Indian Railways: जब कोई बड़ा रेलवे स्टेशन आता है। वहां ट्रेन का ठहराव नहीं होने के बावजूद राजधानी जैसी ट्रेनों की भी स्पीड स्लो हो जाती है। क्या आप जानते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है? दरअसल, रेलवे के नियमों के मुताबिक, जब कोई ट्रेन किसी स्टेशन से गुजरती है तो लोको पायलट यानी ट्रेन के ड्राइवर को स्पीड कम करना होता है। जब भी कोई ट्रैक्स को बदलकर किसी एक ट्रैक में आती है तो वह फुल स्पीड से नहीं चल सकती है। इससे दुर्घटना का जोखिम बढ़ जाता है। लिहाजा बड़े स्टेशनों में जहां ढेर सारे ट्रैक होते हैं। स्टेशन पहुंचने पर ट्रेन को कई सारे ट्रैक से होकर गुजरना पड़ता है। इससे उसकी स्पीड घटा दी जाती है।
मेन लाइन पर जो ट्रेन 110 या 130 या 150 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है। वह भी किसी स्टेशन के प्लेटफार्म से नॉन स्टॉप गुजरती है तो उतनी स्पीड में नहीं रहती है। हालांकि ज्यादातर स्टेशनों पर नॉन स्टॉप ट्रेनों के लिए अप और डाउन, दो मेन लाइन होती हैं। इन लाइनों पर ट्रेन स्पीड से गुजर जाती है। वहीं अगर ट्रेन को प्लेटफॉर्म लाइन से गुजरना है तो पायलट को स्पीड में कमी करनी पड़ेगी।
टर्मिनल स्टेशनों पर स्पीड सबसे कम
हावड़ा, चेन्नई, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस जैसे स्टेशनों पर ट्रेन जहां रुकती है। उससे कुछ मीटर आगे जा कर ट्रैक खत्म हो जाते हैं। ऐसे स्टेशनों को टर्मिनल रेलवे स्टेशन कहते हैं। इन स्टेशनों के प्लेटफार्म पर ट्रेन पहुंचने से पहले ही उसके लोको पायलट यानी ड्राइवर को ट्रेन की स्पीड 10 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से करना होता है। इसका जिक्र रेलवे मैनुअल में किया गया है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि जहां से ट्रैक खत्म हो रहे है। वहां स्पीड की वजह से कोई दुर्घटना नहीं हो। इसलिए स्पीड कम कर दी जाती है।
झटके से ट्रेन नहीं रुक सकती
मौजूदा समय में मेल एक्सप्रेस ट्रेनें 22 या 24 डिब्बे की होती है। ऐसी ट्रेनों को भी स्टेशन से गुजरते समय स्लो करना पड़ता है। स्पीड से ट्रेन को प्लेटफॉर्म से नहीं निकाल सकते हैं। लोको पायलट का कहना है कि अगर कोई ट्रेन 80 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही है, तो उसे प्लेटफार्म पर लाने से पहले धीरे धीरे उसकी स्पीड कम करनी होती है। ज्यादा स्पीड से ट्रेन में ब्रेक लगाने पर झटका लगता है। जिससे यात्रियों को चोट आ सकती है।