हें 50 साल की सजा सुनाई, जो उम्रकैद के बराबर थी।
वहीं, पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ को 2019 में संविधान को ताक पर रखकर इमरजेंसी लगाने के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, सजा तामील होने से पहले ही 2023 में दुबई में निर्वासन के दौरान उनकी बीमारी से मौत हो गई।
गद्दार क्विसलिंग और भुट्टो की फांसी
द्वितीय विश्व युद्ध में नाजी जर्मनी का साथ देने वाले नॉर्वे के विदकुन क्विसलिंग को 1945 में देशद्रोह के लिए फांसी दी गई। उनका नाम आज भी ‘गद्दार’ (Quisling) शब्द का पर्यायवाची बन गया है। पाकिस्तान के ही जुल्फिकार अली भुट्टो को भी 1979 में एक सैन्य शासन के दौरान हत्या की साजिश रचने के आरोप में रावलपिंडी में फांसी दे दी गई थी।
‘जानें पूरा मामला’
यह पूरा घटनाक्रम बांग्लादेश में 2024 में हुए भारी छात्र विरोध प्रदर्शनों से जुड़ा है, जिसे दबाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने बल प्रयोग किया था। इसमें सैकड़ों छात्रों की जान गई थी। तख्तापलट के बाद बनी अंतरिम सरकार और इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल ने इसे मानवता के खिलाफ अपराध माना है। अब सवाल यह है कि क्या यह फैसला न्याय है या राजनीतिक बदला, और क्या अस्थिरता के दौर से गुजर रहा बांग्लादेश 2026 के चुनावों तक संभल पाएगा।
मुख्य बातें (Key Points)
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हसीना को सजा: 2024 छात्र आंदोलन में नरसंहार के लिए शेख हसीना को मौत की सजा सुनाई गई है।
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सद्दाम और गद्दाफी: सद्दाम हुसैन को फांसी मिली, जबकि गद्दाफी को विद्रोहियों ने सड़क पर ही मार डाला।
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इतिहास की सीख: रोमानिया के सेउसेस्कु से लेकर पाकिस्तान के भुट्टो तक, सत्ता के दुरुपयोग का अंत बुरा ही हुआ।
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भविष्य पर सवाल: बांग्लादेश में 2026 के चुनाव नजदीक हैं, लेकिन क्या हसीना वतन वापसी कर पाएंगी, यह बड़ा सवाल है।






