“चुनावी वादों का ‘मुफ्त’ जाल: जानिए राज्यों की आर्थिक हालत पर ECI का बड़ा बयान!”

नई दिल्ली 07 जनवरी (The News Air) राजधानी दिल्ली (Delhi) में विधानसभा चुनाव का ऐलान करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) राजीव कुमार ने चुनावी प्रक्रिया और फ्रीबीज (Freebies) के मुद्दे पर कई बड़ी बातें साझा कीं। चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष बताते हुए उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने वादों का आर्थिक असर जनता को बताना चाहिए।

चुनावी प्रक्रिया और फ्रीबीज का विवाद : राजीव कुमार ने कहा, “फ्रीबीज (मुफ्त की स्कीमें) का मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में विचाराधीन है, इसलिए इस पर रोक लगाना फिलहाल संभव नहीं।” उन्होंने ‘सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य’ (Subramaniam Balaji vs State of Tamil Nadu) केस का जिक्र करते हुए बताया कि अदालत ने इस पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है।

उन्होंने बताया कि चुनावों में फ्रीबीज और वादों की भरमार से राज्यों की आर्थिक हालत खराब हो रही है। उन्होंने कहा, “यह जरूरी है कि जनता को पता चले कि इन वादों का राज्य की जीडीपी (GDP), जीएसडीपी (GSDP) और कर्ज (Debt) पर क्या असर होगा।”

राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी : मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने घोषणापत्र (Manifesto) में वादों की पूरी लागत बतानी चाहिए। उन्होंने कहा, “जनता को यह जानने का अधिकार है कि घोषणापत्र में किए गए वादे राज्य की वित्तीय स्थिति को कैसे प्रभावित करेंगे।”

उन्होंने कहा, “बहुत से राज्यों की स्थिति इतनी खराब है कि उनके लिए कर्मचारियों को सैलरी देना भी मुश्किल हो गया है। यदि आप भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की रिपोर्ट पढ़ें, तो आपको इस बात का एहसास होगा कि हम आने वाली पीढ़ियों का भविष्य गिरवी रख रहे हैं।”

ईसीआई ने जारी किया परफॉर्मा : चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के लिए एक परफॉर्मा (Proforma) जारी किया है, जिसमें उन्हें अपनी योजनाओं का वित्तीय असर बताना होगा। यह परफॉर्मा आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध है।

राजीव कुमार ने कहा, “अब समय आ गया है कि राजनीतिक दल अपनी जिम्मेदारी निभाएं और जनता को यह जानकारी दें। फ्रीबीज और हक (Rights) के बीच की पतली रेखा को समझना जरूरी है।”

फ्रीबीज पर कोर्ट की भूमिका : मुख्य चुनाव आयुक्त ने इस बात को दोहराया कि फ्रीबीज का मामला अदालत में विचाराधीन है। उन्होंने कहा, “हमारे हाथ बंधे हुए हैं, लेकिन जनता को सच बताना हमारी प्राथमिकता है। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे अपने वादों की असली कीमत जनता को बताएं।”

चुनाव सुधार की जरूरत : ईसीआई ने चुनाव सुधारों पर जोर देते हुए कहा कि जनता को जागरूक करना बेहद जरूरी है। राजीव कुमार ने कहा, “हम फ्रीबीज शब्द का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं क्योंकि इसे परिभाषित करना मुश्किल है। लेकिन यह तय करना जरूरी है कि राज्यों की आर्थिक हालत पर इसका क्या असर होगा।”

मुख्य चुनाव आयुक्त की यह टिप्पणी न केवल चुनावी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह राजनीतिक दलों को उनके वादों की जिम्मेदारी लेने के लिए भी मजबूर करती है। फ्रीबीज के बढ़ते चलन और राज्यों की आर्थिक हालत पर इसका प्रभाव एक गंभीर मुद्दा है, जिस पर जनता का जागरूक होना बेहद जरूरी है।

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