Pegasus Spyware : पेगासस (Pegasus) स्पाईवेयर केस में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान एक बड़ी और निर्णायक टिप्पणी की, जो न केवल कानूनी दृष्टिकोण से अहम है बल्कि देश की साइबर सुरक्षा नीति पर भी सीधा प्रभाव डालती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई देश स्पाईवेयर का उपयोग कर रहा है तो इसमें कोई गलत बात नहीं है, बशर्ते इसका इस्तेमाल राष्ट्र की सुरक्षा के लिए हो। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पेगासस से जुड़ी जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।
बार एंड बेंच (Bar & Bench) के अनुसार, अदालत ने कहा कि स्पाईवेयर रखना या उसका इस्तेमाल करना अपने-आप में गैरकानूनी नहीं है। इसका प्रयोग खास परिस्थितियों में और विशेष लोगों पर किया जा सकता है। लेकिन इस पर सवाल तभी खड़े होते हैं जब इसका दुरुपयोग सिविल सोसाइटी के लोगों या आम नागरिकों के खिलाफ होता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता से संबंधित किसी भी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। हालांकि, जिन व्यक्तियों को यह संदेह है कि वे निगरानी का हिस्सा रहे हैं, उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानकारी दी जा सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे संवेदनशील मामलों को सार्वजनिक बहस का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता।
सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने अमेरिका (USA) की एक जिला अदालत के फैसले का हवाला दिया और कहा कि व्हाट्सऐप (WhatsApp) ने स्वयं पेगासस स्पाईवेयर के ज़रिए हैकिंग की बात स्वीकार की है, यह कोई तीसरी पार्टी द्वारा लीक नहीं किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले में तकनीकी पैनल द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट को लेकर कहा कि उसे यह विचार करना होगा कि इसे व्यक्तिगत स्तर पर किस हद तक साझा किया जा सकता है। हालांकि, कोर्ट ने दो टूक कहा कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
यह मामला तब चर्चा में आया जब एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह (International Media Consortium) ने रिपोर्ट जारी की कि 300 से अधिक भारतीय मोबाइल नंबर पेगासस स्पाईवेयर की संभावित निगरानी सूची में शामिल थे। इससे पहले यह सवाल उठाया गया था कि क्या सरकार द्वारा नागरिकों की निजता का उल्लंघन किया गया।
अब सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि अगर स्पाईवेयर का इस्तेमाल राष्ट्रीय सुरक्षा के मकसद से किया जा रहा है, तो इसे अवैध नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि, सिविल सोसाइटी और व्यक्तिगत अधिकारों के हनन की आशंकाओं पर संवेदनशीलता बरतनी होगी। अदालत इस मामले की अगली सुनवाई 30 जुलाई को करेगी।








