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Home Breaking News

दुनिया में योग का डंका बजाने वाले भारतीय गुरु… जानें हठ से आयंगर तक कितनी तरह से योग सिखाए

The News Air by The News Air
मंगलवार, 18 जून 2024
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योग
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पिछली एक शताब्दी के दौरान योग को पूरी दुनिया में पहचान मिली है, तो इसका श्रेय जाता है उन हस्तियों को जिन्होंने इससे मनुष्य का परिचय कराने की ठानी और उसमें सफल भी रहे. आधुनिक काल में योग को दुनिया के सामने रखने का जिम्मा सबसे पहले उठाया स्वामी विवेकानंद ने. स्वामी कुवालयनंदा, श्री योगेंद्र, स्वामी राम, श्री अरविंदो, महर्षि महेश योगी, आचार्य रजनीश, पट्टाभिजोइस, बीकेएस आयंगर, स्वामी सत्येंद्र सरस्वती से लेकर आधुनिक योग के पिता तिरुमलाई कृष्णामाचार्य तक ने योग को घर-घर पहुंचाया.

देश में 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की तैयारी चल रही है. आइए, इसी बहाने जानने की कोशिश करते हैं कि इन हस्तियों के योग की खासियत क्या थी और एक-दूसरे से ये कितना अलग थे.

स्वामी विवेकानंद ने राज योग को लोकप्रिय बनाया

स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद ने राज योग को पश्चिमी देशों में लोकप्रिय बनाया. यह वास्तव में योग के जनक महर्षि पतंजलि के योगसूत्र का ही आधुनिक रूपांतरण है. स्वामी विवेकानंद उन पहले भारतीय आचार्यों में से एक थे, जिन्होंने महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों का भाष्य और अनुवाद किया. उन्होंने योग की भव्यता का वर्णन राजयोग नाम की अपनी किताब में किया है. वास्तव में महर्षि पतंजलि ने योग का वर्णन आठ अंगों के रूप में किया है, जिन्हें अष्टांग कहा जाता है. ये हैं यम यानी संयम, नियम यानी पालन, आसन यानी योग के आसन, प्राणायाम यानी सांस पर नियंत्रण, प्रत्याहार यानी इंद्रियों को वापस लेना, धारणा यानी एकाग्रता, ध्यान और समाधि.

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योगसूत्र को फिर से जीवित करने का श्रेय

मध्यकालीन युग में तो योगसूत्र का अनुवाद 40 से अधिक भारतीय भाषाओं के साथ ही अरबी में किया गया था. लेकिन आधुनिक काल में इसे लगभग भुला दिया गया था. स्वामी विवेकानंद ने योगसूत्र को राजयोग के रूप में फिर से जीवित किया और पश्चिम तक लेकर गए. आज भी पश्चिम की योग परंपरा में स्वामी विवेकानंद के योग का ही असर दिखता है. उन्होंने पश्चिम में लोगों को योगसूत्र सीखने के लिए प्रोत्साहित किया था.

Swami Vivekananda

जैन धर्म की प्रतिज्ञाएं और बौद्ध धर्म के आष्टांगिक मार्ग भी योगसूत्र में समाहित

जैन धर्म की पांच प्रतिज्ञाएं और भगवान बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग भी पतंजलि योगसूत्र में समाहित मिलते हैं. वैसे महर्षि पतंजलि के अष्टांगों में से आधुनिक समय में तीन ही मुद्राओं आसन, प्राणायाम और ध्यान को प्रमुखता दी जाती है. वैसे तो 84 प्राणायाम प्रमुख हैं, पर आजकल इनमें भी अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका, कपालभाति, उद्गीत, नाड़ीशोधन, भ्रामरी, बाह्य और प्रणव प्राणायाम का ही अधिक महत्व है. आधुनिक काल (1700 से 1900 ईस्वी) में महर्षि रमन, रामकृष्ण परमहंस, परमहंस योगानंद के जरिए जिस योग का विकास हुआ, वह भी राज योग ही है.

