17 जनवरी (The News Air) – भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय दोहरे संकट से जूझ रही है. कोविड महामारी का असर कम होने के बाद, बुरी तरह लड़खड़ाई देश की अर्थव्यवस्था के संभलने की उम्मीद थी. लेकिन महंगाई और तेजी से गिरते रुपये ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम और मुश्किल कर दिया है. सरकार ने खुदरा महंगाई दर का डेटा जारी किया है जिसके मुताबिक नवंबर 2023 में खुदरा महंगाई दर 5.55 फीसदी रही है जो अक्टूबर 2023 में 4.87 फीसदी रही थी. जुलाई 2023 में टमाटर समेत खाद्य वस्तुओं की कीमतों में उचाल के बाद खुदरा महंगाई दर फीसदी के उच्च स्तर 7.44 फीसदी पर जा पहुंची थी.
दूसरी ओर डॉलर की तुलना में रुपए में तेज़ गिरावट जारी है. मंगलवार को डॉलर की तुलना में रुपया गिर कर 80 के स्तर के पार कर गया. डॉलर महंगा होने से भारत का आयात और महंगा होता जा रहा है और इससे घरेलू बाजार में चीजों के दाम भी बढ़ रहे हैं.यूं तो दुनिया भर में हाल के दिनों में महंगाई बढ़ी है. इसकी अहम वजह कोविड की वजह से सप्लाई के मोर्चे पर दिक्कत से लेकर हाल में रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से तेल और खाद्य वस्तुओं के दाम में इजाफा है. लेकिन भारत में कोविड से बुरी तरह लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था को संभलने की राह में यह बड़ी चुनौती बन गई है. कोविड की वजह से भारतीयों की आय में कमी को देखते हुए यह आम लोगों को पहले से ज्यादा तकलीफ दे रही है.
आरबीआई ने 2019 में जो नीतियां अपनाई थीं, उनका भी इसमें हाथ रहा था. लेकिन हाल में जो महंगाई बढ़ी है उसमें पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का बड़ा हाथ है. सरकार की नीतियों की वजह से ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने नवंबर से फरवरी तक पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ाए थे लेकिन. जैसे ही चुनाव खत्म हुए पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा दिए गए. इससे अचानक महंगाई बढ़ गई है. दूसरी और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से तेल के दाम बढ़े और इसका भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम पर असर पड़ा. तो कोविड में सप्लाई साइड की दिक्कतों और मौजूदा दौर में रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से महंगाई में इजाफा हुआ. ”
पेट्रोल के दाम कटौती के बावजूद भी 100 के पार अगर आरबीआई रेपो रेट नहीं बढ़ाता यानी निवेश करने वालों को ज्यादा ब्याज नहीं देता तो निवेशक यहां से पैसा निकाल कर बाहर ले जाते. चूंकि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ब्याज दर बढ़ा रहा है इसलिए हमारे यहां से डॉलर का निकलना शुरू हो चुका है. यानी निवेशक वहां अपना निवेश कर रहे हैं, जहां उन्हें ज्यादा ब्याज मिल रहा है. इसलिए हम ब्याज दर बढ़ा कर निवेशकों को न रोकें तो यहां से डॉलर निकलना शुरू हो जाएगा. इससे हमारा रुपया और कमजोर हो जाएगा. रुपया कमजोर होने से हमारा आयात और ज्यादा महंगा हो जाएगा और महंगाई इससे भी ज्यादा बढ़ जाएगी.
क्या जीएसटी बढ़ाना सही कदम है?
ऐसे दौर में जब महंगाई लगातार बढ़ती जा रही तो सरकार ने क्या सोच कर कई जरूरी चीजों पर जीएसटी बढ़ाने का फैसला कैसे लिया? क्या ये लोगों पर दोहरी मार नहीं है?
जब जीएसटी की शुरुआत की गई थी तब एवरेज न्यूट्रल रेट 12 फीसदी रखने की बात हुई थी. लेकिन राजनीतिक कारणों से कई राज्यों ने यह मांग रखी की यह रेट कम होना चाहिए. इसलिए कुछ जरूरी चीजों पर कोई जीएसटी नहीं लगाया गया और कुछ चीजों पर पांच-दस फीसदी टैक्स लगाया गया. लेकिन इससे सरकारी का राजस्व घटने लगा है. पहले ही रियल एस्टेट, पेट्रोल जैसे उत्पाद जीएसटी के दायरे से बाहर हैं. इसलिए जीएसटी के जरिये जितने राजस्व का लक्ष्य था वह नहीं आ रहा है. यही वजह है कि सरकार ने जीएसटी दर बढ़ाया है. अगर जीएसटी के जरिये टैक्स नहीं आएगा देश का खर्चा कैसे चलेगा.
क्या भारत महंगाई की बढ़ी हुई दर को न्यू नॉर्मल हो जाएगी. क्या अब यहां महंगाई हमेशा सात-आठ फीसदी या इससे भी ज्यादा बनी रह सकती है?
