नई दिल्ली, 31 जुलाई (The News Air): शोले फिल्म का फेमस डॉयलग… सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जाएगा… को कोट करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गैंगस्टर से नेता बने अरुण गवली की रिहाई पर रोक के फैसले को बरकरार रखा है। गवली हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं और उनकी समय से पूर्व रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले आदेश में रोक लगा दी थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को बरकरार रखा है और इस तरह से गवली को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिल पाई। हत्या के मामले में अरुण गवली को उम्रकैद की सजा दी गई थी।
क्या है पूरा मामला
इस मामले में गवली की समय से पूर्व रिहाई का मामला बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के सामने आया था। तब हाई कोर्ट ने पांच अप्रैल को अपने आदेश में कहा था कि गवली की समय से पूर्व रिहाई के लिए दाखिल याचिका पर राज्य की अथॉरिटी विचार करे। हाई कोर्ट ने राज्य की 2006 की रिमिशन पॉलिसी (समय से पूर्व सजा में छूट की नीति) के तहत गवली की अर्जी पर विचार करने को कहा था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
20 नवंबर को अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने तीन जून को हाई कोर्ट के फैसले के अमल पर रोक लगा दी थी और सुनवाई टाल दी थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान अपने तीन जून के आदेश को बरकरार रखा और कहा कि वह गवली को किसी भी तरह की राहत देने के इच्छुक नहीं हैं और अंतरिम रोक बरकरार रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपील पर आखिरी सुनवाई के लिए 20 नवंबर की तारीख तय कर दी है।
10 मर्डर समेत गवली के खिलाफ 46 केस
सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश राजा ठाकरे ने दलील दी कि गवली के खिलाफ 46 केस हैं जिनमें 10 मामले मर्डर के हैं। तब सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार के वकील से सवाल किया कि क्या गवली ने पिछले पांच से आठ साल में कुछ किया है? तब ठाकरे ने जवाब दिया कि गैंगस्टर गवली पिछले 17 साल से जेल में बंद हैं। तब बेंच ने सवाल किया कि इस दौरान क्या गवली का रिफॉर्म हुआ है या नहीं? कैसे समाज को पता चलेगा कि कब से वह जेल में बंद हैं? वह 72 साल के हैं। हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए ठाकरे ने कहा कि मकोका में दोषी को 40 साल सजा काटने के बाद ही सजा में छूट पर विचार हो सकता है। यह 2015 की पॉलिसी है। गवली के वकील नित्या रामाकृष्णन कहा कि इस मामले में सह आरोपियों को जमानत दी जा चुकी है। बॉम्बे हाई कोर्ट का प्री मैच्योर्ड रिलीज पर फैसला सही है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों किया शोले मूवी का जिक्र
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि यह बात पता होना चाहिए कि सभी अरुण गवली नहीं हैं। शोले मूवी में एक फेमस संवाद है …सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जाएगा। यही केस यहां भी है। गवली की ओर से पेश रामाकृष्णन ने कहा कि गवली बीमार हैं और उनका हेल्थ ठीक नहीं है और वह लंग्स की बीमारी से ग्रसित हैं। तब सरकारी वकील ने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने 40 साल स्मोकिंग की है। तब रामाकृष्णन ने कहा कि इसका क्या मतलब है। क्या इसलिए आप उन्हें अंदर रखेंगे क्या यह स्मोकिंग के लिए ट्रायल चल रहा है?