Bradycardia Causes Symptoms Treatment : क्या आपका दिल भी कभी-कभी बहुत धीमे धड़कता है? क्या अचानक चक्कर आते हैं, सांस लेने में तकलीफ होती है या बेहोशी सी छाने लगती है? अगर हां, तो यह ब्रेडीकार्डिया हो सकता है। मणिपाल हॉस्पिटल्स, नई दिल्ली के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. वीरभान बालाई ने इस गंभीर हृदय समस्या के कारण, लक्षण और इलाज के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। साथ ही जानिए क्यों रोज थोड़ा बोर होना आपके दिमाग के लिए फायदेमंद है और काले चने कैसे आपकी सेहत का खजाना बन सकते हैं।
ब्रेडीकार्डिया: जब दिल की धड़कन हो जाए खतरनाक स्तर तक धीमी
क्या है ब्रेडीकार्डिया और कब बनती है चिंता की बात?
सोचिए आप आराम से कुर्सी पर बैठे हैं और अचानक सिर चकराने लगता है। सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और सीने में दर्द शुरू हो जाता है। पानी पीने के लिए उठे तो चक्कर आ गया और बेहोशी सी छाने लगी। घबराकर जब सीने पर हाथ रखा तो महसूस हुआ कि धड़कनें बहुत धीमी चल रही हैं – नॉर्मल से कहीं ज्यादा धीमी।
डॉ. वीरभान बालाई बताते हैं कि जब भी हार्ट रेट असामान्य रूप से धीमी हो जाती है, उसे ब्रेडीकार्डिया कहते हैं। एक वयस्क व्यक्ति में जब हार्ट रेट 60 बीट्स प्रति मिनट से कम हो जाती है, तो इसे ब्रेडीकार्डिया माना जाता है। हालांकि जो लोग इंटेंस वर्कआउट करते हैं जैसे एथलीट्स, उनमें 40 से 50 बीट्स प्रति मिनट की हार्ट रेट भी सामान्य मानी जाती है।
ब्रेडीकार्डिया के कारण: दवाओं से लेकर थायराइड तक
डॉ. वीरभान के मुताबिक ब्रेडीकार्डिया के पीछे कई कारण हो सकते हैं और इन्हें समझना बेहद जरूरी है।
सबसे पहले जो लोग इंटेंस फिजिकल एक्टिविटी करते हैं जैसे एथलीट्स, उनमें यह स्वाभाविक रूप से हो सकता है और इसमें चिंता की कोई बात नहीं होती। लेकिन कई बार यह दवाओं के साइड इफेक्ट के रूप में भी सामने आता है। ब्लड प्रेशर या हार्ट के मरीजों को दी जाने वाली दवाइयां जैसे मेटोप्रोलॉल, कार्वेडिलॉल या एंटी-एरिथमिक्स जैसे एमियोडेरोन, डिगोक्सिन और इवाब्राडिन के सेवन से भी हार्ट रेट धीमी हो सकती है।
इसके अलावा कई पैथोलॉजिकल स्थितियां भी इसका कारण बनती हैं। थायराइड की बीमारी, खासकर हाइपोथायरॉइडिज्म, इलेक्ट्रोलाइट्स की गड़बड़ी जैसे खून में पोटेशियम का बढ़ना जिसे हाइपरकैलीमिया कहते हैं, या शरीर का तापमान बहुत कम हो जाना यानी हाइपोथर्मिया – ये सभी ब्रेडीकार्डिया का कारण बन सकते हैं।
दिल से जुड़ी कुछ बीमारियां भी इसकी वजह होती हैं जैसे साइनस नोड डिजीज, एवी ब्लॉक, कंप्लीट हार्ट ब्लॉक जो जन्मजात भी हो सकता है और बाद में भी हो सकता है। यहां तक कि हार्ट अटैक के बाद भी हार्ट रेट धीमी हो सकती है।
ब्रेडीकार्डिया के लक्षण: इन संकेतों को न करें नजरअंदाज
डॉ. वीरभान बताते हैं कि कई बार ब्रेडीकार्डिया में कोई लक्षण नहीं दिखते यानी यह एसिम्प्टोमेटिक भी हो सकता है। लेकिन अक्सर कुछ आम लक्षण देखने को मिलते हैं।
चक्कर आना या डिजीनेस, सिर हल्का महसूस होना यानी लाइट हेडेडनेस, अचानक बेहोश हो जाना या ब्लैक आउट होना, असामान्य धड़कन महसूस होना जिसे पैल्पिटेशन कहते हैं, और स्किप हार्ट बीट जैसा लगना – ये सभी ब्रेडीकार्डिया के संकेत हो सकते हैं। जिन मरीजों को पहले से दिल की कोई बीमारी है, उनमें धीमी धड़कन के कारण सीने में दर्द भी हो सकता है।
ब्रेडीकार्डिया की जांच: कौन से टेस्ट हैं जरूरी?