वेदांत के प्रवर्तक थे आदि शंकराचार्य, रामानुज और माधवाचार्य

इसी दौर में वेदांत, भक्तियोग, नाथ योग और हठ योग का भी विकास हुआ. ज्ञानयोग के एक स्रोत को ही वेदांत कहा जाता है, जो किसी भी व्यक्ति को ज्ञान हासिल करने के लिए प्रोत्साहित कहता है. इसका मुख्य स्रोत उपनिषद हैं. वास्तव में वैदिक साहित्य का अंतिम भाग उपनिषद हैं, इसीलिए इसको वेदांत कहा जाता है. वेदांत की भी तीन शाखाएं प्रमुख रूप से सामने आती हैं. इनमें अद्वैत वेदांत, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत शामिल हैं. इन तीनों शाखाओं के प्रवर्तक थे आदि शंकराचार्य, रामानुज और माधवाचार्य. समकालीन समय में आचार्य प्रशांत भारत में वेदांत दर्शन के प्रचार-प्रसार में लगे हैं. हालांकि, देश से बाहर उनके बारे में लोगों को अभी कम जानकारी है.

जहां तक भक्ति योग की बात है तो इसका मतलब है अपने ईष्ट के प्रति अनुराग रखकर आंतरिक विकास करना. इसमें भजन-कीर्तन और सत्संग भी समाहित होते हैं. वास्तव में ज्ञान योग हो या भक्ति योग, ये भगवद्गीता में बताए गए मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्गों में से दो हैं. तीसरा मार्ग है कर्म योग.

आधुनिक काल में किया जाता है हठ योग

कई बार हठ योग को नाथ परंपरा से जोड़ा जाता है, जिसका मतलब बल से है. दरअसल, आधुनिक काल में जिस योग का अभ्यास किया जाता है, वह योग का यही रूप है जिसमें शारीरिक व्यायाम, आसन और सांस के अभ्यास पर ध्यान दिया जाता है. योग की बिल्कुल प्रारंभिक प्रक्रिया को ही हठ योग कहा जाता है, जिससे शरीर ऊर्जा के उच्च स्तर को बनाने में सक्षम होता है.

वहीं, नाथ योग की स्थापना का श्रेय मत्स्येंद्र और गोरक्षनाथ को जाता है. नाथ योग का प्रभाव अद्वैत वेदांत और भक्ति योग पर भी दिखता है. इन्हीं दोनों को हठ योग की स्थापना का श्रेय भी कई बार दिया जाता है, क्योंकि नाथ योग और हठ योग में कई समानताएं देखने को मिलती हैं. नाथ योग में शारीरिक अभ्यास के साथ-साथ आध्यात्मिक और बौद्धिक विकास भी शामिल होता है. इसमें आसन, मुद्राएं, बंध और दृष्टि, प्राणायाम और सांस पर नियंत्रण, मंत्र और यंत्र, धारणा, ध्यान और योग निद्रा समाहित हैं.

तिरुमलाई कृष्णामाचार्य (2)

तिरुमलाई कृष्णामाचार्य को आधुनिक योग के जनक कहा जाता है.

तिरुमलाई कृष्णामाचार्य ने हिमालय की गुफा में सीखा था योगसूत्र

योग की यात्रा करते हुए जब हम 20वीं सदी में पहुंचते हैं तो सामने आते हैं आधुनिक योग के जनक तिरुमलाई कृष्णामाचार्य, जिनका जन्म 18 नवंबर 1888 को तत्कालीन मैसूर राज्य के चित्रदुर्ग जिले में हुआ था.

तिरुमलाई कृष्णामाचार्य ने छह वैदिक दर्शनों में डिग्री हासिल करने के साथ ही योग और आयुर्वेद की भी पढ़ाई की थी. उन्होंने हिमालय की गुफा में रहने वाले योग आचार्य राममोहन ब्रह्मचारी से पतंजलि का योगसूत्र सीखा था.

गुफा में तिरुमलाई कृष्णामाचार्य सात सालों तक रहे. लौट कर वह योग के प्रचार-प्रसार में जुट गए. उन्होंने योग की वैदिक तकनीकों के साथ ही साथ पश्चिमी ध्यान की अवधारणा भी पेश की थी. साल 1934 में उन्होंने योग मकरंद नामक किताब लिखी, जिसमें ध्यान की पश्चिमी तकनीकों के बारे में बताने के साथ-साथ योग के उपयोग को बढ़ावा दिया. उन्होंने ही हठ योग की अवधारणा से देश के लोगों को पहली बार परिचित कराया था. हम पहले ही बता चुके हैं कि इसी हठ योग को आधुनिक योग कहा जाता है.

