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Dyslipidemia: 81% भारतीयों को है High Cholesterol, जानें कैसे बचें

हाई कोलेस्ट्रॉल को हल्के में लेना पड़ सकता है भारी, एक्सपर्ट्स ने बताए बचाव के तरीके

The News Air Team by The News Air Team
बुधवार, 17 दिसम्बर 2025
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Dyslipidemia
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High Cholesterol in India : भारत में 81.2% आबादी हाई कोलेस्ट्रॉल यानी डिस्लिपिडेमिया से जूझ रही है। ICMR INDIAB के आंकड़ों के मुताबिक यह आंकड़ा चौंकाने वाला है। तीन देश के जाने-माने कार्डियोलॉजिस्ट ने इस खामोश बीमारी के खतरों और बचाव के तरीकों पर विस्तार से जानकारी दी है।

डॉक्टर प्रवीण गोयल (मेदांता हार्ट इंस्टीट्यूट, लखनऊ), डॉक्टर अनिरुद्ध व्यास (विशेष जुपिटर हॉस्पिटल, इंदौर) और डॉक्टर सुशांत कुमार पाठक (फोर्ड हॉस्पिटल, पटना) ने बताया कि कैसे यह साइलेंट किलर धीरे-धीरे दिल को घेर लेता है।

क्या है डिस्लिपिडेमिया?

डॉक्टर अनिरुद्ध व्यास के मुताबिक शरीर में लाइपोप्रोटीन कई तरह के होते हैं। जब इनका स्तर बहुत ज्यादा बढ़ जाए या बहुत कम हो जाए तो इसे डिस्लिपिडेमिया कहते हैं।

आम भाषा में इसे हाई कोलेस्ट्रॉल भी कहा जाता है। इसमें LDL (बैड कोलेस्ट्रॉल), HDL (गुड कोलेस्ट्रॉल) और VLDL जैसे अलग-अलग प्रकार शामिल होते हैं।

यह हार्ट अटैक का एक बड़ा रिस्क फैक्टर है। इंटरहार्ट स्टडी और कई अंतरराष्ट्रीय शोधों में पाया गया कि जिनका LDL बढ़ा रहता है, उन्हें हार्ट अटैक का खतरा ज्यादा होता है।

भारतीयों को क्यों है ज्यादा खतरा?

एशिया पेसिफिक रीजन और खासकर भारतीय उपमहाद्वीप में जेनेटिक फैक्टर्स की वजह से डिस्लिपिडेमिया ज्यादा देखने को मिलता है।

पश्चिमी देशों की तुलना में भारतीयों में यह समस्या कहीं ज्यादा आम है। यही वजह है कि हमारे देश में कम उम्र में भी हार्ट अटैक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

कोलेस्ट्रॉल को सीरियसली क्यों नहीं लेते लोग?

डॉक्टर प्रवीण गोयल बताते हैं कि कोलेस्ट्रॉल का असली खतरा समझने में लोग चूक जाते हैं। कोलेस्ट्रॉल का रिस्क सिर्फ उसकी मात्रा पर नहीं, बल्कि कितने सालों तक बढ़ा रहा, इस पर भी निर्भर करता है।

अगर किसी का कोलेस्ट्रॉल 20 साल की उम्र से बढ़ना शुरू हो, तो 5 साल में उसे ज्यादा नुकसान होगा। वहीं अगर 50 साल में बढ़ना शुरू हो, तो खतरा कम होता है।

यह जानकारी आम लोगों के साथ-साथ कई जनरल फिजिशियंस को भी नहीं है। इसीलिए इलाज में कैजुअल रवैया दिखता है।

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दुबले लोगों का कोलेस्ट्रॉल नॉर्मल होता है? यह भ्रांति है

डॉक्टर सुशांत कुमार पाठक ने एक बड़ी गलतफहमी दूर की। उन्होंने बताया कि सिर्फ मोटे लोगों को ही डिस्लिपिडेमिया होता है, यह सोचना गलत है।

पतले इंसान को भी हाई कोलेस्ट्रॉल हो सकता है अगर उसकी लाइफस्टाइल खराब है। स्मोकिंग, शराब, आलसी दिनचर्या या फैमिली हिस्ट्री हो तो खतरा बढ़ जाता है।

विसरल फैट (पेट के अंदर जमा चर्बी) का कोलेस्ट्रॉल से गहरा संबंध है। बाहर से पतला दिखने वाला इंसान भी अंदर से अनहेल्दी हो सकता है।

हाई कोलेस्ट्रॉल होने पर क्या खतरे हैं?

