सबसे पहले ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ फहराया भारत का झंडा… जज्बे और हिम्मत की मिसाल हैं मैडम भीकाजी कामा

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नई दिल्ली, 24 सितंबर,(The News Air) आज भारत की महान शख्सियत मैडम भीकाजी कामा की 163वीं जयंती है। इन्हें भारत में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की जननी माना जाता है। उन्होंने सबसे पहले भारतीय ध्वज फहराया था। लेकिन बहुत कम लोग उनके नाम और योगदान के बारे में जानते हैं। भीकाजी कामा ने अंग्रेजों की तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई और भारत की आजादी की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने सबसे पहले भारतीय ध्वज लहराकर देशभक्ति की मिसाल कायम की।भीकाजी कामा, जिनका जन्म 24 सितंबर, 1861 को बॉम्बे में हुआ था और मृत्यु 13 अगस्त, 1936 को बॉम्बे में हुई। वह एक भारतीय राजनीतिक कार्यकर्ता और महिला अधिकारों की समर्थक थीं। उन्होंने 1907 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुए अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का पहला संस्करण फहराया था, जो हरे, केसरिया और लाल रंग की धारियों वाला तिरंगा था।

कौन है भीकाजी?

भीकाजी पटेल का जन्म एक अमीर पारसी व्यापारिक परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा बॉम्बे में प्राप्त की। वह अपने छात्र जीवन के दौरान ऐसे माहौल से प्रभावित हुई, जहां भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन जड़ें जमा रहा था, वह कम उम्र में ही राजनीतिक मुद्दों की ओर आकर्षित हुईं। 1885 में उन्होंने एक प्रसिद्ध वकील रुस्तमजी कामा से शादी की, लेकिन सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों में उनकी भागीदारी के कारण दोनों के बीच मतभेद पैदा हो गए। वैवाहिक समस्याओं और खराब स्वास्थ्य के कारण कामा भारत छोड़कर लंदन चली गईं।

अंग्रेजों के खिलाफ बुलंद की आवाज

भारत की स्वतंत्रता सेनानी, मैडम भीकाजी कामा, अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने और भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने के लिए जानी जाती हैं। इंग्लैंड प्रवास के दौरान, उनका मिलन दादाभाई नौरोजी से हुआ, जो भारत में ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के कट्टर आलोचक थे। इस मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी और वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए काम करने लगीं। मैडम कामा वीर सावरकर, लाला हर दयाल और श्यामजी कृष्ण वर्मा जैसे अन्य भारतीय राष्ट्रवादियों से भी जुड़ीं और लंदन के हाइड पार्क में कई सभाओं को संबोधित किया।

महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई

साल 1907 में स्टटगार्ट में हुए सम्मलेन के बाद, मैडम कामा ने एक लंबा व्याख्यान दौरा शुरू किया। इस दौरे का मकसद था, विशेषकर प्रवासी भारतीयों के बीच, भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनमत तैयार करना। इस दौरान उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी आवाज उठाई। जब उन्हें इंग्लैंड से निकाले जाने की अफवाहें उड़ने लगीं, तो 1909 में वो पेरिस चली गईं। पेरिस में उनका घर भारतीय स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वालों का केंद्र बन गया। उन्होंने हर दयाल को उनके क्रांतिकारी अखबार ‘बंदे मातरम’ को लॉन्च करने में मदद की, जिसकी प्रतियां लंदन से भारत में तस्करी करके लाई जाती थीं।

जब मैडम कामा को कर दिया गया नजरबंद

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, जब ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस सहयोगी बन गए, तो फ्रांसीसी अधिकारियों ने उनकी ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों के कारण उन्हें तीन साल के लिए नजरबंद कर दिया। नजरबंदी के दौरान भी, मैडम कामा ने भारतीय, आयरिश और मिस्र के क्रांतिकारियों से संपर्क बनाए रखा और फ्रांसीसी समाजवादियों और रूसी नेतृत्व के साथ सहयोग किया। 75 वर्ष की आयु में 1935 में, उन्हें भारत लौटने की अनुमति मिली, जहाँ अगले ही वर्ष उनका निधन हो गया।

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