कभी खिलजी ने फुंकवाया था नालंदा विवि, हफ्तों जलती रही थीं किताबें…

0

PM Modi to inaugurate New Nalanda University Campus: पीएम मोदी बुधवार को नालंदा यूनिवर्सिटी का राजगीर कैंपस राष्ट्र को समर्पित किया. उनके साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेनकर के साथ ही 17 देशों के राजदूत और नालंदा विश्विद्यालय के छात्र भी मौजूद रहे. इस दौरान प्रधानमंत्री पहली बार प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर का अवलोकन भी करेंगे. इस मौके पर आइए जान लेते हैं क्या है नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवमय इतिहास.

केंद्र में तीसरी बार सरकार बनाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज पहली बार बिहार पहुंचे. उन्होंने नालंदा यूनिवर्सिटी का राजगीर कैंपस राष्ट्र को समर्पित किया. उनके साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेनकर के साथ ही 17 देशों के राजदूत और नालंदा विश्विद्यालय के छात्र भी मौजूद रहे. इस दौरान प्रधानमंत्री पहली बार प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर का अवलोकन भी करेंगे. इस मौके पर आइए जान लेते हैं क्या है नालंदा विश्वविद्यालय का गौरवमय इतिहास.

नालंदा शब्द संस्कृत के तीन शब्दों ना +आलम +दा की संधि से बना है. इसका अर्थ ही है ज्ञान रूपी उपहार पर किसी तरह का प्रतिबंध न रखना. इसी उद्देश्य से बिहार के राजगीर में आज से कई सौ साल पहले सन् 450 ईस्वी में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम ने की थी. तब यह भारत में उच्च शिक्षा का सबसे महत्वपूर्ण और दुनिया भर में प्रसिद्ध केंद्र था.

अपनी स्थापना के बाद लगभग 700-800 सालों तक प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय देश-दुनिया में ज्ञान की अलख जगाता रहा. शिक्षा के इस मंदिर को महान सम्राट हर्षवर्द्धन के साथ ही पाल शासकों का भी संरक्षण मिलता रहा.

दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था

दरअसल, इस विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य यह था कि ध्यान और अध्यात्म के लिए एक स्थान हो, जहां ज्ञान भी मिले. बताया जाता है कि भगवान गौतम बुद्ध ने कई बार नालंदा की यात्रा की और यहां पर ध्यान भी लगाया था. मठ की तर्ज पर बना यह विश्वविद्यालय ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और यूरोप की सबसे पुरानी बोलोग्ना यूनिवर्सिटी से भी 500 साल से ज्यादा पुराना था. तक्षशिला के बाद नालंदा को ही दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है. आवासीय सुविधा वाला यह दुनिया का पहला विश्वविद्यालय था.

तीन सौ कमरों वाले विश्वविद्यालय में नौमंजिला पुस्तकालय था

इतिहासकार बताते हैं कि नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों से पता चलता है कि यह स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना था. इसमें 300 कमरे और सात बड़े-बड़े कक्ष थे. इसमें काफी बड़ा पुस्तकालय था, जिसका नाम धर्म गूंज था, जिसका मतलब है सत्य का पर्वत. नौ मंजिला इस पुस्तकालय में तीन हिस्से थे, जिन्हेंरत्नरंजक, रत्नोदधि, और रत्नसागर नामों से जाना जाता था. यहां पर एक समय में तीन लाख से भी अधिक किताबें होती थीं.

Nalanda University Picture

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास सबसे पहले चीन के यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग ने खोजा था. फोटो- B P S Walia/IndiaPictures/Universal Images Group via Getty Images