डॉक्टर व्यास बताते हैं कि लोग दो तरह के होते हैं। पहले वो जो कोलेस्ट्रॉल की रिपोर्ट देखकर घबरा जाते हैं। दूसरे वो जो इसे बिल्कुल नजरअंदाज कर देते हैं।

दोनों तरीके गलत हैं। कोलेस्ट्रॉल सीधे खून से धमनियों में नहीं जमता। लिवर कोलेस्ट्रॉल बनाता है और फिर धमनियां खुद अलग से कोलेस्ट्रॉल बनाती हैं जिससे ब्लॉकेज होता है।

इसे कंट्रोल करने के तीन तरीके हैं – हेल्दी डाइट, रोजाना 45 मिनट से एक घंटा एक्सरसाइज और जरूरत पड़ने पर दवाइयां।

रेगुलर चेकअप क्यों जरूरी है?

डॉक्टर गोयल के मुताबिक कुछ लोगों में कोलेस्ट्रॉल जेनेटिक होता है। इसे फैमिलियल हाइपरकोलेस्ट्रोलीमिया कहते हैं। अगर आपका कोलेस्ट्रॉल हाई है, तो अपने परिवार के सदस्यों का भी टेस्ट करवाएं।

एक बड़ी बात – “नॉर्मल” कोलेस्ट्रॉल जैसी कोई चीज नहीं होती। जितना कम कोलेस्ट्रॉल हो, उतना अच्छा। 200 से नीचे नॉर्मल है, यह सोचना गलत है।

जो LDL खून में घूम रहा है, वो असल में लिवर से निकला एक्स्ट्रा कोलेस्ट्रॉल है जिसकी शरीर को जरूरत नहीं।

हार्ट पेशेंट्स का कोलेस्ट्रॉल कितना होना चाहिए?

डॉक्टर सुशांत पाठक ने स्पष्ट आंकड़े बताए:

  • सामान्य व्यक्ति: LDL 100 mg/dL से कम होना चाहिए
  • हार्ट अटैक या स्टेंट वाले मरीज: LDL 70 mg/dL से कम
  • बहुत हाई रिस्क वाले मरीज: LDL 45-50 mg/dL से भी कम

अगर ट्राइग्लिसराइड 350-400 से ऊपर है तो यह खतरे की घंटी है। ऐसे में लाइफस्टाइल बदलाव के साथ दवाइयां भी जरूरी हैं।

डिस्लिपिडेमिया में कैसी हो डाइट?

डॉक्टर व्यास ने एक रोचक तथ्य बताया। बंदरों की पूरी प्रजाति में सिर्फ इंसान को ही हार्ट अटैक होता है। फर्क सिर्फ खानपान का है।

क्या नहीं खाना चाहिए:

  • प्रोसेस्ड कार्बोहाइड्रेट (चीनी, मैदा, मिठाई)
  • सैचुरेटेड फैट (बटर, मेयोनीज, चीज)
  • जंक फूड और बर्गर
  • तला हुआ खाना
  • रेड मीट

क्या खाना चाहिए:

  • ताजी सब्जियां और फल
  • हरी पत्तेदार सब्जियां
  • फाइबर युक्त भोजन
  • साबुत अनाज

सिर्फ डाइट से 15% तक ही कोलेस्ट्रॉल कम होता है। बाकी के लिए एक्सरसाइज और दवाइयां जरूरी हैं।

87% मरीज क्यों छोड़ देते हैं दवाइयां?

डॉक्टर गोयल ने बताया कि स्टैटिन दवाइयां तीन हफ्ते में कोलेस्ट्रॉल कम कर देती हैं। कुछ इंजेक्शन तो एक हफ्ते में असर दिखाते हैं।

जब रिपोर्ट नॉर्मल आ जाती है, लोग सोचते हैं अब दवा की जरूरत नहीं। यह बहुत बड़ी गलती है।

यह एक मेटाबॉलिक समस्या है। दवा बंद करते ही कोलेस्ट्रॉल वापस उसी लेवल पर आ जाता है। सिर्फ 2-5% लोगों को स्टैटिन से साइड इफेक्ट होते हैं।

दवा बीच में छोड़ने पर क्या होता है?

