नई दिल्ली, 21 मार्च (The News Air) राजस्थान का ऐतिहासिक शहर दौसा शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है. खासतौर पर राजेश पायलट ने तो इस जिले को कांग्रेस का अभेद्य किला बना दिया था. समय के साथ अब यहां परिस्थिति भी बदली है. इस लोकसभा सीट पर दो बार से बीजेपी का कब्जा है और इस बार बीजेपी हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में उतरी है. वहीं कांग्रेस पार्टी अपने गढ़ को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है. इसके लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता सचिन पायलट यहां पर लगातार सक्रिय हैं और यहां के मतदाताओं से मिलकर गिले शिकवे मिटा रहे हैं.
दौसा लोकसभा क्षेत्र का गठन जयपुर जिले की दो, अलवर की एक और दौसा जिले की पांच विधानसभा सीटों को मिलाकर किया गया है. इनमें 5 विधायक बीजेपी के ही है. वहीं बाकी तीन विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में यहां से बीजेपी के हरीश मीणा सांसद चुने गए थे. हालांकि साल 2019 में बीजेपी ने प्रत्याशी बदल दिया और जसकौर मीणा को मैदान में उतारा. इसमें उन्हें विजयश्री मिली और वह निवर्तमान सांसद हैं.
क्षेत्र में सक्रिय हुए सचिन पायलट : उधर, कांग्रेस भी इस सीट पर अपनी जमीन बचाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही. खुद सचिन पायलट लगातार दौरा कर रहे हैं, लोगों से मिल रहे हैं और नए सिरे से गढ़ को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. भारतीय लोकतंत्र के गठन के साथ ही अस्तित्व में आई इस लोकसभा सीट पर पहला लोकसभा चुनाव साल 1952 में हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस के राज बहादुर सांसद चुने गए थे. फिर साल 1957 में हुए अगले ही चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने प्रत्याशी बदल दिया और इसमें कांग्रेस के ही जीडी सोमानी सांसद बन गए.
कांग्रेस का गढ़ रहा दौसा : 1962 में हुए तीसरे चुनाव में यह सीट स्वतंत्र पार्टी के पृथ्वीराज ने कांग्रेस से झटक ली. 67 के चुनाव में भी यह सीट स्वतंत्र पार्टी के पास रही और सांसद आरसी गनपत चुने गए थे. हालांकि 1968 के चुनाव में कांग्रेस ने दोबारा से इस सीट पर कब्जा किया और यहां से नवल किशोर शर्मा दो बार लगातार जीतते रहे. 1977 में जब चुनाव हुए तो यहां से जनता पार्टी के नाथू सिंह गुर्जर सांसद चुने गए थे, लेकिन 80 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के नवल किशोर शर्मा जीते.
दो बार से जीत रही बीजेपी : 1984 के चुनाव में पहली बार राजेश पायलट इस सीट से मैदान में उतरे और 89 के चुनाव को छोड़ कर 1999 तक हुए सभी चुनाव जीतते रहे. 89 में उन्हें बीजेपी के नाथू सिंह गुर्जर ने हराया था. फिर 2000 में हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी रामा पायलट यहां से सांसद बनी और 2004 में सचिन पायलट ने यहां से नेतृत्व किया. चूंकि 2009 के चुनाव से पहले सचिन पायलट राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हो गए, वहीं यह सीट भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई. ऐसे में यह सीट स्वतंत्र उम्मीदवार किरोड़ी लाल मीणा ने जीत ली. हालांकि 2014 के बाद से यह सीट बीजेपी के पास है.
इतिहास-भूगोल : दौसा राजस्थान का एक ऐतिहासिक शहर है. जयपुर से 54 किलोमीटर की दूर स्थित यह जिला लंबे समय तक बडगुर्जरों के अधीन रहा.दौसा की पहचान ढुंढाड के नाम से भी है.10वीं शताब्दी में यहां चौहान वंश का शासन था. फिर 1006 से 1036 तक यहां कछवाहा शासक दुल्हे राय ने शासन किया. कहा जाता है कि दौसा की जमीन दुल्हेराय को दहेज में मिली थी. इसे कछवाहा राजपूतों की पहली राजधानी भी कहा जाता है. दौसा के बाद ही कछवाहों ने जयपुर और आमेर को अपनी राजधानी बनाई थी. आजादी के बाद दिल्ली के लालकिले पर जो पहला तिरंगा फहराया गया, वो भी दौसा के गांव अलुदा में बनाया गया था. दौसा जिले में कई बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी हुए. इनमें टीकाराम पालीवाल और राम करण जोशी अहम है. आजादी के बाद 1952 में टीकाराम पालीवाल राजस्थान के पहले निर्वाचित मुख्यमंत् बने. वहीं राम करण जोशी राजस्थान के पहले पंचायती राज मंत्री थे.
दौषा का मुख्य आकर्षण : राजस्थान में दौसा को देवनगरी कहा जाता है. झाझी रामपुर प्राकृतिक कुंड पहाड़ियों से घिरी बहुत सुंदर जगह है. यहां पहाड़ी पर प्रसिद्ध नीलकंठ महादेव का मंदिर है. इसके अलावा प्रसिद्ध मन्दिरों श्री मेंहदीपुर बालाजी है. इस मंदिर का निर्माण श्रीराम गोस्वामी ने कराया था. मान्यता है कि यहां भूत-प्रेत के संकट का निवारण होता है. इसके अलावा 12वीं शदी की दुर्लभ मूर्तिकला के रूप में हर्साद माताजी का मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है. इस मंदिर को औरंगजेब ने तोड़ दिया था. हालांकि अब भी इस मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं, जो गुर्जर-प्रतिहार शैली के हैं.
कैसे पहुंचे : दौसा नगर रेल मार्ग पर है और जिले में बांदीकुई एक महत्त्वपूर्ण जंक्शन है. इसी जंक्शन से जयपुर-दिल्ली-आगरा के लिए रेलखंड हैं. वहीं सड़क मार्ग पर यह नगर आगरा और जयपुर को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 21 से कनेक्टेड है. यह राजमार्ग नगर से होकर गुजरता है. अलवर-जयपुर के लिए भी हाईवे दौसा से होकर निकलता है.
राजनीतिक गणित : अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित इस लोकसभा क्षेत्र में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की आबादी करीब 362,925 है. यदि 2011 की जनगणना से तुलना करें तो करीब 21.1फीसदी वोटर अनुसूचित जाति के ही हैं. इसी प्रकार अनुसूचित जनजाति के मतदाता 25.9 फीसदी यानी करीब 445,487 हैं. इस सीट पर मुस्लिम आबादी ढाई फीसदी बताई जा रही है. यहां मुस्लिम वोटर करीब 43,318 हैं. निर्वाचन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक इस लोकसभा क्षेत्र में 88.6 फीसदी यानी 1,523,943 वोटर गांवों में रहते हैं. वहीं वोटर यानी 11.4 फीसदी आबादी शहरी है. 2019 के संसदीय चुनाव के वक्त यहां मतदाताओं की कुल संख्या 1720026 थी. हालांकि मतदान महज 61.1 फीसदी ही हुआ था.