Kesgarh Sahib Jathedar Ceremony को लेकर महीनों से चल रहा विवाद आखिरकार खत्म हो गया है। शनिवार को श्री केसगढ़ साहिब में ज्ञानी कुलदीप सिंह गड़गज (Giani Kuldeep Singh Gadgaj) का पंथक रीति-रिवाजों के अनुसार दोबारा सम्मान समारोह (Dastarbandi Ceremony) आयोजित किया गया। इस मौके पर पूर्व जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह (Giani Raghbir Singh) और निहंग जत्थेबंदियों (Nihang Jathebands) ने मिलकर उन्हें पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया। इस ऐतिहासिक मौके पर सिख संगठनों की आठ महीने की नाराज़गी समाप्त हो गई।
पंथक रीति-रिवाजों से हुआ विवाद का अंत
ज्ञानी कुलदीप सिंह गड़गज को श्री अकाल तख्त साहिब (Akal Takht Sahib) का कार्यकारी और श्री केसगढ़ साहिब (Sri Kesgarh Sahib) का जत्थेदार नियुक्त किए जाने के बाद मार्च 2025 से ही विवाद चल रहा था।
सिख संगठनों का आरोप था कि उनकी पहली दस्तारबंदी SGPC ने गुरु पंथ और संगत की मौजूदगी के बिना कर दी थी, जो पंथक मर्यादा के खिलाफ है। शनिवार को पारंपरिक रीति से हुई यह दूसरी ताजपोशी उस विवाद का अंत साबित हुई।
इस दौरान गड़गज ने कहा कि सिख समाज को एकता और अनुशासन के साथ अकाल तख्त की छत्रछाया में रहकर आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने पंजाब में धर्म परिवर्तन (religious conversions) के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई और समाज को सजग रहने की सलाह दी।
सियासी दबाव और बदलते समीकरण
सूत्रों के अनुसार, SGPC प्रधान हरजिंदर सिंह धामी और पूर्व जत्थेदार ज्ञानी रघुबीर सिंह ने राजनीतिक दबाव के चलते गड़गज की नियुक्ति को स्वीकार किया।
जानकारी के मुताबिक, शिरोमणि अकाली दल (SAD) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने 10 मार्च की रात गुपचुप तरीके से गड़गज को जत्थेदार नियुक्त किया था ताकि पंथ में कमजोर होती अपनी पकड़ दोबारा मजबूत कर सकें।
बाद में जब कई जत्थेबंदियों ने विरोध किया, तो उन्होंने स्वयं हस्तक्षेप कर पंथक नेताओं से मुलाकात की और गड़गज को स्वीकारने की अपील की। इसके बाद यह दूसरा सम्मान समारोह आयोजित किया गया।
पंथ में राजनीति का बढ़ता प्रभाव
विशेषज्ञों का मानना है कि ज्ञानी हरप्रीत सिंह के “शिरोमणि अकाली दल पुनर-सुरजीत” में शामिल होने के बाद से ही पंथक हलकों में अकाली दल बादल के प्रति असंतोष बढ़ गया है।
अब सुखबीर बादल सिख जत्थेबंदियों को फिर से अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं ताकि आने वाले SGPC सत्रों (sessions) में उनका प्रभाव बरकरार रह सके।
इतिहास में यह पहला मौका है जब किसी जत्थेदार की दो बार ताजपोशी (Double Dastarbandi) हुई है, जिसे कई पंथक नेता सिख परंपराओं के लिए असामान्य स्थिति मान रहे हैं।
सिख समुदाय में जत्थेदार की नियुक्ति (Appointment of Jathedar) हमेशा धार्मिक परंपराओं और संगत की सहमति से होती है।
हाल के वर्षों में SGPC के निर्णयों पर राजनीति का असर बढ़ता दिख रहा है। अकाल तख्त साहिब (Akal Takht Sahib) और अन्य तख्तों पर नियुक्तियां कई बार विवाद का कारण बनी हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो SGPC की धार्मिक साख (religious credibility) को नुकसान पहुंच सकता है।
मुख्य बातें (Key Points):
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श्री केसगढ़ साहिब में ज्ञानी कुलदीप सिंह गड़गज की दोबारा दस्तारबंदी हुई।
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आठ महीने से चल रहा विवाद पंथक रीति-रिवाजों से हुआ खत्म।
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निहंग जत्थेबंदियों और संगठनों ने जत्थेदार को स्वीकार किया।
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पंथ में राजनीति के बढ़ते दखल पर विशेषज्ञों ने जताई चिंता।