डॉक्टर सुशांत पाठक ने गंभीर चेतावनी दी। कोलेस्ट्रॉल धमनियों में जमता है और ब्लॉकेज बनाता है।

दवाइयों से जो प्लाक स्थिर होते हैं, दवा बंद करने पर वे अस्थिर हो जाते हैं। इससे प्लाक फट सकता है और अचानक हार्ट अटैक या स्ट्रोक हो सकता है।

LDL की वेरिएबिलिटी (उतार-चढ़ाव) बहुत खतरनाक है। अगर LDL 50-60 से बढ़कर 70-80 हो जाए तो स्थिर प्लाक भी अस्थिर हो सकते हैं।

डायबिटीज और BP के साथ कोलेस्ट्रॉल कितना खतरनाक?

डॉक्टर व्यास ने बताया कि जब तीनों रिस्क फैक्टर – हाई BP, डायबिटीज और हाई कोलेस्ट्रॉल एक साथ हों, तो खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

इसे मेडिकल भाषा में “मेटाबॉलिक सिंड्रोम” कहते हैं। अगर मोटापा भी जुड़ जाए तो स्थिति और गंभीर हो जाती है।

ये बीमारियां अनुवांशिक होती हैं और परिवार में चलती हैं। इसलिए घर में हेल्दी वातावरण बनाना जरूरी है। बच्चों को सैलाड और फल खाने की आदत डालें, न कि बर्गर-पिज्जा की।

लाइफस्टाइल में कौन से बदलाव जरूरी?

डॉक्टर गोयल ने बताया:

  • नॉनवेज और तली चीजें कम करें
  • ट्रांस फैट से बचें
  • रेगुलर एक्सरसाइज करें (ट्राइग्लिसराइड कम होता है)
  • चीनी, आलू, चावल, स्टार्च कम खाएं
  • नमक का सेवन कम करें
  • ताजे फल और सब्जियां ज्यादा खाएं
  • स्मोकिंग छोड़ें
कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल के लिए फाइनल टिप्स

डॉक्टर सुशांत पाठक की सलाह:

  • एक्सरसाइज: रोजाना 30-60 मिनट मॉडरेट एक्सरसाइज
  • योगा: तनाव कम करने के लिए
  • प्रोसेस्ड फूड: चिप्स, पैक्ड फूड से दूर रहें
  • नींद: 6-8 घंटे की नींद जरूर लें
  • तनाव: स्ट्रेस मैनेजमेंट पर ध्यान दें
  • अन्य बीमारियां: हाइपोथायरॉइड, डायबिटीज, BP का इलाज करवाएं
जानें पूरी पृष्ठभूमि

डिस्लिपिडेमिया को “साइलेंट किलर” कहा जाता है क्योंकि इसके कोई सीधे लक्षण नहीं होते। यह चुपचाप धमनियों में जमता रहता है और एक दिन हार्ट अटैक या स्ट्रोक के रूप में सामने आता है। भारत में 81% से ज्यादा आबादी इससे प्रभावित है, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण समय पर इलाज नहीं हो पाता। अच्छी खबर यह है कि सही डाइट, एक्सरसाइज और जरूरत पड़ने पर दवाइयों से इसे पूरी तरह कंट्रोल किया जा सकता है।


मुख्य बातें (Key Points)
  • 81.2% भारतीयों को हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या है, यह हार्ट अटैक का बड़ा रिस्क फैक्टर है
  • पतले लोगों को भी हाई कोलेस्ट्रॉल हो सकता है, सिर्फ मोटापा ही कारण नहीं
  • 87.3% मरीज दवाइयां बीच में छोड़ देते हैं जो बहुत खतरनाक है
  • डाइट, एक्सरसाइज और दवाइयां – तीनों मिलकर ही कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल कर सकते हैं
  • सामान्य व्यक्ति का LDL 100 से कम और हार्ट पेशेंट का 70 से कम होना चाहिए

 

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