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वंदे मातरम् पर PM मोदी के आरोप से ‘महाभारत’! नेहरू ने क्यों हटवाए थे इसके पद?

भारत के राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के 150 साल पूरे होने पर संसद में जश्न का माहौल है, लेकिन इस मौके पर भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच पुरानी सियासी लड़ाई फिर से तेज हो गई है।

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सोमवार, 8 दिसम्बर 2025
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Vande Mataram Controversy
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Vande Mataram Controversy एक बार फिर देश की राजनीति के केंद्र में है। भारत का राष्ट्रीय गीत, जो कभी आजादी की लड़ाई का सबसे बड़ा नारा था, आज अपनी 150वीं सालगिरह पर सियासी खींचतान का गवाह बन रहा है। संसद में इसे लेकर एक विशेष चर्चा का आयोजन किया गया है, जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे। लेकिन जश्न के इस माहौल के बीच, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस के बीच दशकों पुरानी वैचारिक लड़ाई फिर से सतह पर आ गई है। यह लड़ाई सिर्फ एक गीत की नहीं, बल्कि इतिहास को देखने के दो अलग-अलग नजरियों की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर सीधा हमला बोलते हुए आरोप लगाया है कि 1937 में कांग्रेस ने ‘वंदे मातरम’ के टुकड़े कर दिए थे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने गीत के जरूरी हिस्सों को हटाकर इसकी मूल भावना को कमजोर किया और यही कदम विभाजन के बीज बोने जैसा था। बीजेपी का तर्क है कि ‘वंदे मातरम’ एक सभ्यतागत प्रतीक है और 1937 का फैसला गलत और झुकने वाला कदम था। पार्टी का कहना है कि 150 साल पूरे होने पर इसे फिर से गर्व के साथ और पूरा प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

‘कांग्रेस का पलटवार: फैसला समावेशी था’

दूसरी तरफ, कांग्रेस अपने ऐतिहासिक फैसले का बचाव कर रही है। पार्टी का तर्क है कि उसी ने ‘वंदे मातरम’ को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया और इसे बढ़ावा दिया। कांग्रेस का कहना है कि 1937 का फैसला समावेशिता के लिए लिया गया था, न कि विभाजन के लिए। पार्टी का आरोप है कि बीजेपी इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रही है और धार्मिक उन्माद फैलाना चाहती है।

‘वंदे मातरम का गौरवशाली इतिहास’

‘वंदे मातरम’ की रचना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875 के आसपास की थी और यह 1881 में उनके उपन्यास ‘आनंदमठ’ में प्रकाशित हुआ था। इस गीत ने भारत माता की परिकल्पना को जन्म दिया। 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान यह गीत आजादी के आंदोलन का केंद्रीय नारा बन गया। स्वदेशी आंदोलन हो, विरोध मार्च हो या अखबार, हर जगह ‘वंदे मातरम’ की गूंज थी। 1906 में बारिशाल में हिंदू और मुसलमान दोनों ने मिलकर इस नारे के साथ मार्च किया था, जो उस समय सांप्रदायिक नहीं बल्कि देशभक्ति का प्रतीक था। 1896 में कांग्रेस के अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार इसे गाया था।

‘विवाद की जड़: 1937 का फैसला’

विवाद की शुरुआत 1930 के दशक में हुई जब गीत की कुछ पंक्तियों पर धार्मिक आपत्तियां बढ़ने लगीं। आलोचकों का कहना था कि गीत के कुछ हिस्सों में देवी प्रतिमा जैसा चित्रण है, जो सभी धर्मों को स्वीकार्य नहीं हो सकता। 1937 में, कांग्रेस कार्य समिति ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया। उस समय कांग्रेस को एक राष्ट्रगान की जरूरत थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और रवींद्रनाथ टैगोर जैसे दिग्गजों की एक समिति बनाई गई। टैगोर की सिफारिश पर, ‘वंदे मातरम’ के केवल पहले दो पैराग्राफ को राष्ट्रीय गीत के रूप में चुना गया, जिनमें देश की प्राकृतिक सुंदरता का बखान था। बाकी के पैराग्राफ, जिनमें हिंदू देवी-देवताओं का जिक्र था, उन्हें छोड़ दिया गया।

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‘मुस्लिम लीग का विरोध और आजादी के बाद का दर्जा’

1909 में मुस्लिम लीग के नेता सैयद अली इमाम ने ‘वंदे मातरम’ को ‘काफिरों का गीत’ कहा था और मुसलमानों से इससे दूर रहने का आह्वान किया था। मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसे नेताओं ने भी इसका विरोध किया था। हालांकि, महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह जैसे कई क्रांतिकारी इससे भावनात्मक रूप से जुड़े थे। आजादी के बाद, 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने ऐलान किया कि ‘जन गण मन’ भारत का राष्ट्रगान होगा और ‘वंदे मातरम’ को इसके समान राष्ट्रीय सम्मान का दर्जा मिलेगा।

जानें पूरा मामला

‘वंदे मातरम’ के 150 साल पूरे होने पर संसद में विशेष चर्चा हो रही है, लेकिन यह मौका बीजेपी और कांग्रेस के बीच पुराने राजनीतिक और वैचारिक मतभेदों को फिर से सामने ले आया है। बीजेपी जहां इसे कांग्रेस की ऐतिहासिक भूल और तुष्टिकरण की नीति के रूप में पेश कर रही है, वहीं कांग्रेस इसे समावेशी कदम बताते हुए बीजेपी पर इतिहास से छेड़छाड़ का आरोप लगा रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि संसद में इस बहस का क्या नतीजा निकलता है और क्या यह मुद्दा आने वाले समय में गांधी-नेहरूपरिवार के लिए नई मुश्किलें खड़ी करेगा।

मुख्य बातें (Key Points)
  • ‘वंदे मातरम’ के 150 साल पूरे होने पर संसद में विशेष चर्चा, पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन।

  • बीजेपी का आरोप: कांग्रेस ने 1937 में गीत के टुकड़े कर विभाजन के बीज बोए।

  • कांग्रेस का बचाव: 1937 का फैसला समावेशिता के लिए था, बीजेपी इतिहास से छेड़छाड़ कर रही है।

  • 1937 में कांग्रेस ने ‘वंदे मातरम’ के केवल पहले दो पैराग्राफ को राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया था।

  • बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875 के आसपास ‘वंदे मातरम’ की रचना की थी, जो आजादी का प्रमुख नारा बना।

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