Religious Conversion and Rise of Atheism से जुड़ी एक हैरान करने वाली रिपोर्ट ने दुनिया भर में धार्मिक आस्था के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्यू रिसर्च (Pew Research) द्वारा किए गए एक अंतरराष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक अब बड़ी संख्या में लोग अपने जन्म से प्राप्त मजहब को छोड़ रहे हैं और नास्तिकता (Atheism) की ओर अग्रसर हो रहे हैं। खासकर यूरोप (Europe), अमेरिका (America), और दक्षिण कोरिया (South Korea) जैसे देशों में यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है।
इस रिपोर्ट में बताया गया कि इटली (Italy) में 28.7 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपना पारंपरिक धर्म त्याग दिया और अब किसी भी मजहब में विश्वास नहीं रखते। इसी तरह जर्मनी (Germany) में 19.8 फीसदी, स्पेन (Spain) में 19.6 फीसदी और स्वीडन (Sweden) में 16.7 फीसदी लोगों ने अपने inherited religion को छोड़ दिया है। यह आंकड़े बताते हैं कि धार्मिक अस्थिरता या आस्था से मोहभंग अब केवल सामाजिक मुद्दा नहीं बल्कि वैश्विक मानसिक परिवर्तन का संकेत है।
चिली (Chile) में 15 फीसदी, मेक्सिको (Mexico) में 13.7 फीसदी और नीदरलैंड (Netherlands) में 12.6 फीसदी लोगों ने भी अपने धर्म को त्याग कर नास्तिकता को अपनाया है। गौर करने वाली बात यह है कि इन सभी देशों में धर्म छोड़ने वालों में से 99 फीसदी लोग ईसाई (Christian) पंथ से जुड़े हुए थे, जिन्होंने अब खुद को नास्तिक घोषित कर दिया है।
यूके (UK) में भी स्थिति अलग नहीं है। यहां करीब 12 फीसदी लोगों ने अब धर्म में आस्था नहीं रखने का दावा किया है। जापान (Japan) में 10.7 फीसदी, ग्रीस (Greece) में 10.2 फीसदी और कनाडा (Canada) में 9.5 फीसदी लोग अब खुद को किसी भी धर्म से अलग मानते हैं।
अब सवाल उठता है कि कौन सा पंथ इस ट्रेंड से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है? सर्वे में साफ किया गया है कि सबसे ज्यादा नुकसान ईसाई धर्म (Christianity) को हो रहा है। प्यू रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 28.4 फीसदी लोगों ने ईसाई धर्म छोड़ दिया है, जबकि केवल 1 फीसदी नए अनुयायियों ने इस धर्म को अपनाया है। अकेले जर्मनी में ही 19.7 फीसदी ईसाई अब खुद को नास्तिक मानते हैं।
इसके विपरीत, इस्लाम (Islam) और हिंदू धर्म (Hinduism) में जन्म से प्राप्त धर्म छोड़ने वाले लोगों की संख्या बहुत कम पाई गई है। यह दर्शाता है कि इन दोनों मजहबों में आस्था की पकड़ अब भी मजबूत बनी हुई है।
यह बदलता धार्मिक परिदृश्य न केवल धार्मिक संस्थाओं के लिए चिंता का विषय है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विमर्श में भी बड़ा बदलाव ला रहा है। आस्था छोड़कर नास्तिकता की ओर बढ़ते ये आंकड़े भविष्य में धर्म के स्वरूप और उसके प्रभाव को पूरी तरह बदल सकते हैं।