कनाडा, 07 जनवरी (The News Air) कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) का प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा न केवल उनकी राजनीतिक हार का संकेत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत (India) से बेवजह दुश्मनी कितनी भारी पड़ सकती है। खालिस्तान समर्थकों को खुश करने और भारत पर निज्जर (Nijjar) की हत्या का आरोप लगाने के उनके कदम ने उनकी लोकप्रियता को काफी गिरा दिया।
कैसे आई इस्तीफे की नौबत? : लिबरल पार्टी (Liberal Party) के भीतर ही जस्टिन ट्रूडो का विरोध बढ़ता जा रहा था।
- पार्टी के 20 सांसदों ने उनके खिलाफ एक पत्र पर हस्ताक्षर किए।
- उपप्रधानमंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड (Chrystia Freeland) ने भी नीतिगत मतभेदों के चलते अपना पद छोड़ दिया।
- जगमीत सिंह (Jagmeet Singh) जैसे सहयोगियों ने समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी।
हाल ही में हुए उपचुनावों में भी लिबरल पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा, जिससे ट्रूडो की नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े हो गए।
भारत से दुश्मनी कैसे पड़ी भारी? :
- निज्जर हत्याकांड का आरोप:
जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर (Hardeep Singh Nijjar) की हत्या का आरोप भारत पर मढ़ा, लेकिन कोई सबूत नहीं दिया। - भारत की कड़ी प्रतिक्रिया:
- भारत ने कनाडा के 6 राजनयिकों को देश से निकाल दिया।
- खालिस्तानी समर्थकों के भारत विरोधी हमलों और मंदिरों पर हमलों के बाद कनाडा की छवि पर भी गहरा असर पड़ा।
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर शर्मिंदगी:
G20 और अन्य सम्मेलनों में जस्टिन ट्रूडो को भारत और अन्य देशों से आलोचना झेलनी पड़ी।
लिबरल पार्टी के लिए चुनौतियां :
- नेतृत्व का संकट: जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे के बाद लिबरल पार्टी को एक ऐसा नेता चाहिए जो आगामी आम चुनावों में पार्टी को मजबूती दे सके।
- विपक्ष की बढ़त: विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी (Conservative Party) के नेता पियरे पोलिवर (Pierre Poilievre) जनमत सर्वेक्षणों में आगे चल रहे हैं।
- भारत के साथ रिश्तों में सुधार: भारत जैसे महत्वपूर्ण देश के साथ संबंध बिगाड़ना पार्टी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी चुनौती है।
खालिस्तान और कनाडा की फजीहत : जस्टिन ट्रूडो के खालिस्तान समर्थकों को खुश करने के फैसले ने कनाडा की छवि को बुरी तरह प्रभावित किया।
- खालिस्तानी समर्थकों ने हिंदू मंदिरों पर हमले किए और भारत विरोधी नारे लगाए।
- कनाडा की जनता ने ट्रूडो की इस नीति को खारिज कर दिया, जिससे उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई।
भारत के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाने और खालिस्तानी मुद्दे पर कमजोर नीतियों ने जस्टिन ट्रूडो को उनके पद से हटा दिया। उनका इस्तीफा न केवल लिबरल पार्टी के लिए नेतृत्व संकट खड़ा कर रहा है, बल्कि यह कनाडा की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी सवाल खड़े करता है। आगामी चुनावों में लिबरल पार्टी को अगर वापसी करनी है, तो उसे सही नेतृत्व और भारत के साथ बेहतर रिश्तों की जरूरत होगी।