डॉ. वीरभान के अनुसार सबसे आम और हर जगह किया जाने वाला टेस्ट ईसीजी है। इसके अलावा इको टेस्ट किया जाता है जिसमें दिल की संरचनात्मक बीमारी और वॉल्व डिजीज का पता चलता है।
होल्टर मॉनिटरिंग एक महत्वपूर्ण टेस्ट है जिसमें 24 या 48 घंटे के लिए हार्ट बीट्स को मॉनिटर किया जाता है। आजकल लूप रिकॉर्डर्स भी उपलब्ध हैं। इम्प्लांटेबल लूप रिकॉर्डर का इस्तेमाल तब किया जाता है जब छह महीने तक हार्ट बीट रिकॉर्ड करनी हो। एक्सटर्नल लूप रिकॉर्डर्स से एक से दो हफ्ते तक हार्ट बीट रिकॉर्ड की जा सकती है।
अगर थायराइड की समस्या है तो थायराइड प्रोफाइल टेस्ट करवाना चाहिए। इलेक्ट्रोलाइट्स चेक करने के लिए खून में सीरम पोटेशियम की जांच होती है। अगर हार्ट अटैक की आशंका हो तो एंजियोग्राफी भी की जा सकती है।
ब्रेडीकार्डिया का इलाज: पेसमेकर से लेकर दवाओं तक
इलाज की बात करें तो डॉ. वीरभान समझाते हैं कि जो इंटेंस एथलीट हैं और उनकी रेस्टिंग हार्ट रेट 40 से 50 बीट्स प्रति मिनट है लेकिन कोई लक्षण नहीं है, तो ऐसे मरीजों को किसी इलाज की जरूरत नहीं होती।
अगर किसी दवाई के कारण हार्ट रेट धीमी हो रही है तो डॉक्टर की सलाह से वह दवाई बंद की जा सकती है या उसकी डोज ऑप्टिमाइज की जा सकती है। मेटोप्रोलॉल, कार्वेडिलॉल, डिगोक्सिन, एमियोडेरोन, इवाब्राडिन जैसी दवाइयां अक्सर हार्ट रेट कम कर देती हैं।
इमरजेंसी में मरीज आता है तो एट्रोपिन इंजेक्शन दिया जाता है। ट्रांसक्यूटेनियस पेसिंग और टेंपरेरी पेसिंग भी इमीडिएटली की जा सकती है। कई मरीजों को परमानेंट पेसमेकर लगाने की जरूरत पड़ती है और उसके बाद उनकी क्वालिटी ऑफ लाइफ काफी अच्छी हो जाती है।
अगर आपकी हार्ट बीट अक्सर इर्रेगुलर रहती है, कभी बहुत धीमी तो कभी अचानक तेज हो जाती है, तो इसे बिल्कुल इग्नोर न करें। यह दिल से जुड़ी किसी गंभीर दिक्कत का इशारा हो सकता है और तुरंत डॉक्टर से मिलना जरूरी है।
बोर होना दिमाग के लिए अच्छा है? जानें साइंस क्या कहता है
रोज 10-15 मिनट बोर होना क्यों है जरूरी?
बोर होना अपने आप में कितना बोरिंग लगता है। कोई काम नहीं है, समझ नहीं आ रहा कि दिमाग कहां चलाएं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि थोड़ी देर बिना किसी काम और बिना स्क्रीन के बैठे रहना दिमाग के लिए बहुत फायदेमंद है?
पारस हेल्थ, उदयपुर के कंसल्टेंट न्यूरोफिजिशियन डॉ. तरुण माथुर बताते हैं कि रोज 10 से 15 मिनट बोर होना दिमाग के लिए बेहद अच्छा है। जब आप किसी काम में बिजी नहीं होते और कोई खास चीज नहीं सोच रहे होते, तब दिमाग का डिफॉल्ट मोड नेटवर्क एक्टिव हो जाता है।
यह नेटवर्क दिमाग को आराम देता है, पुराने अनुभवों को प्रोसेस करता है और नए आइडियाज बनाने में मदद करता है। यानी थोड़ी बहुत बोरियत दिमाग के लिए रिसेट बटन जैसा काम करती है।
कब बोरियत बन जाती है खतरनाक?
