बॉलीवुड कृष, रा वन इत्यादी जैसी सुपरहीरो फ़िल्मों का गवाह बन चुका है । इस हफ़्ते बॉक्सऑफ़िस पर रिलीज हुई फ़िल्म ए फ़्लाइंग जट्ट, जिसमें टाइगर श्रॉफ़, जैकलिन फ़र्नांडीस और नाथन जोंस मुख्य भूमिका में नजर आए हैं । क्या ए फ़्लाइंग जट्ट बॉक्सऑफ़िस पर सफ़ल साबित होगी या धराशायी हो जाएगी, आइए समीक्षा करते हैं ।
बालाजी मोशन पिक्चर्स के बैनर तले बनी फ़िल्म ए फ़्लाइंग जट्ट अनिवार्य रूप से एक अनिच्छुक सुपर हीरो की उत्तपत्ति की स्थापना है, जिसे ऊंचाई से डर लगता है । बुरे विचारों का, पैसे का भूखा, शहर का दबंग इंडस्ट्रियलिस्ट मल्होत्रा (के के मेनन), और अपनी कंस्ट्रक्शन कंपनी को बढ़ाने की योजना के साथ फ़िल्म की शुरूआत होती है । अपनी कंस्ट्रक्शन के विस्तार की योजना के बीच,श्रीमती करतार सिंह उर्फ़ बेबे (अमृता सिंह) उसके इरादों को कामयाब नहीं होने देती हैं और उसकी योजना के आड़े आ जाती हैं क्योंकि वो जमीन उसके दिवंगत पति की निशानी होती है जिसे मल्होत्रा अपने प्रोजेक्ट के लिए किसी भी तरह से हड़पना चाहता है । मल्होत्रा उस जमीन के टुकड़े के लिए बेबे को दोगुनी रकम भी ऑफ़र करता है जिसे बेबे ठुकरा देती है क्योंकि मल्होत्रा जिस कंपनी को लगाने के लिए वो जमीन हासिल करना चाहता है उससे शहर में बहुत प्रदूषण फ़ैलेगा । और यहीं से मल्होत्रा घातक हो जाता है और अपने अंडर काम करने वाले बलशाली राका (नाथन जोंस) को बुलाता है ताकि वो करतार सिंह कॉलोनी, जहां एक अत्यंत पवित्र और इच्छा पूर्ति पेड़ लगा हुआ है, से बेबे सहित सभी रहवाशी को बाहर निकाल सके । राका जैसे ही उस पेड़ को उखाड़ता है पेड़ के ठीक पीछे से अमन (टाइगर श्रॉफ) बाहर निकलता है । अमन बेबे का बेटा है और एक स्कूल में मार्शल आर्ट का टीचर है । जैसे ही राका उस पेड़ को काटता है वैसे ही उस जगह एक चमत्कार होता है और अमन में महाशक्तियों आने लगती है जो उसे सुपरहीरो बनाती हैं, वहीं राका में बुरी शक्तियों आने लगती हैं । राका की शक्तियां प्रदूषण के कारण और ज्यादा बढ़ती जाती हैं । अपने बेटे अमन को सुपरपावर के साथ देखकर बेबे उसका नाम फ़्लाइंग जट्ट रख देती है । राका और फ़्लाइंग जट्ट के बीच लड़ाई की इस श्रृंखंला में आगे क्या-क्या होता है । इन सबके बीच अमन का अनकहा प्यार कीर्ति (जैकलीन), जो इस खबर से अंजान है कि सब का मसीहा बना फ़्लाइंग जट्ट और कोई नहीं खुद अमन ही है । क्या अमन कीर्ति से अपने प्यार का इजहार करने के लिए साहस जुटा पाता है, क्या कीर्ति को ये पता चल पाता है कि फ़्लाइंग जट्ट कोई और नहीं खुद अमन ही है क्या फ़्लाइंग जट्ट राका को हराने में कामयाब हो पाता है… ये सब फ़िल्म देखने के बाद ही पता चलता है ।
