Punjab Government Schools Infrastructure : पंजाब (Punjab) के सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति पर अब अदालत ने सख्त रुख अपनाया है। मंगलवार 28 अक्टूबर 2025 को चंडीगढ़ (Chandigarh) स्थित पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) ने राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए पूछा कि आखिर क्यों बच्चों को अब तक स्कूलों में शुद्ध पानी, टॉयलेट, फर्नीचर और सुरक्षित भवन जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं दी गईं। अदालत ने टिप्पणी की कि जब तक स्कूलों में न्यूनतम सुविधाएं नहीं होंगी, शिक्षा की गुणवत्ता सुधारना नामुमकिन है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी – “सरकारों के दावे और जमीनी सच्चाई में फर्क”
सुनवाई के दौरान जस्टिस एन.एस. शेखावत (Justice N.S. Shekhawat) की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि राज्य सरकार के लिए लगता है, छोटे बच्चों की शिक्षा प्राथमिकता नहीं रही। अदालत ने उदाहरण देते हुए बताया कि अमृतसर (Amritsar) के टपिआला (Tapiala) गांव के एक मिडिल स्कूल में सिर्फ एक शिक्षक है, जहां तीन क्लासें एक ही कमरे में लगती हैं, जबकि प्रिंसिपल का पद खाली है। अदालत ने शिक्षा विभाग के सचिव को निर्देश दिया कि सभी स्कूलों की विस्तृत सूची तैयार कर कोर्ट में हलफनामा दायर करें।
चार हफ्तों में रिपोर्ट मांगी
कोर्ट ने राज्य सरकार से 4 हफ्तों के भीतर यह रिपोर्ट मांगी है कि पंजाब के कितने सरकारी स्कूलों में शुद्ध पानी, बिजली, शौचालय, कंप्यूटर लैब, खेल का मैदान और सुरक्षा सुविधाएं नहीं हैं। अदालत ने चेतावनी दी कि अगर सुधारात्मक कदम नहीं उठाए गए तो इस मामले को “सार्वजनिक हित याचिका” (Public Interest Litigation) के तौर पर आगे बढ़ाया जा सकता है।
शिक्षा विभाग पर गंभीर सवाल
अदालत ने कहा कि शिक्षा कोई “सेवा” नहीं बल्कि संविधान द्वारा दिया गया मौलिक अधिकार (Fundamental Right) है। यह बच्चों का अधिकार है और सरकार का दायित्व कि उन्हें सुरक्षित, सम्मानजनक व संसाधनयुक्त माहौल में पढ़ने का अवसर मिले। अदालत ने सरकार से यह भी पूछा कि किन स्कूलों में शिक्षक और प्रिंसिपल के पद खाली हैं, कितने स्कूलों में लड़कियों और स्टाफ के लिए अलग शौचालय नहीं हैं, और किन स्कूलों में अब तक बिजली, पानी या खेल सुविधाएं नहीं दी गईं।
शिक्षा पर घटती प्राथमिकता
पंजाब में पिछले कुछ वर्षों से शिक्षा व्यवस्था को लेकर लगातार शिकायतें सामने आ रही हैं। कई स्कूलों में शिक्षक और आधारभूत ढांचे की भारी कमी है। केंद्र और राज्य दोनों के पास शिक्षा अधिनियम (Right of Children to Free and Compulsory Education Act, 2009) के तहत संसाधन मुहैया कराने की जिम्मेदारी है। लेकिन लगातार अनदेखी के चलते हाईकोर्ट को अब हस्तक्षेप करना पड़ा है।
आगे क्या?
अब पंजाब सरकार को अगली सुनवाई में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। इसमें यह स्पष्ट करना होगा कि कितने स्कूलों में सुधार किए गए और बाकी जगह कब तक कार्य पूरे होंगे। कोर्ट का यह रुख स्पष्ट करता है कि आने वाले समय में सरकार की जवाबदेही तय होना तय है।
मुख्य बातें (Key Points):
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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकारी स्कूलों की स्थिति पर राज्य सरकार से जवाब मांगा।
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चार हफ्तों में रिपोर्ट पेश करने का आदेश, सुविधाओं की कमी पर कड़ा रुख।
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अदालत ने कहा—शिक्षा सेवा नहीं, बच्चों का मौलिक अधिकार है।
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अमृतसर के टपिआला स्कूल समेत कई जगह बुनियादी सुविधाओं का अभाव।