लेकिन बोरियत भी एक हद तक ही अच्छी है। डॉ. तरुण माथुर आगाह करते हैं कि अगर कोई व्यक्ति घंटों बोर होता है, उसका किसी काम में मन नहीं लगता, हर चीज से ऊब जाता है और चिड़चिड़ापन रहता है, तो यह डिप्रेशन या बर्नआउट की तरफ इशारा हो सकता है।
बर्नआउट एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति लंबे समय से चल रहे तनाव की वजह से शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से पूरी तरह थक जाता है। अगर ऐसा है तो किसी प्रोफेशनल की मदद लेना बहुत जरूरी है।
आजकल हम इतनी जल्दी बोर क्यों होने लगे हैं?
आपने भी नोटिस किया होगा कि आजकल हम बहुत जल्दी बोर होने लगे हैं। कुछ सेकंड की रील भी पूरी नहीं देख पाते। पहले किताब एक दिन में पढ़ लेते थे, अब हफ्ते लग जाते हैं। मूवी देखते-देखते फोन उठाने लगते हैं। पढ़ने बैठते हैं तो मन बार-बार स्क्रीन की तरफ भागता है।
डॉ. तरुण बताते हैं कि ऐसा तब होता है जब दिमाग हाई डोपामिन का आदि हो जाता है। डोपामिन एक न्यूरोट्रांसमीटर है जो केमिकल मैसेंजर का काम करता है और एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक सिग्नल पहुंचाता है।
जब हम कोई ऐसी एक्टिविटी करते हैं जिससे अच्छा महसूस होता है जैसे अच्छा खाना खाना, एक्सरसाइज करना या किसी से तारीफ मिलना, तब दिमाग में डोपामिन रिलीज होता है। इसे फील गुड हॉर्मोन भी कहते हैं।
डोपामिन ओवरलोड के खतरे और बचाव
समस्या यह है कि आजकल हम डोपामिन को नेचुरल तरीके से नहीं बल्कि तुरंत पाना चाहते हैं। इंस्टेंट फूड, इंस्टेंट शॉपिंग जैसी चीजें हमें फौरन खुशी देती हैं। बहुत ज्यादा फोन चलाना और सोशल मीडिया की लत भी इसका हिस्सा है। यह सब दिमाग में डोपामिन रिलीज करने के शॉर्टकट बन जाते हैं।
जब दिमाग को इन शॉर्टकट्स की आदत पड़ जाती है तो इसके गंभीर नुकसान होते हैं। फोकस कम होता है, कुछ करने की चाह घट जाती है, नींद की क्वालिटी खराब होती है, चिड़चिड़ापन बढ़ता है और व्यक्ति के सीखने की क्षमता भी धीरे-धीरे घटने लगती है।
इसीलिए डॉ. तरुण सलाह देते हैं कि रोज 20 से 30 मिनट का नो स्क्रीन टाइम रखना जरूरी है। न फोन, न टीवी। इस दौरान आप टहलने जा सकते हैं, ध्यान लगा सकते हैं या बस चुपचाप बैठ सकते हैं।
काले चने खाने के फायदे: सर्दियों का सुपरफूड
पाचन से लेकर वजन घटाने तक, काले चने के चमत्कारी गुण
काले चनों को कभी प्याज, टमाटर, नमक और मिर्च डालकर खाया है? जो स्वाद आता है वो लाजवाब होता है। और सिर्फ स्वाद ही नहीं, काले चने फायदों में भी नंबर वन हैं।
आर्टेमिस हॉस्पिटल में क्लिनिकल न्यूट्रिशन एंड डाइटेटिक्स डिपार्टमेंट की टीम लीड डॉ. अंशुल सिंह बताती हैं कि जिन लोगों का हाजमा अक्सर बिगड़ जाता है, उन्हें काले चने जरूर खाने चाहिए। वैसे भी सर्दियों में लोग खूब बाहर का खाते हैं जिससे पेट खराब हो जाता है।
काले चनों में सॉल्युबल और इनसॉल्युबल दोनों तरह के फाइबर होते हैं। सॉल्युबल फाइबर पानी में घुल जाता है और जेल जैसा पदार्थ बना लेता है जिससे स्टूल आसानी से पास होता है। वहीं इनसॉल्युबल फाइबर पानी में नहीं घुलता बल्कि स्टूल को भारी बनाता है। इसी वजह से काला चना कब्ज, गैस और अपच तीनों से राहत देता है।
