Domestic Violence Against Men in India : “मर्द को दर्द नहीं होता” और “मर्द कभी नहीं रोते”—समाज में पुरुषों के लिए गढ़ी गई इन धारणाओं के बीच एक कड़वी सच्चाई दबकर रह गई है। यह सच्चाई है पुरुषों के खिलाफ होती घरेलू हिंसा और झूठे केसों का बढ़ता दबाव, जो उन्हें आत्महत्या तक करने पर मजबूर कर रहा है।
भारत को हमेशा से एक ‘पुरुष प्रधान’ देश माना जाता रहा है, लेकिन इस ‘प्रधान’ होने का सबसे ज्यादा दंश शायद खुद पुरुषों ने ही झेला है। एक ऐसी मानसिकता बना दी गई है कि पुरुष कभी रो नहीं सकता या कमजोर नहीं पड़ सकता, जिसके चलते उनका दर्द और भी बढ़ जाता है।
अब यह चर्चा आम हो रही है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानूनों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है, जिससे मर्द असहाय (helpless) महसूस कर रहे हैं।
80-85% केस झूठे होते हैं
विशेषज्ञों का मानना है कि धारा 498A (दहेज प्रताड़ना), रेप केस और POSH (यौन उत्पीड़न) जैसे कानूनों का महिलाओं द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है।
आंकड़ों के मुताबिक, ऐसे 80 से 85 प्रतिशत केस झूठे आरोपों के आधार पर दर्ज करवाए जाते हैं। पुरुषों पर एक अप्राकृतिक दबाव (unnatural pressure) बनाया जाता है, जिसे सहन न कर पाने पर कुछ लोग आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
‘मरदानगी’ पर सवाल उठने का डर
पुरुषों की प्रताड़ना का एक बड़ा वर्ग इसलिए भी सामने नहीं आता, क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर वे अपनी परेशानी बताएंगे तो उनकी ‘मरदानगी’ पर सवाल उठाए जाएंगे या लोग उन पर हसेंगे।
एक विशेषज्ञ ने ऐसा भी वाकया बताया कि कई पुरुष अपने घर जाने से डरते हैं, क्योंकि उनकी पत्नी पंखे से फंदा लगाकर तस्वीरें खींचती है और धमकी देती है कि “मैं अभी आत्महत्या कर लूंगी और तुझे जेल भेज दूंगी।”
72% आत्महत्याएं पुरुष करते हैं
साल 2023 का एक डेटा बताता है कि भारत में आत्महत्या करने वालों में 72% पुरुष हैं। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह आंकड़ा 98% तक भी हो सकता है।
यह दिखाता है कि झूठे केसों के इस दुष्चक्र में फंसने के बाद कई पुरुषों के पास सुसाइड के अलावा कोई “एग्जिट” (बाहर निकलने का रास्ता) नहीं बचता है।
“गड़बड़” है गुजारा भत्ता कानून?
तलाक के मामलों में मेंटेनेंस (गुजारा भत्ता) का कानून भी सवालों के घेरे में है। यह कानून पूरी तरह से “फीमेल फोकस्ड” (महिला केंद्रित) है।
एक मामले में कोर्ट के जज ने यहां तक कहा कि, “मजदूरी करो, बोझ उठाओ, जो मर्जी करो, लेकिन तुमको लाकर के यह पैसे बीवी को देने हैं।” यह टिप्पणी तब की गई जब पत्नी खुद नौकरी कर रही थी।
जानें पूरा मामला
यह बहस इसलिए छिड़ी है क्योंकि समाज में यह माना जाता है कि कानून सिर्फ महिलाओं के लिए हैं और पुरुषों को न्याय से दूर रखा जाएगा।
जहां आज महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं और ‘ड्यूल इनकम’ (दोनों का कमाना) आम हो गया है, वहीं समाज का रुख अभी भी यही है कि अगर आदमी काम नहीं कर रहा है, तो यह एक बड़ा सामाजिक मुद्दा है। इसी असंतुलन के कारण कानूनों के दुरुपयोग को बढ़ावा मिल रहा है।
मुख्य बातें (Key Points)
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पुरुषों के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ जैसी धारणाओं के कारण दब जाते हैं।
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80 से 85 प्रतिशत 498A, रेप और POSH के केस झूठे आरोपों पर आधारित होते हैं।
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2023 के डेटा के अनुसार, भारत में कुल आत्महत्याओं में 72% पुरुष शामिल हैं।
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विशेषज्ञों का मानना है कि मेंटेनेंस (गुजारा भत्ता) कानून महिला केंद्रित है और इसका दुरुपयोग हो रहा है, भले ही पत्नी कमा रही हो।






