Punjab Congress Leadership Change Sukhpal Khaira : पंजाब में तरनतारन उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त होने के बाद पार्टी के भीतर नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। बिहार के बाद तरनतारन में मिली करारी हार ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या 2027 में “अपनी बारी” का इंतजार कर रही पंजाब कांग्रेस की मौजूदा लीडरशिप के रहते यह संभव हो पाएगा?
हालात ऐसे बन गए हैं कि कांग्रेस को अब पंजाब में नई लीडरशिप पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। 140 साल पुरानी ग्रैंड ओल्ड पार्टी की पंजाब में ऐसी हालत हो गई है कि उसकी जमानत जब्त हो गई है।
‘वड़िंग और बाजवा को ‘चलता’ करने की जरूरत’
पार्टी में यह चर्चा जोरों पर है कि 2027 की लड़ाई जीतने के लिए सबसे पहले मौजूदा लीडरशिप को बदलने की जरूरत है।
माना जा रहा है कि नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग, दोनों को “चलता करने” (हटाने) और अभी से नई लीडरशिप को मौका देने की जरूरत है। 2025 का साल लगभग खत्म हो चुका है और 2026 चुनावी साल होगा, ऐसे में पार्टी के पास अब ज्यादा समय नहीं बचा है।
मौजूदा नेतृत्व पर आरोप है कि ये नेता सड़कों पर उतरकर मुद्दे उठाने में नाकाम रहे हैं। प्रताप सिंह बाजवा सिर्फ माझे (गुरदासपुर, कादियां) तक सीमित होकर रह गए हैं। वहीं, राजा वड़िंग अपने विवादित बयानों से पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
‘कैप्टन के बाद सेकंड लाइन लीडरशिप फेल’
कांग्रेस की एक बड़ी विफलता यह भी रही है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद पार्टी कोई सेकंड लाइन लीडरशिप पैदा ही नहीं कर पाई। जो नेता कैप्टन की छाया से बाहर निकलने की कोशिश भी करते थे, उनकी “लातें खींची गईं”।
तरनतारन उपचुनाव में भी कांग्रेस नेतृत्व गैंगस्टर के मुद्दे को उठाने में पूरी तरह विफल रहा, जबकि अकाली दल की उम्मीदवार पर गैंगस्टर (अपने दामाद) से धमकियां दिलवाने के आरोप लगते रहे। कांग्रेस ने इन मुद्दों को सड़क पर उठाने के बजाय चुप्पी साधे रखी।
‘खैरा, चन्नी या परगट सिंह: कौन होगा अगला चेहरा?’
नई लीडरशिप के लिए तीन नाम प्रमुखता से चर्चा में हैं: सुखपाल सिंह खैरा, चरणजीत सिंह चन्नी और परगट सिंह।
1. सुखपाल सिंह खैरा: भुलत्थ से विधायक खैरा का नाम सबसे आगे चल रहा है। करीब 60 वर्षीय खैरा की छवि एक जुझारू नेता की है, जो किसी भी मुद्दे को जोर-शोर से उठाते हैं। रिश्वत मामले में फंसे डीआईजी हरचरण सिंह भुल्लर का मुद्दा भी अकेले खैरा ने ही उठाया था, जबकि बाकी पार्टी चुप रही। पार्टी के भीतर उन्हें “अग्रेसिव लीडर” माना जा रहा है।
2. चरणजीत सिंह चन्नी: चन्नी को पार्टी “पिछड़े वर्ग का दलित लीडर” बताकर प्रमोट करती रही है। हालांकि, 111 दिन सीएम रहने के बाद वह अपनी दोनों सीटें हार गए थे, लेकिन अब वह लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं।
3. परगट सिंह: परगट सिंह को भी “साफ-सुथरी छवि” वाले नेता के तौर पर देखा जा रहा है।
‘समझौते करने वाले नेता’
पार्टी के भीतर ही मौजूदा लीडरशिप पर “समझौते” करने के आरोप लगते रहे हैं। राजा वड़िंग और प्रताप बाजवा पर यह पर्सेप्शन है कि वे सरकार के साथ “समझौते करके अपनी सियासत” चलाते हैं और लड़ाई नहीं लड़ सकते।
राणा गुरजीत सिंह जैसे नेताओं को भी बिजनेसमैन माना जाता है, जो अपने बिजनेस (जैसे शुगर मिल) चलाने के लिए सरकार से टकराव मोल नहीं लेना चाहते।
‘संगठन सृजन अभियान भी फ्लॉप?’
हाल ही में कांग्रेस ने ‘संगठन सृजन अभियान’ के तहत 27 जिला अध्यक्षों की नियुक्ति की, लेकिन इसमें भी 16 पुराने चेहरों को ही दोबारा चुन लिया गया।
27 अध्यक्षों में से केवल एक महिला (गुरशरण कौर रंधावा) को जगह दी गई, जो पहले से ही महिला कांग्रेस की अध्यक्ष हैं और उन्हें पटियाला देहाती का भी अध्यक्ष बना दिया गया। इसी तरह, आल इंडिया कांग्रेस सेक्रेटरी सुखविंदर सिंह डैनी को अमृतसर देहाती का अध्यक्ष बनाकर ‘एक व्यक्ति दो पद’ दे दिए गए। इससे साफ है कि पार्टी में कोई बड़ा बदलाव नहीं हो रहा है।
‘मुख्य बातें (Key Points)’
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तरनतारन उपचुनाव में कांग्रेस की जमानत जब्त होने के बाद पंजाब कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठी।
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2027 की तैयारी के लिए राजा वड़िंग और प्रताप बाजवा को हटाने की चर्चा; सुखपाल खैरा, चन्नी और परगट सिंह के नाम आगे।
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मौजूदा लीडरशिप पर ‘आप’ सरकार से ‘समझौता’ करने और सड़क पर मुद्दे न उठाने का आरोप है।
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कांग्रेस के ‘संगठन सृजन अभियान’ में भी पुराने चेहरों को ही जगह मिली, 27 में से सिर्फ 1 महिला अध्यक्ष बनाई गई।






