Saddam Hussein Oil Well Fires – इज़रायल (Israel) द्वारा ईरान (Iran) के पारस गैस फील्ड फेज 14 (Pars Gas Field Phase 14) पर एक बड़ी रिफाइनरी (Refinery) को निशाना बनाते हुए किए गए ड्रोन अटैक के बाद एक बार फिर तेल और आग की विनाशलीला की तस्वीरें दुनिया के सामने आ गई हैं। इस हमले के चलते रिफाइनरी में भीषण आग लग गई, जिससे चारों ओर घना धुआं फैल गया और प्रोडक्शन रोकना पड़ा। इससे स्थानीय सप्लाई चैन पर संकट मंडराने लगा है। इस घटना ने उन भयानक दिनों की याद दिला दी जब इराक (Iraq) के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन (Saddam Hussein) ने कुवैत (Kuwait) में करीब 600 तेल के कुओं (Oil Wells) में जानबूझकर आग लगवा दी थी।
यह भयावह घटना वर्ष 1991 की है, जब 2 अगस्त 1990 को सद्दाम हुसैन ने कुवैत पर हमला कर राजधानी पर कब्जा कर लिया था। कुवैत के शासक सऊदी अरब (Saudi Arabia) भाग गए और सद्दाम ने कुवैत को इराक का हिस्सा घोषित कर दिया। इसके बाद अमेरिका (America) और पश्चिमी देशों ने इराक के खिलाफ ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म (Operation Desert Storm) शुरू किया, जिसमें इराकी सेना को पीछे हटना पड़ा।
हालांकि जाते-जाते इराकी सेना ने तबाही मचाते हुए कुवैत के 600 से अधिक तेल के कुओं में आग लगा दी। इन कुओं से सैकड़ों फीट ऊंची लपटें उठ रही थीं और पूरा देश काले धुएं की चादर में लिपट गया। हालात इतने गंभीर थे कि कुवैत में धुएं के कारण सूरज भी नजर नहीं आता था। इन आगजनी से कुवैत की 85% इमारतें काली हो गई थीं और लोगों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा।
इस आग को बुझाने में पूरे 9 महीने लग गए। दुनियाभर के कई देशों की विशेषज्ञ टीमें जुटीं, लेकिन हर दिन औसतन 50 लाख बैरल कच्चा तेल जलता रहा। इराकी सैनिकों ने तेल को समंदर में बहाकर उसमें आग लगा दी थी ताकि अमेरिकी सेना की गति रोकी जा सके। इसके साथ ही उन्होंने ऑइल टर्मिनल्स (Oil Terminals) और रिफाइनरियों (Refineries) को भी तबाह कर दिया।
इस भीषण आग ने पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और मानव जीवन तीनों पर गहरा असर डाला। जानकारों का कहना है कि आज भी कुवैत उस समय की तबाही से पूरी तरह उबर नहीं पाया है। इज़रायल द्वारा ईरान की रिफाइनरी पर हुए हालिया ड्रोन अटैक ने एक बार फिर इतिहास की उस खौफनाक घटना को ताजा कर दिया है, जब सत्ता के लिए तेल को आग में झोंक दिया गया था।