रहना-खाना और पढ़ना, सबकुछ मुफ्त था

इस विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए विद्यार्थियों का चयन मेरिट के जरिए होता था और उनका रहना-खाना और पढ़ाई सबकुछ निशुल्क होती थी. एक समय में यहां 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थी पढ़ाई करते थे, जिनके लिए 2700 से ज्यादा अध्यापक नियुक्त रहते थे. यहां भारत के अलावा कोरिया, जापान, तिब्बत, चीन, ईरान, इंडोनेशिया, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई अन्य देशों के छात्र भी पढ़ने के लिए आते थे. यहां साहित्य, ज्योतिष शास्त्र, साइकोलॉजी, एस्ट्रोनॉमी, कानून, विज्ञान, युद्धकौशल, इतिहास, गणित, आर्किटेक्टर, लैंग्वेज साइंस, इकोनॉमिक, मेडिसिन समेत कई विषयों की पढ़ाई होती थी. इसके पूर्व छात्रों में इतिहास की कई हस्तियां शामिल हैं, जिनमें महान स्रमाट हर्षवर्धन, पाल वंश के शासक धर्मपाल, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति, आर्यवेद और नागार्जुन के नाम शामिल हैं.

ह्वेनसांग और इत्सिंग ने खोजा था इतिहास

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास सबसे पहले चीन के यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग ने खोजा था. ये दोनों सातवीं शताब्दी में भारत के दौरे पर आए थे और अपने देश लौटने के बाद नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में विस्तार से लिखा. इन दोनों चीनी यात्रियों ने नालंदा को विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बताया था. इस विश्वविद्यालय की खासियत थी कि यहां पर सभी काम लोकतान्त्रिक प्रणाली से होता था. हर फैसला सभी की सहमति से लिया जाता था, जिसके लिए सन्यासियों के साथ शिक्षक और छात्र भी अपने विचार रखते थे.

Nalanda University New Campus

ऐसा दिखता है नालंदा यूनिवर्सिटी का नया कैंपस

बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर लगा दी थी आग

इतिहास के जानकार बताते हैं कि साल 1193 में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण किया और यहां पर आग लगवा दी थी. तब नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में रखी किताबें ही कई सप्ताह तक जलती रहीं और आग नहीं बुझ पाई थी. इस आक्रमण के दौरान नालंदा में काम करने वाले कई धर्माचार्यों और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाला गया था.

विशाल दीवार से घिरा था पूरा परिसर

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों से पता चलता है कि पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा था. इसमें प्रवेश के लिए एक मेन गेट था. इसके भीतर उत्तर से दक्षिण की ओर कतार में मठ थे और उनके सामने कई भव्य स्तूप और मंदिर बनाए गए थे. इन मंदिरों में भगवान बुद्ध की सुंदर मूर्तियां स्थापित थीं, जो नष्ट हो चुकी हैं. खास बात यह है कि नालंदा विश्वविद्यालय के संस्थापक कुमारगुप्त हिंदू थे, फिर भी नालंदा में बौद्ध धर्म को परिश्रय मिला था.

Nalanda University New Campus Picture

नालंंदा यूनिवर्सिटी का नया कैंपस.

दीवारों के अवशेष पर चल सकता है ट्रक

बिहार में पटना से करीब 90 किलोमीटर और बिहार शरीफ से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में आज भी इस प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय के खंडहर पाए जाते हैं. राजगीर जिले में स्थित इस विश्वविद्यालय की दीवारों के अवशेष ही इतने चौड़े हैं कि इन पर ट्रक तक चलाया जा सकता है. वैसे खुदाई में यहां 1.5 लाख वर्ग फुट में नालंदा विश्वविद्यालय के निशान मिले हैं पर माना जाता है कि यह पूरे विश्वविद्यालय का केवल 10 प्रतिशत हिस्सा ही है.

संयुक्त राष्ट्र घोषित कर चुका है विरासत

अब नालंदा की तर्ज पर ही राजगीर में नया नालंदा विश्वविद्यालय बनाया गया है. आधिकारिक रूप से इसकी स्थापना 25 नवंबर 2010 को ही हो गई थी. इससे पहले नालंदा विश्वविद्यालय के फिर से उद्धार का प्रस्ताव तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने साल 2006 में बिहार की विधानसभा में रखा था. साल 2016 में ही प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों को संयुक्त राष्ट्र विरासत स्थल घोषित किया जा चुका है.

0 0 votes
Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments