The News Air- किसी व्यक्ति की सोशल मीडिया पर अगर खालिस्तानियों से जुड़ी कोई पोस्ट हो तो उसे आतंकी गिरोह का सदस्य होने का निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता, यह टिप्पणी पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने की। यह केस ऐसे ही एक आरोपी अमरजीत सिंह के सोशल मीडिया पर खालिस्तानी संगठनों से जुड़ी पोस्ट को लेकर था। जिसमें हाईकोर्ट ने उक्त व्यक्ति को ज़मानत दे दी। यह केस राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने दर्ज़ करवाया था।
यह है मामला
NIA ने साल 2019 को तरनतारन में गैर इरादतन हत्या और एक्सप्लोसिव एक्ट के तहत कुछ आरोपियों पर केस दर्ज़ किया था। जिसमें एक व्यक्ति ने ज़मानत के लिए पहले NIA स्पेशल कोर्ट मोहाली में ज़मानत याचिका लगाई थी। एनआईए के स्पेशल जज ने 4 फरवरी 2021 को उसकी ज़मानत खारिज कर दी थी। जिसके बाद उक्त व्यक्ति हाईकोर्ट पहुंचा था।
FIR में नहीं था नाम
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि मामले में आरोपी का नाम एफआईआर में नहीं था। NIA का दावा था कि जांच के दौरान सामने आया था कि वह खालिस्तानी आतंकी ग्रुप का साथी था। इसमें उसने अपने साथियों को खालिस्तानी लहर से जुड़े अपराध के लिए उकसाया था। साथ ही अपने साथियों के साथ उसने बम की टेस्टिंग भी की थी।
मोबाइल में नंबर भी निर्णायक सबूत नहीं
हाईकोर्ट में सुनवाई के वक़्त जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस विकास सूरी की डबल बैंच ने अपने फ़ैसले में कहा कि आरोपी के सोशल मीडिया अकाउंट में कुछ खालिस्तानियों की तस्वीरें थी। जो अपराधिक स्वभाव के थे। उसके मोबाइल में गुरी खालिस्तानी और खालिस्तानी जिंदाबाद के नाम से 2 नंबर भी सेव थे। हाईकोर्ट ने इसे आरोपी के खालिस्तानी गैंग के साथ जुड़ा हुआ बताने का निर्णायक सबूत नहीं माना। वहीं बैंच ने कहा क आरोपी 2 साल 4 महीने से जेल में है। ऐसे में आरोपी को नियमित ज़मानत का लाभ दे दिया गया।