न्यू-नॉर्मल की बात विदेश के संदर्भ में हो रही है. चूंकि वहां महंगाई दो फीसदी के लगभग बनी रहती है इसलिए वहां बढ़ी हुई महंगाई दर को न्यू नॉर्मल के तौर पर देखा जा रहा है. चूंकि चीन से सस्ता सामान आने की वजह से उनके यहां महंगाई कम थी. लेकिन अभी चीन से सप्लाई में दिक्कत आने की वजह से उनके यहां मैन्युफैक्चर्ड सामान महंगा हो गया है. दूसरे अब वे चीन पर बहुत ज्यादा निर्भर भी नहीं रह सकते. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से भी वहां सप्लाई साइड की दिक्कत पैदा हुई है. लेकिन भारत में ऐसी बात नहीं है. भारत में यह बढ़ी हुई महंगा दर आगे जाकर गिर सकती है. हमारे यहां पहले ही महंगाई ज्यादा रहती है. आरबीआई को इसलिए महंगाई दर चार फीसदी तक सीमित रखने का टारगेट दिया गया है. चार फीसदी का टारगेट दिया गया है. दरअसल आरबीआई ने कोविड के वक्त काफी ज्यादा नोट छाप दिए थे ताकि सरकार को कर्ज लेने में दिक्कत न हो. महंगाई बढ़ाने में इसका भी हाथ था. अब सरकार इस लिक्विडिटी को सोखने की कोशिश कर रही है. इसलिए आगे जाकर महंगाई काबू हो सकती है. लेकिन जब तक रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से तेल महंगा बना रहेगा, हमारे यहां महंगाई पर काबू करना मुश्किल होगा. क्योंकि हम अपनी जरूरत का दो तिहाई तेल बाहर से मंगाते है. इस पर हमारा काफी पैसा खर्च होता है.
महंगाई के साथ-साथ भारत को एक और चीज तकलीफ दे रही है. और वह है डॉलर की तुलना में रुपये का लगातार कमजोर होते जाने. हालांकि निर्यात के लिहाज से यह ठीक है. लेकिन भारत निर्यात से ज्यादा आयात करता है. इसलिए इसके विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी खास कर डॉलर का स्टॉक तेजी से खत्म होता जा रहा है. आखिर रुपये में यह गिरावट कब थमेगी और भारत इस हालात से कैसे उबरेगा?
कमजोर रुपया निर्यात के लिए अच्छा है. ये कहना ज्यादा अच्छा रहेगा कि रुपये की कमजोरी के बजाय डॉलर की मजबूती बढ़ रही है. दरअसल यह अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर लिक्वडिटी को सोखने का नतीजा है. कोविड के दौरान फेडरल रिजर्व ने काफी डॉलर छापे थे. अब इसे वापस लिया जा रहा है. ये काम ब्याज दर बढ़ा कर किया जा रहा है. लिहाजा दुनिया भर से डॉलर अमेरिका की ओर आ रहे हैं, ज्यादा ब्याज दर की वजह से. भारत में जो निवेशक कर रहे थे वे अब अमेरिका की ओर जा रहे हैं क्योंकि वहां ज्यादा ब्याज मिल रहा है. इस वजह से डॉलर के मुकाबले सिर्फ रुपया ही कमजोर नहीं है. दुनिया की सभी देशों की मुद्राएं इसकी तुलना में कमजोर हुई हैं.
हमारे लिए डॉलर की मजबूती और रुपये की कमजोरी फायदेमंद है क्योंकि इससे हमारा सामान दुनिया में सस्ता होगा और हमारे निर्यात को फायदा मिलेगा. चीन, बांग्लादेश जैसे देशों ने अपनी मुद्र को अवमूल्यन कर दुनिया के बाजार में अपना माल सस्ता रखा और इसका उन्हें फायदा हुआ है. हमें डॉलर की जरूरत है इसलिए हम दुनिया के बाजार में सस्ता माल बेचकर ज्यादा डॉलर कमा सकते हैं. क्योंकि हमें ज्यादा आयात करना पड़ता है. और इसके लिए हमें डॉलर की जरूरत पड़ती है. रुपये को कृत्रिम तरीके से मजबूत किया जा सकता है. लेकिन यह भारत के लिए नुकसानदेह साबित होगा. इसके बजाय सरकार को उद्योग-धंधों को बढ़ावा देने के कदम उठाए चाहिए ताकि वे निर्यात करें और डॉलर कमाएं.
भारत में कई लोग ये कह रहे हैं कि क्या भारत की स्थिति पाकिस्तान या श्रीलंका जैसी स्थिति हो सकती है, जहां स्थानीय मुद्रा काफी गिर गई और अर्थव्यवस्था लड़खड़ाई हुई है? भारत की इन देशों से तुलना बेमानी. भारत में ऐसी स्थिति कभी नहीं आएगी. भारत का घरेलू बाजार काफी मजबूत है और इसकी अर्थव्यवस्था का आकार भी काफी बड़ा है. इसलिए भारत में पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी स्थिति की कल्पना करना नासमझी है.