स्वामी कुवलयानन्द ने योग पर वैज्ञानिक रिसर्च की थी

आधुनिक काल के एक और योगाचार्य स्वामी कुवलयानन्द का जन्म 30 अगस्त 1883 को हुआ था. उन्होंने योग को लेकर साल 1920 में वैज्ञानिक रिसर्च शुरू की और साल 1924 में पहली बार योग मीमांसा नाम का पहला वैज्ञानिक जर्नल प्रकाशित किया था. स्वामी कुवलयानन्द ने यौग की दो क्रियाओं उड़ियानबंध और नेति पर ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किए थे.

साल 1924 में ही उन्होंने कैवल्यधाम स्वास्थ्य एवं योग अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की थी, जहां योग को लेकर उनकी ज्यादातर रिसर्च हुई. इसके बाद ही आधुनिक योग पर उनका अच्छा-खासा प्रभाव दिखने लगा. उन्होंने लोनावला में पहले यौगिक अस्पताल की भी स्थापना की थी.

15 अगस्त 1872 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में जन्मे अरविंदो घोष को ही हम लोग श्री अरविंदो के नाम से जानते हैं. वह स्वाधीनता सेनानी थे तो दार्शनिक, कवि और योगी भी. उन्होंने आध्यात्मिक विकास के जरिए संसार को ईश्वरीय अभिव्यक्ति के रूप में स्वीकार किया था. यानी उन्होंने नव्य वेदांत दर्शन को प्रतिपादित किया था.

महर्षि महेश योगी ने दुनिया को भावातीत ध्यान से परिचित कराया

महर्षि महेश योगी ने ट्रांसिडेंटल मेडिटेशन यानी भावातीत ध्यान को प्रतिपादित किया और इसे पूरी दुनिया तक पहुंचाया. अमेरिका से विदेश यात्रा शुरू कर हॉलैंड तक पहुंचाया और फिर वहीं स्थायी निवास बना लिया था. महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी 1918 को छत्तीसगढ़ में हुआ था और उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से फिजिक्स में ग्रेजुएशन किया था. इसके बाद 13 साल ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती के पास रहकर शिक्षा ग्रहण की और उनकी मौजूदगी में रामेश्वरम् में 10 हजार बाल ब्रह्मचारियों को आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा दी थी. साल 1957 से उन्होंने भावातीत ध्यान का आंदोलन चलाया और साल 1968 में रॉक बैंड बीटल्स के सदस्य उनके आश्रम में पहुंचे तो भावातीत ध्यान की गूंज पूरी दुनिया तक सुनाई पड़ने लगी.

तिरुमलाई कृष्णामाचार्य (1)

बीकेएस अयंगर ने अयंगर योग की स्थापना की

बीकेएस अयंगर ने की थी अयंगर योग की स्थापना

बीकेएस अयंगर यानी बेल्लूर कृष्णमचारी सुंदरराज अयंगर का जन्म 14 दिसम्बर 1918 को हुआ था. उन्होंने अयंगर योग की स्थापना की और इसे पूरी दुनिया तक पहुंचाया. आधुनिक ऋषि के रूप में जाने जाने वाले बीकेएस अयंगर ने साल 1975 में योग विद्या नाम से एक संस्थान की स्थापना की और फिर देखते ही देखते देश-दुनिया में इसकी 100 से अधिक शाखाएं खोलीं. समकालीन समय में भारतीय योग को यूरोप में फैलाने वालों में उनका नाम अग्रणी है.

इनके अलावा श्री योगेंद्र, स्वामीराम, आचार्य रजनीश, पट्टाभिजोइस और स्वामी सत्येंद्र सरस्वती जैसी महान हस्तियों ने पूरी दुनिया में योग को फैलाया. बीकेएस अयंगर के बाद बाबा रामदेव जैसे योग गुरु योग का सरलीकरण कर इसे देश-विदेश में पहुंचा रहे हैं.

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