अच्छाई और बुराई, नैतिक बनाम अनैतिक, धार्मिक बनाम अधर्मी के बीच लड़ाई फ़िल्म में चित्रित किया गया है । अच्छे और बुरे, नैतिक बनाम अनैतिक, धार्मिक बनाम भ्रष्ट के बीच की लड़ाई के ऊपर कई फ़िल्में बनाई जा रही हैं । और अगर दो चरम सीमाओं के बीच लड़ाई को बेहतरीन ढंग से दर्शाया जाए तो दर्शक न सिर्फ़ फ़िल्म को पसंद करते हैं बल्कि इस टकराव को बड़े पर्दे पर देखने के लिए वापस भी अते हैं । ए फ़्लाइंग जट्ट के मामले में, ये फ़िल्म एक कमजोर पटकथा (तुषार हीरानंदानी, रेमो डिसूजा) है, जो एक कमजोर कहानी में कबाब में हड्डी की तरह पूरी फ़िल्म में खटकती है । जबकि फ़िल्म की कहानी अच्छाई बनाम बुराई की उत्पत्ति है, फ़िल्म में विषय का भारतीयकरण कर दिया गया है और एक पंजाबी तड़के के साथ भारतीय संवेदनशीलता को अपील करने के लिए परोसा गया है । भले ही फ़िल्म काफ़ी हद तक मनोरंजित करती है पर कई जगह ये फ़िल्म अपनी लय खो देती है । फ़िल्म के आखिरी अंश में अंतरिक्ष में हुई लड़ाई के सीन बहुत विचित्र लगते हैं । फ़िल्म के दौरान रेमो की खुद के बारें में कुछ बेहुदी सी टिप्पण्णी काफ़ी हास्यप्रद है । हालांकि फ़िल्म के संवाद,(आकाश कोशिक) असाधरण नहीं लगते हैं । लेकिन फ़िल्म के प्रवाह के साथ ठीक जाते हैं । फ़िल्म की कहानी काफ़ी संबद्ध है और धार्मिक भावनाओं को काफ़ी कुशलता से दर्शाने में सफ़ल रही है ।
निर्देशक रेमो डिसूजा, जिसकी पिछली फ़िल्म एबीसीडी 2 बॉक्सऑफ़िस पर सुपरहिट साबित हुई, ने फ़िल्म ए फ़्लाइंग जट्ट में अच्छा काम किया है , लेकिन भद्दे-भड़कीले वीएफएक्स और कमजोर पटकथा फ़िल्म के निर्देशन पर भारी पड़ जाते हैं (बिलकुल अक्षरशः) । रेमो डिसूजा की अतीत की ख्याति बावजूद, ये विश्वास करना काफ़ी मुश्किल है कि वो फ़िल्म की इतने विसंगत अंत के लिए तैयार हो गए । मध्यांतर से पहले फ़िल्म दिलचस्प, मजेदार और बांधे रखने वाली है लेकिन मध्यांतर के बाद फ़िल्म अपने रास्ते से भटक जाती है और पर्यावरण और धर्म के बारे में भी उपदेशात्मक रूप अख्तियार कर लेती है ।
फ़िल्म में कुछ सीन ऐसे भी है जिन्हें कोई भी दर्शक देखने से चूकना नहीं चाहेगा, जैसे टाइगर श्रॉफ़ का सनी लियोन एक्ट, अमृता सिंह का टाइगर श्रॉफ़ द्दारा सुपरहीरो की तरह व्यवहार करने का परिक्षण देना, फ़्लाइंग जट्ट का पहला बचाव अनुकरण (हालांकि ये सीन हॉलीवुड फ़िल्म एक्स मेन; डेज ऑफ़ द फ़्यूचर पास्ट से प्रभावित है) राका का शुरूआती सीन और उसका मध्यांतर में अच्छे से बुरे में परवर्तित होना ।
