नई दिल्ली : देशभर के शहरों में बाढ़ जैसे हालात अब आम हो चले हैं। दिल्ली और मुंबई में भारी जलभराव ने शहरी बाढ़ के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। हालांकि, चेन्नई, दावणगेरे, वडोदरा और अगरतला सहित कई शहर ऐसे हैं जिन्होंने दिखाया है कि इस समस्या से निदान संभव है।
इन शहरों ने तकनीक की मदद और उचित प्लानिंग के जरिये शहरी बाढ़ को रोकने में सफलता पाई है। कई शहरों ने स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत कई परियोजनाओं के कार्यान्वयन के माध्यम से इस समस्या को हल किया है।स्मार्ट सिटी मिशन एनडीए सरकार का प्रमुख कार्यक्रम है। इसका लक्ष्य 100 स्मार्ट शहर विकसित करना है। हमारे सहयोगी अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने इस मुद्दे को जाना कि इन चार शहरों ने कैसे बाढ़ जैसी स्थिति पर काबू पाया।
चेन्नई : हाईटेक कमांड एंड कंट्रोल सेंटर
चेन्नई को भी दिल्ली जैसी ही समस्या का सामना करना पड़ रहा था। यहां भी बारिश के कारण जलभराव हो जाता है। खास तौर पर अंडरपास वाले इलाकों में यह आम है। इसके कारण ट्रैफिक जाम की समस्या हो जाती है। अगर चेन्नई में कोई एक अंडरपास बंद हो जाता है, तो पूरे शहर में ट्रैफिक जाम फैल जाता है। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत, चेन्नई ने एक हाई-टेक कमांड और कंट्रोल सेंटर (CCC) में निवेश किया। सभी 100 स्मार्ट शहर इस सेट-अप के जरिए अपनी नगरपालिका सेवाओं का मैनेजमेंट करते हैं। यह वास्तव में शहर के नर्व सेंटर की तरह है। चेन्नई ने सबसे पहले अपने 50 अंडरपास का नक्शा बनाया। फिर कमांड एंड कंट्रोल सेंटर के जरिए उनकी निगरानी शुरू की। इससे शहर को पानी के जमाव को रोकने के लिए सही जगहों पर समय पर सक्शन पंप लगाने में मदद मिली।
वडोदरा : सीसीटीवी से निगरानी
वडोदरा के निचले इलाकों में 30 से अधिक ऐसे स्थान हैं जहां जलभराव की समस्या है। शहर में शहरी बाढ़ भी देखी गई है। अब तक, इन 30 स्थानों पर 1-2 अधिकारी तैनात किए जाते थे जो वहां मौजूद रह कर उनकी निगरानी करते थे। वे जिला मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट करते थे, जो स्थानीय अग्निशमन कार्यालय से बाढ़ की स्थिति की निगरानी करते थे। कभी-कभी जमीनी स्थिति की वास्तविक समय की रिपोर्टिंग में अंतराल होता था। ये अंतराल बाढ़ का कारण बनते थे। एक प्रवक्ता ने हमारे सहयोगी अखबार ईटी को बताया कि वडोदरा ने अब सीसीसी के माध्यम से निगरानी को सुव्यवस्थित किया है। इसने इन 30 स्थानों पर क्लोज सर्किट कैमरे (सीसीटीवी) लगाए हैं। अब, अधिकारियों की तैनाती की कोई जरूरत नहीं है और जमीनी जानकारी सटीक है।
दावणगेरे : चार साल से कोई जलभराव नहीं
दावणगेरे कर्नाटक का सातवां सबसे बड़ा शहर है। इसे राज्य का मैनचेस्टर कहा जाता है। सबसे पहले, शहर के मौजूदा जल निकासी नेटवर्क का सर्वेक्षण किया गया। एक वो काम जिसमें छह महीने लगे। सर्वेक्षण के बाद, शहर ने अनुमान लगाया कि कहां वर्षा जल निकासी की आवश्यकता है। परियोजनाओं को पहले दावणगेरे स्मार्ट सिटी के तहत क्षेत्र में और फिर बाहर भी शुरू किया गया। कुल मिलाकर, जलभराव को रोकने के लिए 69 किलोमीटर का वर्षा जल निकासी नेटवर्क बनाया गया था। इससे पहले, स्कूल और कॉलेज कई दिनों तक बंद रहते थे। बस टर्मिनल महीनों तक जलमग्न रहते थे। लेकिन स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के कार्यान्वयन के साथ, अब चार साल से कोई जलभराव नहीं हुआ है।
अगरतला : कलर बैंड के अनुसार SoP
शहर में साल के छह महीने भारी बारिश होती है। यहां नियमित रूप से एक दिन में 200 मिमी बारिश होती है। जल निकासी व्यवस्था का नक्शा बनाने के लिए पहला कदम 2018 में उठाया गया था। शहर में 340 किलोमीटर लंबे नाले हैं। शहर ने 50 किलोमीटर के नालों से अतिक्रमण हटा दिया। स्मार्ट सिटी फंड का इस्तेमाल 25 किलोमीटर लंबे कंक्रीट स्टॉर्म वाटर ड्रेन बनाने में किया गया। चूंकि शहर में बाढ़ का खतरा बना रहता है, इसलिए बाढ़ सेंसर लगाने का कोई मतलब नहीं था। एक अधिकारी ने ET को बताया कि सेंसर हर समय बजते रहते।
कलर बैंड सिस्टम का पालन
इसके बजाय शहर ने CCC में निवेश किया और फिर एक बैंड सिस्टम का पालन किया। इसने शहरी बाढ़ की आशंका वाले स्थानों की पहचान की और बिजली के खंभे पर अलग-अलग रंग की पट्टियां पेंट कीं। इसके बाद इसने प्रत्येक रंग के लिए मानक संचालन प्रक्रियाए (SoP) तैयार कीं। इन रंग बैंड पर ध्यान केंद्रित करते हुए CCTV लगाए गए। जब पानी जमा होना शुरू हुआ, तो बैंड के स्तर के अनुसार इसकी निगरानी की गई। इसने अधिकारियों को पानी के सक्शन पंप लगाने में मार्गदर्शन किया। अधिकारी ने कहा कि उदाहरण के लिए, यदि पानी हरे बैंड को पार कर लाल बैंड तक पहुंच जाता है, तो पानी के पंपों को तैनात किया जाएगा। इस तरह हर बैंड के लिए एक एसओपी था।