नई दिल्ली, 03 जनवरी (The News Air): उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के कन्वेंशन सेंटर में 27वें अंतरराष्ट्रीय वेदांत सम्मेलन का उद्घाटन किया। अपने संबोधन में उन्होंने वेदांत को केवल अतीत का अवशेष न मानकर इसे सतत विकास और नैतिक नवाचार का भविष्य बताया।
उन्होंने कहा, “वेदांत न केवल प्रश्नों के उत्तर देता है, बल्कि आपकी जिज्ञासा शांत करता है और आपको समर्पण के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह दर्शन हमारे समाज को समावेशिता और स्थिरता का मार्ग दिखाता है।”
हिंदू और सनातन पर प्रतिक्रिया ‘विडंबनापूर्ण’: धनखड़ ने यह भी कहा कि भारत में सनातन और हिंदू शब्दों पर अप्रत्याशित प्रतिक्रियाएं आना विडंबनापूर्ण है। उन्होंने इसे औपनिवेशिक मानसिकता और बौद्धिक समझ की कमी का परिणाम बताया।
उन्होंने कहा, “वेदांत और सनातनी ग्रंथों को बिना समझे खारिज करना एक गहरी विकृत मानसिकता को दर्शाता है। धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को तोड़-मरोड़कर इसका इस्तेमाल विनाशकारी विचारों को छुपाने के लिए किया गया है। यह समय है कि हर भारतीय ऐसे तत्वों को उजागर करे।”
वेदांत को कक्षाओं तक लाने का आह्वान: उपराष्ट्रपति ने कहा कि वेदांत दर्शन को केवल ऊंचे मंचों तक सीमित न रखते हुए इसे कक्षाओं तक पहुंचाना चाहिए। उन्होंने इसे आधुनिक समस्याओं जैसे जलवायु संकट, डिजिटल गलत सूचना और नैतिक संकटों के समाधान के लिए उपयोगी बताया।
उन्होंने जोर दिया, “वेदांत अतीत का अवशेष नहीं है, बल्कि भविष्य का खाका है। हमें अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर लौटना होगा और इस ज्ञान को समाज के हर कोने तक पहुंचाना होगा।”
संवाद और अभिव्यक्ति पर बल: धनखड़ ने अभिव्यक्ति और संवाद के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति का अधिकार है। लेकिन संवाद के बिना अभिव्यक्ति अधूरी है। संसद और अन्य लोकतांत्रिक मंचों में संवाद की कमी चिंताजनक है।”
लोकतंत्र में असहिष्णुता पर प्रहार: उन्होंने कहा कि आजकल “मैं सही हूं, और दूसरे की राय अप्रासंगिक है” जैसे दृष्टिकोण लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक सौहार्द को कमजोर कर रहे हैं।
इस अवसर पर JNU की कुलपति प्रो. शांतिश्री धुलीपुडी पंडित, अमेरिका के हवाई विश्वविद्यालय के मानद प्रोफेसर श्री अरिंदम चक्रवर्ती, छात्र, संकाय सदस्य और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित थे।