नई दिल्ली, 01 अक्टूबर (The News Air) आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने 100 वर्ष पूरे होने पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक (आरएसएस) से कुछ तीखे, कड़वे और सच्चे सवाल पूछे हैं। उन्होंने पूछा है कि 100 सालों में 1 भी दलित, पिछड़ा, आदिवासी आरएसएस प्रमुख क्यों नहीं बना? जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ मिलकर तुम्हारे आकाओं ने सरकार क्यों बनाई? आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारियों की मुखबिरी क्यों की? संघ के लोगों को अंग्रेजों की सेना में भर्ती क्यों कराया? भारत की आन बान और शान तिरंगे झंडे का विरोध क्यों किया? आरएसएस के मुख्यालय पर 52 साल तक तिरंगा क्यों नहीं फहराया? जो राष्ट्र के नहीं हुए, हम उनके नहीं।
संजय सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम सुनकर ऐसा लगता है कि यह पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है, लेकिन 100 वर्षों की यात्रा में मेरे कुछ सवाल हैं, जो तीखे, कड़वे और सच्चे हैं। उन्होंने पूछा कि 100 वर्षों में देश की 85 फीसद आबादी की आरएसएस में हिस्सेदारी क्यों नहीं हुई? एक भी दलित, आदिवासी या पिछड़े वर्ग का व्यक्ति आरएसएस का प्रमुख क्यों नहीं बना? इतना ही नहीं, आज तक कोई महिला भी इस संगठन की प्रमुख नहीं बनी? उन्होंने इसे दकियानूसी और संकुचित सोच वाला संगठन बताया, जो संविधान, आरक्षण, दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के खिलाफ है। आरएसएस मनुवादी व्यवस्था, जाति भेदभाव और छूत-अछूत की सोच में विश्वास रखता है। यह संगठन बाबा साहब डॉ. बीआर अंबेडकर और उनके बनाए संविधान के खिलाफ है। देशवासियों को ऐसे संगठनों से सावधान रहना चाहिए।
संजय सिंह ने भारत की आजादी के आंदोलन में आरएसएस के योगदान पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि आरएसएस की स्थापना 1925 में हुई। जब देश अंग्रेजों की गुलामी में था, तब आरएसएस ने अंग्रेजों का साथ दिया। देशवासियों को आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने पर उसकी यह सच्चाई जाननी चाहिए। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आरएसएस ने हिंदुस्तानियों को अंग्रेजों की सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया और उनका साथ दिया। इतिहास की जांच करने पर पता चलता है कि आरएसएस ने क्रांतिकारियों की मुखबिरी की, भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया और तिरंगे झंडे का भी विरोध किया। यह इतिहास का काला सच है, जिसे आरएसएस कभी इंकार नहीं कर सकता।
संजय सिंह ने कहा कि 100 वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री द्वारा टिकट जारी करने या पाठ्यक्रमों में आरएसएस का इतिहास पढ़ाए जाने की बात हो रही है, जहां केवल आरएसएस की तारीफ होगी, लेकिन आजादी के आंदोलन में देश के साथ गद्दारी की सच्चाई छिपाई जाएगी। उन्होंने देश के लोगों को याद दिलाया कि 52 साल तक आरएसएस ने अपने मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया। यह संगठन भेदभाव में विश्वास रखता है। यही वजह है कि आज तक इसका कोई प्रमुख दलित, पिछड़ा, आदिवासी या महिला नहीं बना।