काले चनों में प्रोटीन और फाइबर ज्यादा होता है जबकि कैलोरी कम होती है। इसे खाने के बाद पेट देर तक भरा महसूस होता है, आप ओवर ईटिंग नहीं करते और वजन घटाने में मदद मिलती है।
खून की कमी और डायबिटीज में फायदेमंद
डॉ. अंशुल सिंह बताती हैं कि जिन लोगों के शरीर में खून की कमी है, उन्हें काला चना जरूर खाना चाहिए क्योंकि इसमें आयरन भरपूर मात्रा में होता है।
डायबिटीज के मरीज भी बिना किसी टेंशन के काले चने खा सकते हैं। इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स लो होता है जिसका मतलब है कि इन्हें खाने के बाद खून में शुगर का लेवल धीरे-धीरे बढ़ता है, अचानक नहीं बढ़ता। इससे ब्लड शुगर कंट्रोल करने में काफी मदद मिलती है।
दिल की सेहत और इम्यूनिटी के लिए वरदान
काले चने दिल की सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद हैं। इसमें मौजूद पोटेशियम ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है। दरअसल पोटेशियम खाने से एक्स्ट्रा सोडियम पेशाब के जरिए शरीर से बाहर निकल जाता है। ऐसा होने पर खून की नलियां रिलैक्स होती हैं, खून का बहाव सुधरता है और बीपी कंट्रोल में रहता है। वहीं इसमें मौजूद फाइबर बैड कोलेस्ट्रॉल का लेवल घटाता है।
काले चनों में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो हमारे सेल्स को नुकसान से बचाते हैं। सेल शरीर की बेसिक यूनिट होती है और हेल्दी सेल्स का मतलब है मजबूत इम्यून सिस्टम। सर्दियों में खांसी, जुकाम, बुखार का खतरा बना रहता है, लेकिन काला चना खाने से सेल्स हेल्दी रहते हैं और तमाम इंफेक्शंस और बीमारियों का रिस्क घट जाता है।
हड्डियों की मजबूती और सेवन का तरीका
काले चनों में कैल्शियम, फास्फोरस और जिंक जैसे मिनरल्स होते हैं जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं। इससे फ्रैक्चर होने का रिस्क भी कम हो जाता है।
आप काले चनों को भिगोकर, उबालकर या भूनकर खा सकते हैं। चना चाट, दाल या सब्जी भी बना सकते हैं।
हालांकि डॉ. अंशुल सिंह चेतावनी देती हैं कि जिन लोगों को इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) है या किडनी से जुड़ी कोई बीमारी है, उन्हें काला चना खाने से बचना चाहिए।
मुख्य बातें (Key Points)
- 🫀 ब्रेडीकार्डिया तब होता है जब वयस्कों में हार्ट रेट 60 बीट्स प्रति मिनट से कम हो जाती है, हालांकि एथलीट्स में 40-50 बीट्स भी सामान्य मानी जाती है। चक्कर आना, बेहोशी और सीने में दर्द इसके मुख्य लक्षण हैं और इमरजेंसी में पेसमेकर तक की जरूरत पड़ सकती है।
- 🧠 रोज 10-15 मिनट बोर होना दिमाग के डिफॉल्ट मोड नेटवर्क को एक्टिव करता है जो मानसिक आराम देता है और क्रिएटिविटी बढ़ाता है। लेकिन घंटों की बोरियत डिप्रेशन या बर्नआउट का संकेत हो सकती है।
- 📱 डोपामिन ओवरलोड आजकल की सबसे बड़ी समस्या है जिसके कारण हम जल्दी बोर होने लगे हैं। इससे बचने के लिए रोज 20-30 मिनट का नो स्क्रीन टाइम जरूरी है।
- 🫘 काले चने पाचन, वजन घटाने, डायबिटीज कंट्रोल, खून की कमी दूर करने, दिल की सेहत और इम्यूनिटी बढ़ाने में कारगर हैं। लेकिन IBS और किडनी के मरीजों को इससे परहेज करना चाहिए।







