Mohan Bhagwat speech on Savarkar: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने देश को तोड़ने वाली मानसिकता पर जोरदार हमला बोला है। विनायक दामोदर सावरकर की 115वीं जयंती के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि भारत में ‘तेरे टुकड़े होंगे’ वाली भाषा के लिए कोई जगह ही नहीं होनी चाहिए।
मोहन भागवत ने वीर सावरकर का स्मरण करते हुए देशभक्ति की एक नई परिभाषा रखी। उन्होंने जोर देकर कहा कि हमारे अपने देश में सिर्फ हमारे देश की ही भक्ति होनी चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि जब हम पूरे भारत को एक राष्ट्र मानकर चलते हैं और हमारा संविधान भी यही कहता है, तो फिर देश में छोटी-छोटी बातों को लेकर आपस में अलगाव और टकराव क्यों होता है?
‘सावरकर का सपना और अखंड भारत’
संघ प्रमुख ने सावरकर के विचारों को याद करते हुए कहा कि सावरकर जी ने कभी भी क्षेत्र या जाति के आधार पर नहीं सोचा। उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि ‘मैं महाराष्ट्र का हूं’ या ‘मैं अमुक जाति का हूं’। हमारे देश भक्तों ने, चाहे वे किसी भी जाति में जन्मे हों या किसी भी प्रांत के रहने वाले हों, हमेशा पूरे भारत के बारे में ही सोचा।
उन्होंने स्वामी रामतीर्थ का उदाहरण देते हुए कहा कि वे कहते थे, “मैं भारत हूं, मैं चलता हूं तब भारत चलता है।” भागवत ने कहा कि अगर हमें सावरकर जी के सपनों का देश खड़ा करना है, तो उनका सपना हमारा अपना सपना बनना चाहिए और उसे सच करने के लिए प्रखर देशभक्ति की जरूरत है।
‘अब देश के लिए मरने नहीं, जीने की जरूरत’
मोहन भागवत ने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही कि उस जमाने में देश के लिए मरने की आवश्यकता थी, लेकिन आज देश के लिए जीने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आज नित्य जीवन में देशभक्ति के सामने कोई शत्रु नहीं है, हमें अपना देश बनाना और मजबूत करना है।
‘रोजमर्रा के जीवन में देशभक्ति’
देश के लिए जीने का मतलब समझाते हुए उन्होंने आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हम सब स्वदेशी की बात मानते हैं, लेकिन सवाल यह है कि जहां-जहां संभव है, क्या हम प्रयासपूर्वक स्वदेशी का आचरण करते हैं?
इसके साथ ही उन्होंने भाषा के महत्व पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि सावरकर जी ने भाषा सिद्धि के लिए काम किया था। यह सोचने वाली बात है कि हमारे अपने घर में हमारे बच्चों को अपनी मातृभाषा आती है या नहीं।
मुख्य बातें (Key Points)
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मोहन भागवत ने कहा कि भारत में ‘तेरे टुकड़े होंगे’ जैसी विभाजनकारी भाषा स्वीकार्य नहीं है।
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सावरकर ने कभी जाति या प्रांत के आधार पर नहीं, बल्कि सदैव पूरे भारत के लिए सोचा।
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संघ प्रमुख ने जोर दिया कि आज के दौर में देश के लिए मरने की नहीं, बल्कि देश के लिए जीने की जरूरत है।
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उन्होंने रोजमर्रा के जीवन में स्वदेशी अपनाने और बच्चों को मातृभाषा सिखाने पर बल दिया।