अभिनय की बात करें तो, जैसा की फ़िल्म के टाइटल ए फ़्लाइंग जट्ट से पता चलता है कि ये फ़िल्म पूरी तरह से फ़िल्म के हीरो टाइगर श्रॉफ़ के कंधों पर है । फ़िल्म में टाइगर श्रॉफ की मार्शल आर्ट का कौशल का खूब दर्शाया गया है । टाइगर ने संजीदगी और सच्चाई के साथ फ़िल्म में अपने किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय किया है लेकिन इसके बावजूद टाइगर श्रॉफ़ के करियर में ये फ़िल्म बेस्ट फ़िल्म साबित नहीं होगी । सुपरहीरो की भूमिका के लिए एक हष्ट-पुष्ट व्यक्तित्व की जरूरत होती है और इस श्रेणी में टाइगर ने बाजी मार ली है, टाइगर सुपरहीरो के किरदार में खूब जंचे हैं । वहीं दूसरी तरफ़, जैकलिन फ़र्नांडीस ने फ़िल्म में सिवाय खूबसूरत लगने और ग्लैमर का तड़का लगाने के अलावा कुछ खास नहीं किया । फ़िल्म में जैकलिन की भूमिका की सबसे बड़ी खामी ये है कि फ़िल्म की हीरोइन होने के बावजूद उनका रोल अमृता सिंह और गौरव पांडे से भी छोटा है । टाइगर श्रॉफ़ के भाई के रूप में गौरव बहुत जंचे हैं और बहुत अच्छा काम भी किया है । पहलवान से अभिनेता बने नाथन जोंस ने ए फ़्लाइंग जट्ट के साथ अपना बॉलीवुड डेब्यू किया है । राका की भूमिका में नाथन जोंस पूरी फ़िल्म में अपने विशाल व्यक्तित्व और अपने बाहुबल को दिखाते हुए घूमे हैं । इस सौदेबाजी में, नाथन जोंस दर्शकों के मन में डर पैदा करने में कामयाब रहते हैं, जो कि उनके किरदार से उम्मीद की गई थी । अमृता सिंह एक ठेठ पंजाबी मां के किरदार में खूब जंची हैं और अपने किरदार में डूब गईं हैं । वहीं दूसरी तरफ़, के के मेनन नकारात्मक भूमिका यानी विलेन के रोल में छा जाते हैं । श्रद्दा कपूर का कैमियो प्रभावशाली है । फ़िल्म के बाकी के कलाकार फ़िल्म को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं ।
पहले ही हिट हुआ फ़िल्म का गाना बीट पे बूटी के अलावा फ़िल्म का म्यूजिक (सचिन-जिगर) कामचलाऊ है और फ़िल्म में उसकी कोई खास जगह भी नहीं है । वहीं दूसरी तरफ़, इस फिल्म का बेकग्राउंड स्कोर (सचिन-जिगर) प्रभावशाली है और बहुत प्रभावी ढंग से इस फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाता है । इस फिल्म की कोरियोग्राफी प्रतिभाशाली रेमो डिसूजा के कंधों पर स्थापित है, इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि फ़िल्म की कोरियोग्राफ़ी बहुत प्रभावशाली है ।
फिल्म के छायाकार विजय कुमार अरोड़ा ने घटिया काम किया है, फिल्म का संपादन (नितिन एफ़सीपी ) औसत है । यहाँ तक कि फिल्म का प्रोडक्शन वेल्यू और वीएफएक्स, भड़कीला और भद्दा है जो सुपरहीरो फ़िल्म में एक अपमान है ।
कुल मिलाकर, ए फ़्लाइंग जट्ट में वो सारी खूबियां हैं जो इसे एक दिलचस्प सुपरहीरो फ़िल्म बनाती है । दर्शकों के एक वर्ग को ये फ़िल्म बकवास लग सकती है, हालांकि, बड़े पैमाने पर दर्शकों और बच्चों को ये फ़िल्म पसंद आ सकती है । ये फ़िल्म बॉक्सऑफ़िस पर धमाल मचाने की काबिलियत रखती है लेकिन ज्यादा नहीं । लंबा वीकेंड इस फ़िल्म के लिए वरदान साबित होगा ।