Delhi Blast Update में एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। राजधानी दिल्ली को दहलाने की साजिश रचने वाले आतंकी जिस रास्ते का इस्तेमाल करते थे, उसे जानकर सुरक्षा एजेंसियां भी हैरान रह गई हैं। लाल किले के पास हुए धमाके की जांच में यह बात सामने आई है कि आतंकी किसी आम सड़क या हाइवे से नहीं, बल्कि अरावली की पहाड़ियों के बीहड़ और सुनसान जंगली रास्तों से दिल्ली में दाखिल होते थे। जांच एजेंसियों ने उस पूरे ‘सीक्रेट रूट’ को ट्रेस कर लिया है, जिसका इस्तेमाल आतंकी उमर और उसके साथी मुजम्मिल लगातार कर रहे थे।
अल-फलाह यूनिवर्सिटी से शुरू होता था ‘मौत का सफर’
इस पूरी साजिश का केंद्र फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी थी। जांच में पता चला है कि आतंकी उमर और मुजम्मिल इसी यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए थे। यहां से वे मेन रोड पकड़ते थे और फिर धौज गांव की पुलिस चौकी से एक अंदरूनी रास्ता लेते थे। यह रास्ता सिलाखरी गांव और फिर मांगर गांव की ओर जाता है। यह पूरा इलाका इतना सुनसान और जंगली है कि यहां किसी आम आदमी की आवाजाही न के बराबर है।
12 किलोमीटर का ‘अदृश्य’ रास्ता
आतंकियों ने पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की नजरों से बचने के लिए अरावली के जंगलों के बीच से गुजरने वाले करीब 12 किलोमीटर लंबे एक कच्चे और सुनसान रास्ते को चुना था। धौज गांव से शुरू होकर यह रास्ता सीधा दिल्ली बॉर्डर तक पहुंचता है। खास बात यह है कि इस पूरे रूट पर न तो कोई रिहायशी इलाका है और न ही कोई स्ट्रीट लाइट। अंधेरे और सन्नाटे का फायदा उठाकर आतंकी बेखौफ होकर हथियार और विस्फोटक सामग्री दिल्ली पहुंचाते थे।
पुलिस नाके और चेकिंग से बचने की चाल
दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर आमतौर पर पुलिस की सख्त पहरेदारी और बैरिकेडिंग होती है। हर गाड़ी की चेकिंग की जाती है। आतंकियों को यह बखूबी पता था, इसलिए उन्होंने एक ऐसा रास्ता खोज निकाला जहां पुलिस की मौजूदगी शून्य थी। उन्होंने इस रूट की कई बार रेकी की थी और ट्रायल रन भी किए थे ताकि हमले वाले दिन कोई चूक न हो। मांगर गांव की चौकी से दिल्ली बॉर्डर तक का 5-6 किलोमीटर का हिस्सा पूरी तरह वीरान है, जो घुसपैठ के लिए मुफीद साबित हुआ।
बाबा बागेश्वर की यात्रा भी थी निशाना?
जांच में एक और बेहद गंभीर एंगल सामने आया है। बताया जा रहा है कि इसी रूट से हाल ही में बाबा बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की ‘सनातन हिंदू एकता यात्रा’ भी गुजरी थी। 8 नवंबर को यह यात्रा फरीदाबाद बॉर्डर से दिल्ली की तरफ आई थी। आशंका जताई जा रही है कि आतंकियों के निशाने पर यह यात्रा भी हो सकती थी। फिलहाल एजेंसियां इस थ्योरी की भी गहनता से जांच कर रही हैं।
जानें पूरा मामला
10 नवंबर को दिल्ली के लाल किला इलाके में एक धमाका हुआ था, जिसने सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए थे। जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ी, तार फरीदाबाद तक जा जुड़े। अल-फलाह यूनिवर्सिटी और धौज गांव के सुनसान इलाकों में अमोनियम नाइट्रेट छिपाने की बात भी सामने आई है। अब इस नए खुलासे ने साफ कर दिया है कि आतंकियों ने दिल्ली में घुसपैठ के लिए अरावली के जंगलों को अपना सुरक्षित गलियारा बना रखा था।
मुख्य बातें (Key Points)
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आतंकी अल-फलाह यूनिवर्सिटी से अरावली के जंगलों के रास्ते दिल्ली में घुसते थे।
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पुलिस चेकिंग से बचने के लिए 12 किलोमीटर लंबे सुनसान रूट का इस्तेमाल किया गया।
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इस रास्ते पर कोई रिहायश या स्ट्रीट लाइट नहीं है, जिसका फायदा आतंकियों ने उठाया।
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बाबा बागेश्वर की यात्रा भी इसी रूट से गुजरी थी, जो आतंकियों के निशाने पर हो सकती थी।






