UNSC Role of Pakistan : संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में पाकिस्तान (Pakistan) को मिली जिम्मेदारियों को लेकर कांग्रेस (Congress) नेता शशि थरूर (Shashi Tharoor) ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि पाकिस्तान को सुरक्षा परिषद (Security Council) की तालिबान प्रतिबंध समिति और आतंकवाद विरोधी समिति में मिली अध्यक्षता और उपाध्यक्ष पद से कोई व्यावहारिक असर नहीं होगा। थरूर ने कहा कि इन समितियों में फैसले आम सहमति (Consensus) से होते हैं, और कोई एक देश अपने दम पर कोई फैसला थोप नहीं सकता।
अमेरिका (USA) में विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों के एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल (Parliamentary Delegation) का नेतृत्व कर रहे थरूर ने कहा कि भारत (India) को पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद (Terrorism) के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन मिल रहा है। उन्होंने भरोसा जताया कि सुरक्षा परिषद में भारत अकेला नहीं है और पाकिस्तान को मिली जिम्मेदारियां केवल औपचारिक हैं, जिनका कोई प्रभावी नतीजा सामने नहीं आएगा।
पाकिस्तान को 2025-26 के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना गया है। इस कार्यकाल में वह तालिबान प्रतिबंध समिति (Taliban Sanctions Committee) की अध्यक्षता करेगा और आतंकवाद-रोधी समिति (Counter-Terrorism Committee) का उपाध्यक्ष भी होगा। इसके अतिरिक्त, पाकिस्तान सामान्य प्रतिबंध और प्रक्रियागत मुद्दों पर बनी यूएनएससी की अनौपचारिक कार्य समूहों में सह-अध्यक्ष भी रहेगा।
थरूर ने दूतावास (Embassy) में हुए संवाद के दौरान साफ कहा कि संयुक्त राष्ट्र की ये समितियां विचार-विमर्श और सहमति से काम करती हैं, और अकेले पाकिस्तान किसी नीति को आगे नहीं बढ़ा सकता। भारत का न्यूयॉर्क (New York) स्थित स्थायी मिशन इस पूरी स्थिति पर कड़ी नजर बनाए हुए है।
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि भारत ने कई बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान इस ओर खींचा है कि पाकिस्तान प्रतिबंधित आतंकियों और संगठनों को अपने यहां शरण देता है। उदाहरण के लिए, ओसामा बिन लादेन (Osama Bin Laden) सालों तक पाकिस्तान के एबटाबाद (Abbottabad) में छिपा रहा और वहीं मारा गया।
यूएनएससी में पाकिस्तान की इस भूमिका को लेकर थरूर ने बताया कि परिषद के सदस्य एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत बारी-बारी से अध्यक्षता करते हैं। इसलिए, इस पद को किसी विशेषाधिकार की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भी हर महीने बदलती है, और ऐसे में किसी एक देश के लिए कोई दीर्घकालिक प्रभावी भूमिका निभा पाना संभव नहीं है।
प्रतिनिधिमंडल 24 मई को भारत से न्यूयॉर्क पहुंचा था। इससे पहले यह गुयाना (Guyana), पनामा (Panama), कोलंबिया (Colombia) और ब्राजील (Brazil) की यात्रा कर चुका था। वाशिंगटन (Washington) में अंतिम चरण की यात्रा में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस (JD Vance) से भी मुलाकात हुई, जिसे थरूर ने “सार्थक” बताया।
भारत के साथ समान समय पर पाकिस्तान का भी एक प्रतिनिधिमंडल अमेरिका पहुंचा, जिसका नेतृत्व बिलावल भुट्टो जरदारी (Bilawal Bhutto Zardari) कर रहे थे। उन्होंने सुरक्षा परिषद के राजदूतों और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस (Antonio Guterres) से मुलाकात कर कश्मीर और सैन्य तनाव जैसे मुद्दों को उठाने का प्रयास किया।
भारत के सांसद त्रिपाठी (Tripathi) ने जानकारी दी कि इस यात्रा के दौरान विभिन्न देशों ने संयुक्त राष्ट्र में भारत को स्थायी सदस्यता दिए जाने का समर्थन किया। भारत के पूर्व अमेरिकी राजदूत तरनजीत संधू (Taranjit Sandhu) ने कहा कि यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पाकिस्तान अपनी नई जिम्मेदारियों को कितनी गंभीरता से निभाता है, और कितनी शक्ति उसे वास्तव में मिली है।






