नई दिल्ली, 21 दिसंबर (The News Air): डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) भारतीय समाज के महान नेता, संविधान निर्माता, और समाज सुधारक के रूप में सदैव याद किए जाते हैं। उनका जीवन एक प्रेरणा की तरह है, जो संघर्ष, समानता और सामाजिक न्याय की ओर अग्रसर होने की ताकत देता है। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, भेदभाव और असमानता के खिलाफ़ कड़ा संघर्ष किया और भारतीय संविधान को आकार देकर देश को समानता और स्वतंत्रता की दिशा में एक मजबूत कदम बढ़ाया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू शहर में हुआ था। वे एक पिछड़ी जाति के परिवार से थे, और उनके जीवन की शुरुआत कठिनाइयों से भरी हुई थी। अंबेडकर के पिता सैन्य विभाग में कर्मचारी थे, और उनका परिवार आर्थिक दृष्टि से कमजोर था। हालांकि, अंबेडकर का जीवन शैक्षिक क्षेत्र में संघर्षों से भरा था, वे हमेशा शिक्षा को सबसे बड़ा हथियार मानते थे।
अपने जीवन के पहले वर्षों में ही डॉ. अंबेडकर को जातिवाद और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। स्कूल और कॉलेज में उन्हें शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न झेलना पड़ा, लेकिन इसने उन्हें निराश नहीं किया, बल्कि उनके भीतर समाज में बदलाव लाने का जज्बा और मजबूत किया।
अंबेडकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा को मुंबई से प्राप्त किया और बाद में उच्च शिक्षा के लिए विदेश यात्रा की। उन्होंने 1915 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में M.A. की डिग्री प्राप्त की, और फिर लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से कानून में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की।
डॉ. अंबेडकर का समाज सुधारक के रूप में योगदान
डॉ. अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) ने अपनी शिक्षा और अनुभवों से जो ज्ञान अर्जित किया, उसका उपयोग उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त असमानता और भेदभाव को समाप्त करने के लिए किया। उन्होंने दलितों, आदिवासियों और पिछड़ी जातियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और समाज में समानता की अवधारणा को स्थापित किया। अंबेडकर का मानना था कि शिक्षा ही समाज में असमानता और भेदभाव को समाप्त करने का सबसे प्रभावी तरीका है।
उनके द्वारा चलाए गए प्रमुख आंदोलनों में “महाड सत्याग्रह” (1930), “चौरी चौरा सत्याग्रह” (1932), और “धर्म परिवर्तन आंदोलन” शामिल हैं। महाड सत्याग्रह का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा संचालित पानी के तालाबों तक दलितों की पहुंच को सुनिश्चित करना था। इसके अलावा, अंबेडकर ने 1932 में पूना पैक्ट के तहत दलितों को अलग प्रतिनिधित्व का अधिकार दिलवाया।
भारतीय संविधान में डॉ. अंबेडकर का योगदान
डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) का सबसे बड़ा योगदान भारतीय संविधान के निर्माण में था। वे भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे, और उन्होंने संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार देने का प्रावधान किया। उनका यह मानना था कि हर व्यक्ति को अपनी जाति, धर्म, और लिंग के आधार पर भेदभाव का शिकार नहीं होना चाहिए।
डॉ. अंबेडकर ने संविधान में महत्वपूर्ण धाराएं शामिल कीं, जैसे कि धारा 15 (जो किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव को प्रतिबंधित करती है), धारा 17 (जो अस्पृश्यता को समाप्त करती है), और धारा 46 (जो कमजोर वर्गों की रक्षा करती है)। इसके अलावा, उन्होंने महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा और श्रम अधिकारों पर भी जोर दिया।
डॉ. अंबेडकर का धर्म परिवर्तन
डॉ. अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) ने हिंदू धर्म में व्याप्त जातिवाद और असमानता से तंग आकर 1956 में बौद्ध धर्म को अपनाया। उनका यह कदम भारतीय समाज में एक ऐतिहासिक घटना था, जिसे लाखों दलितों ने अनुसरण किया। अंबेडकर का मानना था कि बौद्ध धर्म समानता, भाईचारे और प्रेम का धर्म है, जो भारतीय समाज में सुधार ला सकता है।
डॉ. अंबेडकर का राजनीतिक जीवन
डॉ. अंबेडकर ने भारतीय राजनीति में भी सक्रिय भाग लिया और भारतीय जनसंघ, जिसे बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में जाना गया, के विरोध में खुद को स्थापित किया। उन्होंने भारतीय राजनीति में दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की वकालत की। उनके द्वारा स्थापित भारतीय रिपब्लिकन पार्टी का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों की आवाज़ बनना था।
डॉ. अंबेडकर का निधन
डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) का निधन 6 दिसंबर 1956 को हुआ था। उनका निधन भारतीय समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति थी, लेकिन उनके योगदान और विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। डॉ. अंबेडकर के अनुयायी आज भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, और उनका योगदान भारतीय राजनीति, समाज और संस्कृति में अमिट रहेगा।
डॉ. अंबेडकर के उद्धरण
डॉ. अंबेडकर के कई प्रसिद्ध उद्धरण आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। उनके कुछ प्रमुख उद्धरणों में शामिल हैं:
- “Educate, Agitate, Organize” (शिक्षा, आंदोलन और संगठन) – डॉ. अंबेडकर का यह मंत्र आज भी समाज सुधारकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
- “I measure the progress of a community by the degree of progress which women have achieved.” (मैं एक समुदाय की प्रगति को इस बात से मापता हूं कि उसकी महिलाओं ने कितनी प्रगति की है।)
डॉ. भीमराव अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) का जीवन भारतीय समाज के लिए एक प्रेरणा है। उनके योगदान ने भारतीय समाज को न केवल शिक्षा और समानता का मार्ग दिखाया, बल्कि भारतीय संविधान को आकार देकर देश को न्याय और समानता की दिशा में अग्रसर किया। उनका संघर्ष और विचार हमें यह सिखाता है कि समाज में बदलाव लाने के लिए शिक्षा, संगठन और संघर्ष की आवश्यकता होती है।
डॉ. अंबेडकर का योगदान और उनके सिद्धांत आज भी हमारे जीवन में प्रासंगिक हैं और हमें सामाजिक न्याय, समानता और मानवाधिकारों के लिए लगातार संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं।