Tirupati Temple Controversy (तिरुपति मंदिर विवाद): आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के प्रसिद्ध तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (TTD) प्रशासन ने 18 गैर-हिंदू कर्मचारियों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है। इन सभी कर्मचारियों को या तो सरकारी विभागों में ट्रांसफर लेने या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS – Voluntary Retirement Scheme) लेने का विकल्प दिया गया है।
टीटीडी (TTD) का यह निर्णय मंदिर की धार्मिक पवित्रता बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया है। बोर्ड ने कहा है कि मंदिरों और धार्मिक गतिविधियों में हिंदू धर्म के अनुयायियों की भागीदारी आवश्यक है। यह फैसला उन रिपोर्ट्स के बाद आया है, जिनमें आरोप लगाए गए थे कि कुछ गैर-हिंदू कर्मचारी मंदिर के धार्मिक आयोजनों में सक्रिय भागीदारी के बावजूद अन्य धर्मों के प्रचार में भी शामिल थे।
टीटीडी (TTD) बोर्ड का क्या कहना है?
तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (Tirumala Tirupati Devasthanams – TTD) के अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय मंदिर की धार्मिक और आध्यात्मिक अखंडता को बनाए रखने के लिए लिया गया है। टीटीडी द्वारा हाल ही में पारित एक प्रस्ताव में यह कहा गया कि मंदिर से जुड़े कर्मचारियों को हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप कार्य करना होगा।
बोर्ड के अधिकारियों के अनुसार:
- गैर-हिंदू कर्मचारियों को सरकारी विभागों में ट्रांसफर का विकल्प दिया गया है।
- वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) भी चुन सकते हैं।
- जो कर्मचारी हिंदू धर्म को पूरी तरह से स्वीकार करते हैं, वे टीटीडी के नियमों का पालन करके सेवा जारी रख सकते हैं।
क्यों उठाया गया यह कदम?
तिरुपति बालाजी मंदिर (Tirupati Balaji Temple) हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है। मंदिर प्रबंधन का मानना है कि यहां काम करने वाले कर्मचारियों को भी मंदिर की धार्मिकता का सम्मान करना चाहिए।
हाल ही में, कुछ गैर-हिंदू कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतें मिली थीं कि वे मंदिर में काम करने के बावजूद अन्य धर्मों के प्रचार में भी शामिल थे। मंदिर प्रशासन ने इस पर गंभीरता से विचार किया और निर्णय लिया कि ऐसे कर्मचारियों को या तो स्थानांतरित कर दिया जाए या फिर वे अपनी इच्छा से सेवा से इस्तीफा दे दें।
क्या यह पहली बार हुआ है?
यह पहली बार नहीं है जब टीटीडी ने इस तरह का निर्णय लिया है। इससे पहले भी, मंदिर प्रशासन ने गैर-हिंदू कर्मचारियों की पहचान करने और मंदिर के नियमों के अनुरूप व्यवस्था बनाए रखने के लिए कदम उठाए थे।
2019 में भी, टीटीडी ने सभी कर्मचारियों से एक धार्मिक घोषणा पत्र (Religious Affidavit) जमा करने को कहा था, जिसमें उन्हें यह प्रमाणित करना था कि वे हिंदू धर्म का पालन करते हैं और मंदिर के सिद्धांतों के अनुरूप काम करेंगे।
क्या है आगे की प्रक्रिया?
टीटीडी बोर्ड ने स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक अनुशासन का उल्लंघन करने वाले कर्मचारियों को मंदिर में सेवा जारी रखने की अनुमति नहीं दी जाएगी। जो लोग ट्रांसफर या वीआरएस नहीं चुनेंगे, उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है।
क्या यह कानूनी रूप से मान्य है?
कुछ कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय विवादित हो सकता है, क्योंकि यह रोजगार के मौलिक अधिकार (Fundamental Right to Employment) से जुड़ा मुद्दा है। हालांकि, मंदिर प्रशासन का कहना है कि यह एक धार्मिक न्यास (Religious Trust) है और इसके विशेष नियम लागू होते हैं, जिनमें धार्मिक आस्था महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
क्या इससे कोई विवाद खड़ा हो सकता है?
इस फैसले को लेकर विभिन्न धर्मों और संगठनों से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। जहां हिंदू संगठनों ने टीटीडी के इस निर्णय को सही ठहराया है, वहीं कुछ मानवाधिकार संगठनों ने इसे धार्मिक भेदभाव करार दिया है।
टीटीडी प्रशासन का तर्क है कि यह निर्णय किसी धर्म के खिलाफ नहीं बल्कि मंदिर की धार्मिक पवित्रता बनाए रखने के लिए लिया गया है।