Manglik Dosh Effects and Remedies : जब भी घर-परिवार में शादी-विवाह की बात चलती है, “मांगलिक दोष” या “मंगल दोष” शब्द अक्सर सुनने को मिलता है। यह एक ऐसा शब्द है, जिसे सुनकर कई परिवार डर जाते हैं और कई बार तो रिश्ता तक तोड़ देते हैं। लेकिन, डरने की जगह यह जरूरी है कि इस दोष को सही तरीके से समझा जाए।
आखिर मांगलिक दोष क्या है, यह कुंडली में कैसे बनता है और क्या इसका कोई समाधान है? आइए इन सभी पहलुओं को सरल भाषा में समझते हैं।
क्या है मांगलिक दोष?
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब किसी व्यक्ति का जन्म होता है, तो उस समय आकाश में जो राशि उदय होती है, उसे उस व्यक्ति की लग्न राशि कहा जाता है। इसी लग्न से कुंडली के सभी 12 भाव (घर) तय होते हैं।
जब मंगल ग्रह किसी व्यक्ति की लग्न कुंडली में कुछ विशेष भावों में बैठ जाता है, तो उस स्थिति को “मांगलिक दोष” कहा जाता है। इस दोष का संबंध मुख्य रूप से विवाह और वैवाहिक जीवन से माना गया है।
कुंडली में कैसे बनता है यह दोष?
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, यदि किसी की लग्न कुंडली में मंगल ग्रह पहले, चौथे, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में स्थित हो, तो वह व्यक्ति मांगलिक माना जाता है।
यह भाव सीधे तौर पर व्यक्ति के जीवन से जुड़े होते हैं। पहला भाव व्यक्ति के स्वभाव, चौथा भाव गृहस्थ सुख, सातवां भाव विवाह और जीवनसाथी, आठवां भाव वैवाहिक जीवन की स्थिरता और बारहवां भाव मानसिक तनाव व दूरियों का कारक माना जाता है।
शादी पर क्यों पड़ता है असर?
मंगल को ऊर्जा, साहस, क्रोध और संघर्ष का ग्रह माना जाता है। जब यह उग्र ग्रह इन भावों में अशुभ रूप से बैठता है, तो यह व्यक्ति के स्वभाव में गुस्सा, चिड़चिड़ापन, जिद और कठोरता बढ़ा सकता है।
इसी वजह से माना जाता है कि मांगलिक दोष होने पर विवाह में देरी, रिश्ते बनते-बनते टूट जाना या शादी के बाद पति-पत्नी के बीच अहंकार, टकराव और झगड़े की आशंका बढ़ जाती है। कई बार घरों में शांति की जगह तनाव का माहौल बन सकता है।
क्या हैं मांगलिक दोष के प्रकार?
मंगल दोष केवल एक ही तरह का नहीं होता। मुख्य रूप से “चंद्र मांगलिक दोष” और “आंशिक मांगलिक दोष” का जिक्र ज्यादा मिलता है।
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चंद्र मांगलिक दोष: जब किसी की कुंडली में चंद्रमा से गिनकर मंगल 1, 2, 4, 5, 7, 8 या 12वें भाव में हो, तो इसे चंद्र मांगलिक कहते हैं। चंद्रमा मन का कारक है, इसलिए यह स्थिति भावनात्मक उलझन और मानसिक तनाव को बढ़ाती है।
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आंशिक मांगलिक दोष: यह मंगल दोष का हल्का रूप है। जब मंगल 1, 2, 4, 7 या 12वें भाव में हो, तो कई ज्योतिषी इसे आंशिक मांगलिक मानते हैं। माना जाता है कि 28 साल की उम्र के बाद इसका असर धीरे-धीरे कम होने लगता है।
क्या है मांगलिक दोष का समाधान?
ज्योतिष शास्त्र में मांगलिक दोष के प्रभाव को कम करने के लिए कई पारंपरिक उपाय बताए गए हैं। इनका उद्देश्य ग्रहों के अशुभ असर को शांत करना है।
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व्रत और पूजा: यदि विवाह मंगल दोष वाले जीवनसाथी से हो गया है, तो वट सावित्री व्रत और मंगला गौरी व्रत रखने की सलाह दी जाती है। इन व्रतों से वैवाहिक जीवन में आ रही रुकावटें और तनाव कम होते माने जाते हैं।
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प्रतीकात्मक विवाह: मान्यता है कि यदि किसी युवती की कुंडली में मंगल दोष है, तो उसका वास्तविक विवाह करने से पहले पीपल के पेड़ से एक प्रतीकात्मक विवाह कराया जाता है। माना जाता है कि इससे दोष का बड़ा हिस्सा शांत हो जाता है।
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मांगलिक से विवाह: ज्योतिषाचार्य अक्सर सलाह देते हैं कि जिस व्यक्ति की कुंडली मांगलिक हो, उसकी शादी किसी मांगलिक व्यक्ति से ही कराई जाए।
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मंगल दोष की पूजा: देश में कई ऐसे मंदिर हैं, जहां विशेष रूप से मंगल दोष की शांति के लिए पूजा कराई जाती है।
डरें नहीं, मार्गदर्शन लें
मांगलिक दोष को जीवन का अभिशाप समझकर डरना उचित नहीं है। ज्योतिष शास्त्र डराने के लिए नहीं, बल्कि मार्गदर्शन देने के लिए है।
केवल मंगल दोष देखकर रिश्ता ठुकरा देना सही नहीं है। कुंडली को हमेशा संपूर्ण रूप से देखना चाहिए, जिसमें अन्य ग्रहों की स्थिति, शुभ योग और व्यक्ति का स्वभाव व संस्कार भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। विवाह केवल ग्रहों से नहीं, बल्कि आपसी सम्मान, समझ, विश्वास और प्रेम से सफल होता है।
मुख्य बातें (Key Points)
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कुंडली में 1, 4, 7, 8 या 12वें भाव में मंगल होने पर मांगलिक दोष बनता है।
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यह दोष विवाह में देरी, तनाव और पति-पत्नी के बीच मतभेद का कारण माना जाता है।
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चंद्र मांगलिक और आंशिक मांगलिक इसके दो अन्य प्रकार हैं, जिनका प्रभाव अलग-अलग होता है।
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वट सावित्री व्रत, मंगला गौरी व्रत, पीपल से विवाह और मांगलिक से ही विवाह करना इसके मुख्य उपाय माने जाते हैं।






