Trump H1-B Visa Fee Hike: अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का एक बड़ा दांव उन पर ही भारी पड़ता नजर आ रहा है। एच1-बी (H1-B) वीजा, जो विदेशी पेशेवरों के लिए अमेरिका में काम करने का मुख्य जरिया है, उस पर शुल्क बढ़ाने के फैसले ने वहां सियासी भूचाल ला दिया है। ट्रंप के इस फैसले के खिलाफ अमेरिका के ही 20 राज्यों ने बगावत कर दी है और मामला अब कोर्ट की दहलीज पर पहुंच गया है।
20 राज्यों ने खोला मोर्चा
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच1-बी वीजा पर भारी-भरकम शुल्क लगाने के फैसले के खिलाफ अमेरिका के 20 राज्यों ने एकजुट होकर मुकदमा दायर किया है। इस कानूनी लड़ाई की अगुवाई कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा कर रहे हैं। इन राज्यों का तर्क है कि प्रशासन द्वारा बढ़ाया गया यह शुल्क पूरी तरह से गैरकानूनी है। उनका कहना है कि ट्रंप प्रशासन के पास इतना बड़ा शुल्क लगाने का कोई अधिकार नहीं था और यह फैसला बिना किसी उचित प्रक्रिया के लिया गया है।
1 लाख डॉलर का शुल्क और विवाद
विवाद की मुख्य जड़ वह भारी-भरकम रकम है जिसे शुल्क के तौर पर थोपा गया है। खबर के मुताबिक, नए एच1-बी वीजा आवेदनों पर $1 लाख (1 Lakh Dollars) का शुल्क लगाने का आदेश दिया गया था। राज्यों का कहना है कि पहले जहां यह शुल्क $960 से $7,595 के बीच हुआ करता था, वहीं अब इसे बढ़ाकर सीधे 1 लाख डॉलर कर दिया गया है। यह फैसला 19 सितंबर 2025 को घोषित किया गया और हैरानी की बात यह है कि इसे महज दो दिन बाद, यानी 21 सितंबर से लागू भी कर दिया गया।
शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था पर खतरा
कोर्ट में दायर मुकदमे में राज्यों ने दलील दी है कि यह फैसला अमेरिका की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की कमर तोड़ देगा। कैलिफोर्निया, जो दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, उसका तर्क है कि जब दुनिया भर से कुशल प्रतिभाएं (Skilled Talent) उनके यहां आती हैं, तो राज्य आगे बढ़ता है। लेकिन 1 लाख डॉलर का यह ‘अवैध’ शुल्क स्कूलों, विश्वविद्यालयों और अस्पतालों पर भारी वित्तीय बोझ डाल देगा। इससे शिक्षकों और डॉक्टर्स की पहले से चल रही कमी और ज्यादा गंभीर हो जाएगी।
संविधान और नियमों का उल्लंघन
मुकदमे में शामिल मेसाचुसेट्स, न्यूयॉर्क और इलिनोइस जैसे 20 डेमोक्रेटिक बहुल राज्यों का आरोप है कि ट्रंप प्रशासन ने यह शुल्क लगाने के लिए न तो अमेरिकी कांग्रेस (संसद) की मंजूरी ली और न ही प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम (APA) का पालन किया। ऐतिहासिक रूप से एच1-बी शुल्क का मकसद सिर्फ वीजा कार्यक्रम चलाने की लागत निकालना होता था, न कि मनमाने तरीके से राजस्व जुटाना। राज्यों का कहना है कि यह नया शुल्क अमेरिकी संविधान और संघीय आव्रजन कानूनों का सीधा उल्लंघन करता है।
जानें पूरा मामला
एच1-बी वीजा भारतीय और विदेशी पेशेवरों के बीच बेहद लोकप्रिय है। ट्रंप प्रशासन ने 19 सितंबर 2025 को अचानक इस वीजा की फीस में बेतहाशा बढ़ोतरी का ऐलान कर दिया। इसका मकसद कथित तौर पर विदेशी कामगारों की आमद को रोकना या सीमित करना था। लेकिन इस फैसले ने अमेरिकी नियोक्ताओं, खास तौर पर पब्लिक सेक्टर के संस्थानों को मुश्किल में डाल दिया है, जिसके चलते अब यह मामला कानूनी लड़ाई में बदल गया है।
मुख्य बातें (Key Points)
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ट्रंप के एच1-बी वीजा शुल्क बढ़ाने के फैसले के खिलाफ 20 अमेरिकी राज्य कोर्ट पहुंच गए हैं।
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नए आदेश के तहत वीजा आवेदनों पर $1 लाख का भारी शुल्क लगाया गया है।
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कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा ने इस फैसले को गैरकानूनी और संविधान विरोधी बताया है।
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राज्यों का तर्क है कि इससे अस्पतालों और स्कूलों में कर्मचारियों की भारी कमी हो जाएगी।






