शिव ही अविनाशी है – अटल पीठदीश्वर विश्वात्मानंद सरस्वती जी

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शिव ही अविनाशी है - अटल पीठदीश्वर विश्वात्मानंद सरस्वती जी

मंदिर श्री नैना देवी संगरूर में हो रही श्री शिव महापुराण कथा तत्व ज्ञान यज्ञ एव सहज शिव साधना के दूसरे और तीसरे दिन अटल पीठाधीश्वर महामण्डलेश्वर राजगुरु आचार्य स्वामी श्री विश्वात्मानन्द महाराज ने श्री शिव महापुराण में वर्णित मार्मिक रहस्यों का बहुत ही सुन्दर व्याख्यान दिया। स्वामी जी महाराज ने कहा भगवान सर्वव्यापी है अर्थात्‌ भगवान हर जगह मौजूद है उन्होंने कहा कि मनुष्य परमात्मा को बाहर ढूँढता है परंतु भगवान मनुष्य के अंदर ही है, बात तो सिर्फ़ पहचान करने की है मनुष्य का कल्याण ब्रह् तत्व से जुड़कर ही हो सकता है.


श्री स्वामी जी ने आगे कहा कि जो मनुष्य शिवरात्रि को निराहार रहकर पूरी रात जागरण करते हैं, वो बिना किसी संशय के, देवताओं के समान हो जाते है.
स्वामी श्री ने ज्ञान देते हुए कहा कि काम, क्रोध, मोह, लोभ और अभिमान मनुष्य के शत्रु हैं. अभिमान अर्थात अहंकार ज्ञान प्राप्ति के मार्ग में आने वाली एक बाधा है अभिमान और ज्ञान एक साथ नहीं रह सकते. स्वामी जी ने कहा कि अभिमान रहत मनुष्य पाप कृत्यों से भी निर्लिप्त रहता है. अभिमानी व्यक्ती का कभी कल्याण नहीं हो सकता अतएव मनुष्य को अभिमान का त्याग करते हुए समर्पण के साथ परमात्म प्राप्ती के मार्ग पर अग्रसर रहना चाहिए. इस संसार के अंदर पांच मुख्य कृत्य होते हैं जैसे भाव, तिरोभाव, स्थिति, सृष्टि और अनुग्रह.
एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने भगवान शंकर से पूछा कि हे प्रभु ! सृष्टि आदि 5 कृत्यों के लक्षण क्या है? यह हम दोनों को बतलाइए। भगवान शिव बोले, मेरे कर्तव्यों को समझना अत्यंत गहन है तथापि मैं कृपा पूर्वक तुम्हें उनके विषय में बता रहा हूं। हे ब्रह्मा और विष्णु ! “सृष्टि”, “पालन”, “संहार”, “तिरोभाव” और “अनुग्रह” यह पांच ही मेरे जगत संबंधी कार्य हैं जो कि नित्य सिद्ध हैं।
संसार की रचना का जो आरंभ है उसी को सर्ग या “सृष्टि” कहते हैं। मुझसे पालित होकर सृष्टि का सुस्थिर रूप से रहना ही उसकी “स्थिति है” , उसका विनाश ही “संहार” है। प्राणों के उत्क्रमण को “तिरोभाव” कहते हैं और जब इन सब से छुटकारा मिल जाता है तो वह मेरा “अनुग्रह” है। इस प्रकार मेरे 5 कृत्य हैं। सृष्टि आदि जो चार कृत्य हैं वह संसार का विस्तार करने वाले हैं। पांचवा कृत्य “अनुग्रह” मोक्ष का हेतु है। वह सदा मुझ में ही अचल भाव से स्थिर रहता है।

स्वामी जी ने कहा कि शिव अविनाशी हैं और सर्वत्र वर्तमान हैं जो सनातन है जो ना टूटता है और ना ही बिखरता है वही शिव है
सिर्फ अज्ञानता के कारण मनुष्य सर्वत्र वर्तमान शिव को देख या पहचान नहीं पाता और जन्म मरण के चक्कर में फ़ंसा रहता है.
स्वामी जी ने मार्गदर्शन करते हुए कहा कि परमात्मा प्राप्ति का मार्ग बहुत ही सरल और सुगम है आडंबर का परमात्मा प्राप्ति के मार्ग में कोई स्थान नहीं है.
गुरु गंगदेव सेवा समिति आह्वान करती है कि संगरूर वासी हो रही कथा रूपी अमृत वर्षा में अवश्य सम्मिलित होकर जीवन में मार्गदर्शन ले। कथा के मध्य में सतनारायण शास्त्री ने मंत्रमुग्ध करने वाला भजन और गायन किया जिसपर भक्तों ने खुलकर रास किया। हज़ारों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में शीर्ष रूप से नरिंदर कौर भराज , सतपाल गोयल, नवदीप गर्ग, डुला राम गोयल, सुखदेव कंसल , डॉ शाम सिंह, बृजेश पंडित अनीश मौड़ आदि

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