Hindu Kush Glacier Melting Crisis : अगर वैश्विक तापमान (Global Temperature) में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो हिंदू कुश हिमालय (Hindu Kush Himalaya) के ग्लेशियर सदी के अंत तक अपनी 75% बर्फ खो सकते हैं। यह खुलासा विज्ञान पत्रिका ‘साइंस’ (Science Journal) में प्रकाशित एक नए अध्ययन में हुआ है। यह इलाका दुनिया की प्रमुख नदियों जैसे काबुल (Kabul) और हेलमंद (Helmand) का उद्गम स्थल है, जो करोड़ों लोगों की आजीविका से जुड़ी हुई हैं। अगर ये ग्लेशियर पिघलते हैं, तो अफगानिस्तान (Afghanistan) और पाकिस्तान (Pakistan) पर जल संकट गहरा सकता है।
पाकिस्तान पहले से ही भारत (India) के साथ सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) के तहत कई नदियों का जल प्राप्त करता है। यदि हिंदू कुश पर्वत के ग्लेशियर तेजी से पिघलते हैं, तो काबुल नदी (Kabul River) के प्रवाह पर प्रत्यक्ष असर पड़ेगा। यह नदी संगलाख रेंज (Sanglakh Range) से निकलती है और पाकिस्तान के एटक (Attock) क्षेत्र में सिंधु नदी (Indus River) से मिलती है। यह सिंधु की सबसे बड़ी सहायक नदी मानी जाती है, जिससे पाकिस्तान को सीधा जल लाभ मिलता है।
अध्ययन में कहा गया है कि यदि वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर (Pre-Industrial Level) से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जाए, तो हिमालय (Himalaya) और कॉकेशस पर्वत (Caucasus Mountains) की 40-45% बर्फ को संरक्षित किया जा सकता है। लेकिन अगर तापमान वृद्धि 2.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंची, तो केवल एक-चौथाई ग्लेशियर बर्फ ही बचेगी। यह आंकड़ा चेतावनी है कि दुनिया अगर अभी नहीं संभली, तो हजारों वर्षों से जमी ये बर्फ एक सदी में गायब हो सकती है।
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यूरोपियन आल्प्स (European Alps), पश्चिमी अमेरिका (Western America), कनाडा (Canada) और आइसलैंड (Iceland) जैसे क्षेत्रों के ग्लेशियर 2 डिग्री तापमान वृद्धि पर 85-90% तक बर्फ खो सकते हैं। स्कैंडिनेविया पर्वत (Scandinavia Mountains) का भविष्य और भी भयावह बताया गया है, जहां इस तापमान पर शायद कोई बर्फ बचे ही नहीं।
इस अध्ययन के सह-प्रमुख लेखक डॉ. हैरी जेकोलारी (Dr. Harry Zekollari) ने कहा कि आज के निर्णय आने वाले कई सौ वर्षों पर असर डालेंगे। उन्होंने कहा कि तापमान में मामूली वृद्धि भी बड़े बदलाव का कारण बन सकती है। 2015 के पेरिस समझौते (Paris Agreement) में जिस 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा की बात की गई थी, वह आज और भी प्रासंगिक हो गई है।
इस भयावह परिदृश्य के बीच दुशांबे (Dushanbe) में शुक्रवार से संयुक्त राष्ट्र का पहला ग्लेशियर सम्मेलन (UN Glacier Conference) शुरू हो रहा है। इसमें 50 से अधिक देश भाग ले रहे हैं, जिनमें 30 देशों के मंत्री और उच्च अधिकारी शामिल हैं। एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank) के उपाध्यक्ष यिंगमिंग यांग (Yingming Yang) ने कहा कि पिघलते ग्लेशियरों से जीवन, आजीविका और पारिस्थितिक तंत्र पर अभूतपूर्व खतरा उत्पन्न हो गया है। उनका मानना है कि स्वच्छ ऊर्जा (Clean Energy) को अपनाना और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करना ही इस संकट को थामने का एकमात्र रास्ता है।